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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
न साधु पद का महत्व
- साध्वी मोक्षमालाश्री अनंत उपकारी चरम तीर्थपति श्रमण भगवान श्री महावीर परमात्मा के शासन में परमार्थ के प्राप्त किये हुए शास्त्रकार महर्षि आचार्य भगवन्त श्री रत्नशेखर सूरि म. ने नवपद की महिमा गाते हुए भीसिरिवालकहा' नामक ग्रन्थ में पांचवें साधु पद के बारे में बताते हुए कहते हैं ।
आज का दिन साधु पद की आराधना, साधना, जाप, ध्यान करने का हैं । पंच परमेष्ठी में प्रवेश करने का द्वार साधु पद ही हैं । साधु पद में प्रवेश किये बिना कोई भी आत्मा परमेष्ठी पद में अपना समावेश नहीं कर सकता हैं । साधु पद की साधना द्वारा पंच परमेष्ठी की साधना हो सकती हैं ।
अरिहन्त भी साधु हैं, साधु नहीं हो तो अरिहन्त नहीं बन सकते । सिद्ध भी साधु हैं, साधु नहीं हो तो सिद्ध नहीं बन सकते । आचार्य भी साधु है, साधु नहीं हो तो आचार्य नहीं बन सकते । उपाध्याय भी साधु है, साधु नहीं हो तो उपाध्याय नहीं बन सकते ।
साधु तो साधु ही होते हैं । नवपद में साधु पद एकदम बीच में आता है । पहले चार पद, बीच में साधु पद और बाद में चार पद आते हैं ।
आराधक आत्मा को कोई भी सिद्धि साधना के बिना नहीं मिलती है । जिस दिन साधु पद का नाश होगा उस दिन शासन भी नहीं रहेगा । शासन वही होता है जहां साधु होता है । जहां साधु नहीं वहां शासन नही ।
साधु पद की आराधना क्यो?
साधु पद की आराधना मोक्ष मार्ग की साधना में सहायता पाने के लिए करनी पड़ती हैं । सहायता करे वही साधुजी। साधु पद की आराधना द्वारा मुमुक्षु आत्माओं को भी मोक्ष की साधना में सहायता मिलती हैं ।
साधु भगवन्त अपने शरीर की देख रेख नहीं करते हैं । तप आदि के कारण उनकी काया कोयले के समान काली बन जाती हैं । इसलिए ही साधु का वर्ण 'श्याम' कहा जाता है ।
साधु भगवन्त निरन्तर संयम की साधना करने वाले ही होते हैं । उनकी हर एक क्रिया में संयम मुख्य होता हैं । साधु गोचरी को जाते हुए, आहार करते हुए, बोलते हुए, चलते हुए, सोये हुए, जागते हुए, जाहिर में बैठे हुए आदि हर वक्त संयम की साधना शुरू ही रखते हैं ।
इस परमात्मा के शासन में उच्चतम कक्षा में साधु पद हैं । जिसको भी इसमें प्रवेश करना हो तो अपनी आत्मा को सर्वस्व बनाना होगा । साधु पद को पाने के लिए संयम ग्रहण करने के भाव आने जरूरी है ।
पंच महाव्रत का पालन, पंच समिति का पालन, तीन गुप्ति का पालन । पांच महाव्रत की पच्चीस भावना - द्रव्य साधु पद । क्षमा आदि धर्म को आत्मसात् करना – भाव साधु पद ।
वीतराग परमात्मा के साधु करुणा के अवतार होते हैं । जीवों के प्रतिपालक हैं । जीवयोनि के लिए मां जैसे हैं । एक भी जीव को जरा भी दुःख नहीं पहुंचे इसके लिए सतत सावधान रहते हैं । करवट बदलते पूंजना, हाथ पूंजना, जगह पूंजना बाद में करवट बदलते है ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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