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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
प्रातः स्मरणीय दादा गुरुदेव आचार्य श्री राजेन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. द्वारा उद्घाटित त्रिस्तुतिक परम्परा का बीज आज आचार्य श्रीमद् हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के शासन में पल्लवित, पुष्पित, फलित वृक्ष के रूप में त्रिस्तुतिक जैन संघ को ही नहीं सम्पूर्ण 'मानवता को अपनी छत्र छाया में पूर्ण सुरक्षित करके आत्म विकास एवं मानव कल्याण की ओर अग्रसर कर रहा है।
प. आचार्यदेव श्रीसंघ की गंभीर समस्याओं का बहुत ही सहजता से निदान कर देते हैं । बड़ी से बड़ी विपत्ति में कभी विचलित नहीं होते । अंतर्विरोधों को लेकर आपके समक्ष आने वाले किसी व्यक्ति का संशय आचार्यदेव के दर्शन मात्र से ही समाप्त हो जाता है । ऐसे महान प्रभावशाली आचार्यश्री के सद्गुणों का बखान करना उतना ही दुष्कर कार्य है जितना सागर की गंभीरता का बखान करना या चद्रमा की शीतलता का ।
__मानव कल्याण की कामना के साथ ही करुणा, त्याग व ज्ञान की प्रतिमूर्ति पू. आचार्य श्री के चरणों में काटि-कोटि नमन् । गुरू तेरे गुण अपार
साध्वी समकितगुणाश्री शास्त्रों में देव, गुरु, धर्म ये तीन तत्त्व बताये हैं । जिनमें गुरु तत्त्व की विशेष महिमा बताई हैं, क्योंकि धर्म की पहचान तथा सुदेव की पहचान कराने वाले, अज्ञान का पर्दा हटाने वाले गुरु ही होते हैं । गुरु भगवंत कष्टदायी जीवन जीकर स्वकल्याण के साथ सर्व जगत का कल्याण करने में तत्पर रहते हैं तथा सभी को धर्म के पथ की तरफ ले जाते हैं ।
हीरे की पहचान जौहरी ही करवा सकता है पत्थर की पहचान शिल्पी ही करवा सकता है इसी प्रकार धर्म की पहचान भी ज्ञानी गुरु ही करवा सकता है ऐसे ही महान गुरु -
इत्र के मिट्टी में मिलने पर भी, महक जाती नहीं । तोड़ भी डालो तो हीरे की चमक जाती नहीं || महान गुरू किसी भी दिशा में विचरे मगर -
उनके भीतर रहे सद्गुण कही छिपते नहीं || फूलों से लदी सुरभित वाटिका से कोई गुजरे और उसे देखकर उसका मन आनन्दित न हो, यह कैसे सम्भव है?
चांद की सुन्दर चांदनी खिली हो और मन प्रसन्नता से न भर जायें यह हो नहीं सकता । वसंत ऋतु में आम्रवन में कोयल चुप रहे, यह संभव कभी नहीं, बादलों से भरे आकाश को देखकर मयूर कभी चुप नहीं रहता, वैसे ही गुरुदेव की वाणी से किसी का मन प्रफुल्लित न हो, यह कभी नही हो सकता । गुरुदेव के सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति अपने आपको धन्य एवं कृत्त कृत्य माने बिना नहीं रह सकता । जहाँ जहाँ आप पदार्पण करते हैं । वहाँ वहाँ भव्य जीवों का अज्ञान तिमिर विलीन हो जाता है । पूज्य गुरुदेव में अनन्त वात्सल्य को देखती हूं । गुरुदेव की करुणा असीम है, बड़े से बड़े अपराधी को भी दयामय ज्ञान गंगा में नहलाकर वे पवित्र कर देते हैं । आप इतने ज्ञानी है, इतने लब्धप्रतिष्ठित है फिर भी तनिक अभिमान नहीं ।
नदी के झरने जैसा निर्मल हास्य, समुद्र जैसा विशाल हृदय, उच्च शिखर जैसा पावन जीवन, पूर्णिमा की ज्योत्सना जैसे शीतल विचार आपके जीवन में अनन्य हेतु है । आपने कभी अपने तन को अपना नहीं माना, अपनी तकलीफ को अपनी नहीं मानी, जन-जन के कल्याण व अज्ञान मिटाने के लिए भक्तों के आग्रह को पूरा करते हुए उनका उत्साह और आगे बढ़ाने के लिए अस्वस्थता की दशा में आप लम्बे लम्बे उग्र विहार करके त्याग-तपस्या में संकोच नहीं करते हैं । फूल स्वयं कांटो में घिरा रहकर भी दूसरों को अपनी सुवास देता है, मन को आनन्दित करता है । वैसे ही गुरुदेव स्वयं किसी भी कठिनाई में रहेंगे फिर भी जन मानस को खुशी का अनुभव कराते हैं। अपनी मधुरवाणी से सबके हृदय को तरोताजा करते हैं ।
हेमेन्द्र ज्योति हेमेटा ज्योति
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हेमेन्द्रज्योति* हेगडट ज्योति
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