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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
गुरू कृपा बिन मुक्ति नाहि
मुनि ललितेश विजय वर्तमानाचार्य राष्ट्रसंत शिरोमणि सौधर्मबृहत्तपागच्छ नायक श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के संयम की महक आज सारे संसार के उपवन में फैल रही है । उनका संयम जीवन अनेक उपलब्धियों से परिपूर्ण है। आपने संसार की असारता को जानकर युवावस्था में दीक्षा ग्रहण कर उत्कृष्ट तप से अपने जीवन को तपाकर वैराग्य मार्ग पर चलने वाले मुमुक्षु को संयम मार्ग की ज्ञान मयी वाणी से, सदा भगवान महावीर की वाणी की प्रेरणा देते हैं । आप समयदृष्टि उत्कृष्ट तपोपालक सौधर्म बृहत्तपोगच्छ की उज्ज्वल पट्ट परम्परा के प्रतीक बने हुए हैं ।
जीवन को मधुर बनाया आपने | मधुरता से जीवन को सजाया आपने ||
सद्गुण गरिमा से मंडित होकर -
शालीनता से संयम दीप जलाया आपने || इस संसार में गुरु को ही सर्वोपरि माना गया है । क्योंकि गुरु ही भगवान को मिलने का मार्ग बताता है । जिस व्यक्ति पर गुरु की असीम कृपा दृष्टि हो जाती है । वह इस संसार सागर से तिर जाता है । इसका मुझे अच्छी तरह आभास है ।
गुरु चरण सहोदरम, मुझ मन कृपा सिधार । जिसके मन, तन में गुरु चरण है, गुरु शरण हैं वे भाग्यशाली हैं, आत्मवासी हैं जिनके मनोपटलपर गुरुदेव की अमिट छाप है । यह दीपक की लौ निरन्तर जल रही है । मानव जीवन के मैदान में अंधी दौड़ में अग्रसर हो रहा है । इतिहास में अब तक जो परमात्मा तीर्थकर या सद्गुरु सिद्ध हो चुके हैं । हमारा सौभाग्य है कि मानव जीवन मिला । अतीत के मात्र उज्ज्वल पक्ष का न केवल स्मरण करना अपितु वर्तमान को उज्ज्वल बनाने का प्रयास हमें करना है।
इसी प्रकार परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि श्रद्धेय गुरुदेव श्री हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ने मुझे इस संसार के मोह माया के सम्बन्ध में विस्तार से समझाया । मैं सदा ही उनके सान्निध्य में ज्ञानार्जन करता हूं । अनेक बार मुझे पथ पर चलते संयम जीवन की महत्ता गुरुदेवश्री ने बतायी । जब भी आचार्यश्री से जिज्ञासापूर्वक हम कोई संयम जीवन की समस्याओं की बातें करते हैं तो वे निराकरण बहुत ही सहजता एवं सरलता से कर हमें समझा देते हैं।
गुरू मूरत रहे ध्यान में | गुरू के चरण बने पूजन || गुरू वाणी ही महामंत्र |
गुरू प्रसाद से प्रभुदर्शन || बस अरिहंत परमात्मा से यही प्रार्थना करता हूं कि गुरु की मूरत सदा ध्यान में रहे, गुरु चरण बने प्रार्थना, गुरु की वाणी, वचन, संदेश मेरे लिये संदेश बन जाये । क्योंकि हरि के दर्शन गुरु कृपा बिना संभव नहीं, अचार्यश्री की कृपा से आज मैं संयम जीवन धारण कर स्वयं से साक्षात्कार कर भीतर में जन्म जन्मजन्मांतर से बसे संसार के दल दल से मुक्ति का मार्ग पाया है ।
श्री हेमेन्द्र सूरि अभिनन्दन ग्रंथ के प्रकाशन पर हार्दिक शुभ कामना एवं आचार्य श्री का मंगल आशीर्वाद युग युगांन्तर तक मिलता रहे यही परमात्मा से कामना करता हूं ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 14
हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द ज्योति
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