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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
4 अनुभव की अनुभूति की एक झलक
साध्वी अनुभवद्रष्टाश्री गुजराती बगीचे में फूल तो बहुत खिलते हैं मगर गुलाब तो गुलाब है
आकश में सितारे भी बहुत हैं पर चांद तो चांद ही हैं दुनिया में गुरुवर तो बहुत देखे लेकिन गुरू हेमेन्द्र जैसे
नहीं हेमेन्द्र तो गुरू हेमेन्द्र ही हैं | ___ यह वसुंधरा अनेक बहुमूल्य आकर्षक मनीषी रत्नों से भरपूर हैं । राजस्थान की मरुस्थल भूमि के जालोर जिले की बागरा नगरी के निवासी श्रेष्ठीवर्य श्रीमान ज्ञानचंदजी की धर्मपत्नी उजमबाई की कुक्षि से भारतवर्ष के होनहार सितारे ने जन्म लिया । बाल्यकाल से आप धर्मवृत्ति में अग्रसर थे । आपने संस्कृत, प्राकृत के अध्ययन पर बहुत तल्लीनता से ध्यान दिया और वैराग्य वासित भावना को परिपूर्ण करने के लिये आपने ज्ञानी, ध्यानी, परमयोगी, थीरपुर नगरी के परम उपकारी गुरुदेव श्री हर्षविजयजी के पावन पवित्र चरणों में पारमेश्वरी प्रव्रज्या ग्रहण करके गुरुदेव के चरणों में सर्वस्व अर्पण किया । गुरुदेव आपने अपने ओजस्वी तेजस्वी और यशस्वी चारित्र के प्रभाव से जन जन के हृदय में स्थान प्राप्त किया । आप एक जैनाचार्य नहीं, धर्माचार्य नहीं, बल्कि आप एक ऐसे कवि हैं कि आप के मुखारविंद से यदि एकबार परमात्मा की भक्ति के रूप में स्तवन भक्तिगीत सुन लिया हो तो सुननेवालों को यहां से उठने का मन नहीं बन पाता, बहुमुखी प्रतिभा के धनी परम पू. राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति वर्तमान आचार्यदेवेश श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी के व्यक्तित्व को शब्दों में बांधना संभव नहीं है। फिर भी मैंने यह छोटा सा प्रयास किया हैं । गुरुदेव के प्रति श्रद्धा का जो उपवन अभिनंदन ग्रंथ के माध्यम से संजोया संवारा जा रहा हैं । इस श्रद्धा सुमन के खिले उपवन में भी अपनी मन की विचारधारा के दो सुमन किसी क्यारी के एक कोने में संजोकर मैं अपने आपको भाग्यशाली मानती हूं, क्योंकि इन योगी पुरुष के सचरित्र के विषय में लिखना मेरे वश की बात नहीं हैं फिर भी मेरे मन ने गुरुदेव के जीवन के प्रतिभाव भरी प्रस्तुति व्यक्त की आत्मा का गुण भी स्वरूप की अपने आपके अनुभव की अगम्य भावना के बल में मैं जो भी लिख रही हूं वह अल्प से भी कम हैं ।
मैंने कई बार आपके पावन सहयोग और पवित्र निश्रा में रहकर आपके प्रतिभा संपन्न विचार वर्तन और बोली के माध्यम से मैंने जो देखा जो पाया वह एक उच्च आदर्श के प्रतीक के रूप में हैं । आप इस अवस्था में अपनी क्रिया के प्रति जो रूचि, जो रस लेते हैं वह आनेवाली नई पीढी के लिये वरदान के रूप में है । सद्गुरु का महत्व भारतवर्ष में आज से नहीं अतीत काल से रहा है । बिना गुरु से ज्ञान प्राप्ति नहीं होता । गुरुदेव ही जीवन नौका के नाविक है । वो ही संसार समुद्र से पार करते हैं।
तपस्वी रत्न गुरुदेव शीतकाल की भरसक ठंड में आप विहार के कार्यक्रम में भी अपनी अविरल गति से चल रही ज्ञान पंचमी की आराधना एवं गुरुदेव विश्वपूज्य कलिकाल कल्पतरु श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी की जन्म-स्वर्गतिथि का आयंबिल कभी कभी तिथि क्षय वृद्धि के कारण दोनों लगातार आते हैं । फिर भी आरोग्य की प्रतिकूलता, उम्र की असहायता, लेकिन उस की भी परवाह किये बिना आपने कई बार आराधना साधना के अंदर ओतप्रोत बनके अपने आपमें ऐतिहासिक बनके औरों के लिये प्ररणास्रोत बने हैं गुरुदेव ।
सूरज मुखी दिन को ही खिलता है | चन्द्रमुखी रात को ही खिलता है ||
पर आनन्द और उल्लास में मग्न - अन्तर मुखी साधक सदा ही खिलता रहता है ||
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 26 हेमेन्द्रज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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