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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
श्रद्धा के दो पुष्प
उपप्रवर्तिनी श्री स्वर्णकान्ताजी म. की शिष्या साध्वी सुधा
हे आचार्यवर मेरी श्रद्धा के दो पुष्प आज स्वीकार करो । दुःखी दीन जन के करुणामय, करुणा कर सब कष्ट हरी ||
भगवान महावीर के परिनिर्वाण के पश्चात् यद्यपि जैन गगन में किसी सहस्ररश्मि सूर्य का उदय नहीं हुआ, किन्तु यह एक ज्वलन्त सत्य है कि समय समय पर अनेक ज्योतिष्यमान नक्षत्र उदित हुए हैं, जो अज्ञान अन्धकार से जूझते रहे । अपने दिव्य प्रभामण्डल के आलोक से विश्व का पथ प्रदर्शन करते रहे । ऐसे प्रभापुंज ज्योतिष्यमान नक्षत्रों से जप-तप, सेवा - सहिष्णुता और सद्भावना की चमचमाती किरणें विश्व में फैलती रही है। ऐसे ही एक दिव्य नक्षत्र हैं आचार्यदेव श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ।
महापुरुषों के जीवन में धर्म ही सम्बल होता है, संस्कृति ही देवी होती है, समाज-सेवा ही महाव्रत होती है, जन-जन के प्रति औदार्य ही जीवन निष्ठा होती है । ऐसे महापुरुष की जन्म अमृत महोत्सव एवं दीक्षा हीरक जयन्ती के पावन प्रसंग पर हृदय की अनन्त आस्था से कोटि कोटि अभिनन्दन ।
(साथ में विराजित समस्त साध्वियों के भी ऐसे ही भाव हैं ।)
कसौटी पर खरे
सेवाभावी साध्वी संघवणश्री
जाति, कुल तथा ऐश्वर्य से रहित अवस्था में समय गुजारने के बावजूद भी जो व्यक्ति अपने बाहुबल से, अपनी मानसिक दृढ़ता से जीवन को उन्नत बनाता है, वह अत्यंत प्रशंसा का पात्र है । सोना जिस प्रकार घिसने से काटने से, पीटने से तथा तपाने से शुद्ध होता है, उसी प्रकार महापुरुष अनेक कठिनाइयों, विपत्तियों तथा अभावों में से गुजरकर साधु पुरुष बनते हैं। इस सम्बन्ध में कहा भी गया है
यथाचतुर्भिः कनकः परीक्षेत, निद्यर्षणच्छेदन ताप ताडनैः ।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्षेत, त्यागेन, शीलेन, गुणेन कर्मणा ॥
सोने की भांति मनुष्य की परीक्षा भी चार प्रकार से होती है। • त्याग, शील, गुण और कर्म से । महानता का सर्वप्रथम लक्षण त्याग माना जाता है । शील अनमोल रत्न है । गुणों की सर्वत्र पूजा होती है और मनुष्य की प्रतिष्ठा उसके उत्तम कर्मों से होती है ।
यदि उक्त कसौटी पर पू. राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यश्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का जीवन देखें तो वह खरा उतरता है । उनके जीवन में त्याग है, शील है, गुण है और उत्तम कर्म है । ऐसे व्यक्तित्व के अभिनन्दन ग्रन्थ का प्रकाशन होना सबके लिये गौरव की बात है । पू. आचार्यश्री को अभिनन्दन ग्रन्थ भेंट कर भेंट करने वाले ही गौरवान्वित होंगे । मैं इस अवसर पर पू. आचार्यश्री के स्वस्थ एवं सुदीर्घ जीवन की कामना करते हुए उनके चरणों में वंदना अर्पित करती हूं ।
हेमेन्द्रर ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
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