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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ।
परमेष्ठी स्तुति
(तर्ज - मिलता है सच्चा सुख केवल) अरिहन्त नमु श्री सिद्ध नमु आचार्य नमु उपाध्याय नमु, सब संतों को कर जोड नमु ।। मंगल कर्ता सब दुखहर्ता, पद पांच नमु, परमेष्ठी नमु, पद पांच नमु परमेष्ठी नमु In II अरिहंत ।
घनघाती कर्म को नाश किया, वीतराग हुए सर्वज्ञ प्रभु । अन्तरयामी त्रिभुवन स्वामी हे भवभंजन अरिहन्त नमु,
हे भवभंजन अरिहन्त नमु ID अरिहंत | जो जन्म मरण से मुक्त हुए, वीतराग हुए सर्वज्ञ प्रभु । अहो शुद्ध बुद्ध निर्लेप प्रभो, सबके स्वामी श्रीसिद्ध नमु, सबके स्वामी श्रीसिद्ध नमु |13|| अरिहंत।
जो जिनशासन के नायक हैं, छत्तीस गुणो के धारक हैं |
पंचाचारी दृढ आचारी संघ संवाहक आचार्य नमु, संघ सवाहक आचार्य नमु 14 || अरिहंत |
जो चरण करण के ज्ञाता है, भटके जीवों के त्राता है | जो आगम मर्म व्याख्याता है, जिनवर जैसे उपाध्याय नमु, जिनवर जेसे उपाध्याय नमु |15 || अरिहंत |
जो पंच महाव्रत धारक हैं समिति गुप्ति के पालक हैं | शुद्ध मोक्ष मार्ग के साधक हैं निग्रंथ गुरू सर्व संत नमु, निग्रंथ गुरू सर्व संत नम् 16|| अरिहंत |
यह पंच परमेष्ठी पावन है, भव तारक अनुपम साधन है | सब ऋद्धि सिद्धि मंगलदाता, त्रियोग सहित कर जोड़ नमु, त्रियोग सहित करजोड़ नमु 17 || अरिहंत ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 64हेगेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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