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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
9. रानीला :- यह नया दिगम्बर जैन तीर्थ है । रानीला भिवानी के पास पड़ता है । इस गांव में 24 तीर्थंकर का एक विशाल पट्ट निकला है, जिसके मूल में भ. ऋषभदेव स्थापित हैं । चक्रेश्वरी देवी की प्रतिमा भी यहां से प्राप्त हुई है। यह प्रतिमा 8वीं सदी की है । इस प्रतिमा के दर्शन का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ है। 10. अम्बाला :- यह हरियाणा का प्रसिद्ध जिला है । यहां श्वेताम्बर मन्दिर के जीर्णोद्धार के समय वि.सं 1155 की नेमिनाथ की, वि.सं. 1454 की भगवान वासुपूज्य जी की वि.सं. 1455 की पदमावती पार्श्वनाथ की प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी, जिसे इस मन्दिर में स्थापित कर दिया गया है । मन्दिर जैन बाजार में स्थित है । 11. नारनौल:-यहां 12वीं सदी की दो विशाल तीर्थंकरों की प्रतिमाएं भूरे रंग के पत्थर की प्राप्त हुई थी, जिसके पीछे विशाल परिकर है । 12. तोशाम :- यह छोटा सा कस्बा हिसार के पास है । 9-10वीं सदी में यहा जैन तीर्थंकरों की प्रतिमाएं प्राप्त हुई थी । जो मल्लीनाथ भगवान की है। 13. कांगड़ा :- यह प्राचीन जैन तीर्थ है, जिसका विवरण विज्ञप्ति त्रिवेणी' ग्रन्थ में विस्तृत रूप से आया है । आज भी कांगड़ा के भव्य किले में भगवान ऋषभदेव की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है । पास ही अम्बिका देवी का मन्दिर है। ऐसा माना जाता है कि पहले यहां भ. नेमिनाथ की प्रतिमा थी, जिसके स्थान पर इस प्रतिमा को स्थापित किया गया। इस किले में और भी अनेक मन्दिरों के खण्डहर है, जिस पर शोध की आवश्यकता है । इस तीर्थ की खोज का सौभाग्य पंजाब केसरी आचार्य श्री विजयवल्लभजी म. को है । इस तीर्थ का उद्धार जैन भारती महतरा मृगावती श्री जी ने किया था । कांगड़ा के इन्द्रेश्वर मन्दिर में डा. वुल्हर ने भ. ऋषभदेव की खण्डित प्रतिमा के पत्थर पर एक शिलालेख पढा था । इसी तरह वैजनाथ पपरोला में भी एक प्रतिमा लेख का उल्लेख उन्होंने किया है | इसीके पास ज्वालाजी मन्दिर में आज भी एक स्थान पर सिद्धचक्र का गट्टा पड़ा है । आज से 100 वर्ष पूर्व वहां शिलालेख था, जिसे इसी विद्वान ने पढ़ा था । यहीं लुंकड यक्ष की पूजा होती है १० । ज्वाला जी शासनदेवी रही है, हो सकता है, मूल नायक की प्रतिमा वहां रही हो । पर आजकल वहां कोई जिनप्रतिमा नहीं । इस मन्दिर का उल्लेख विज्ञप्ति त्रिवेणी में भी आया है । 14. हस्तिनापुर :- तीन तीर्थंकरों के 12 कल्याण्कों की यह पवित्रस्थली, जिसे कौरवों की राजधानी होने का सौभाग्य रहा है । गंगा के किनारे होने से इसे बहुत विनाश झेलना पड़ा है । इसका प्रमाण विस्तृत टीले हैं और उन टीलों पर शेष हैं - पुरातत्व के चरण चिन्ह । भ. ऋषभज्ञदेव के पारणास्थल के करीबी टीले पर दिगम्बर सम्प्रदाय द्वारा मान्य तीनों तीर्थंकरों की चरण पादुका हैं । इनके अतिरिक्त गंगा नहर की खुदाई से तीन 7-8वीं सदी के तीर्थंकरों की प्रतिमाएं मिली थी, जो यहां के 200 वर्ष प्राचीन दिगम्बर मंदिर में विराजमान है, इस मंदिर में भ. शांतिनाथजी की विशाल खड़ीधातु की खंगासन प्रतिमा पारणा स्थल से प्राप्त हुई थी । इस पर एक लेख भी है। यह प्रतिमा 12वीं सदी की है । हस्तिनापुर में वर्षीतप का पारणा होता है । दोनों सम्प्रदायों के विस्तृत व भव्य मन्दिर यहां बनें हैं। माता ज्ञानमती जी का जम्बूद्वीप यहां दर्शनीय स्थल है। स्वयं आचार्य जिनप्रभवसूरि ने विविधतीर्थकल्प में इस क्षेत्र के मन्दिरों का उल्लेख किया है । पर वह मन्दिर आज प्राप्त नहीं है । प्रसिद्ध जैन विद्वान एवं समयसार नाटक के रचयिता पं. बनारसी दास ने यहां यात्रा की थी, तब भी वहां प्राचीन मन्दिर विद्यमान थे। 15. कटासराज :- यह क्षेत्र पाकिस्तान के झेहलम जिले में पड़ता है । यह पहाड़ी क्षेत्र हिन्दुओं का धर्म स्थान है। कहा जाता है कि इस स्थल पर युधिष्ठर ने यक्ष के प्रश्नों के उत्तर दिए थे । इन्हीं पहाड़ियों में अनेक स्थलों पर जिन प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं जो किसी जैन मन्दिर के अवशेष हैं, ऐसा उल्लेख 'मध्य एशिया व पंजाब में जैन धर्म' नामक ग्रन्थ में प. हीरालालजी दुग्गड़ ने किया है । इसका प्राचीन नाम सपादलक्ष पर्वत माना जाता है । 16. करेज एमीर (वर्तमान रुस) :- अफगानिस्तान में यह क्षेत्र पड़ता है । यहां एक खंडित चौबीसी प्राप्त हुई है जिस का वर्णन "जैन स्थापत्य व कला खण्ड भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्राप्त होता है ।
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