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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
5. इस परमेष्ठी महामंत्र की आराधना जीवन को उत्क्रांति की ओर ले जाती है । अनंत भव्य आत्माएं इसका आराधन कर परम पद को प्राप्त हुई हैं, हो रही है और होंगी । यह मंत्र शक्ति का धाम है, जिसके जाप से मिलता है आत्मिक विश्राम । इसके प्रत्येक पद और अक्षर में समाया है - आनंद, महाआनंद । यह कल्पतरु और पारस मणि से भी बढ़कर है । यह देव गुरु व धर्म तत्त्व का महत्त्व दर्शाता है । सत्य का मर्म बतलाता है । यह ध्येय का ध्यान सिखाता है हेय का ज्ञान कराता है और हेय का भान कराता है । इस महामंत्र में अरिहन्त दाता और ज्ञाता है । सिद्ध ज्ञेय एवं आचार्य पालक और जिनशासन रूप रथ के संचालक हैं । उपाध्याय ध्याता है आगम के ज्ञाता है । साधु साधक है एवं सत्य के आराधक है । इन पंच परमेष्ठी को जो भी करता है नमस्कार उसके अंतर का दूर होता है तमस्कार ।
यह परम मंत्र, परम तंत्र, परम रतन, परम जतन, परम रसायन है । यह सेवा में महा सेवा, मेवा में महामेवा, जप में महा जप, तप में महा तप, सम में महासम, दम में महादम, ज्ञान में महाज्ञान, ध्यान में महाध्यान और दान में महादान है । जिसके मन में है नवकार उसका क्या कर सकता संसार, अर्थात संसार के उपद्रव उसे किसी भी प्रकार की पीड़ा नहीं पहुंचा सकते हैं ।
6. परमेष्ठी के पांच पदों के साथ अंत में चार पद (जिनका रंग श्वेत माना गया है) जोड़ने से नवपद होते हैं। ये चार पद व उनके गुण इस प्रकार है- 1. णमो दंसणस्स (67 गुण) 2. णमो णाणस्स (51 गुण) 3. णमो चारित्तस्स (70 गुण) 4. णमो तवस्स (50 गुण) । इस प्रकार से इन चारों पदों के 238 गुण कहे हैं तथा परमेष्ठी के 108 गुण मिलाने से नवपद के कुल 346 गुण होते हैं । इन नवपद की बड़ी महिमा गरिमा है । जिस प्रकार समस्त सिद्धियां,
आत्मा में रही हुई है उसी प्रकार नवपद की ऋद्धियां भी आत्मा में रही हुई है, जो सभी इस नवपद के आराधन से उद्भूत होती है । महामंत्र णमोक्कार की महिमा व माहात्म्य
1. चौदह पूर्वधारी महापुरुष, आगम महाश्रुत से चिंतन मनन द्वारा आत्मा विकसित करते हैं । फिर भी जब वे देहोत्सर्ग हेतु अनशन स्वीकार करते हैं तब जीवन के अंतिम क्षणों में केवल हम अचिन्त्य महिमावाले महामंत्र राज का ही शरण ग्रहितकर स्मरण व जाप करते हैं । कारण यह महामंत्र भवान्तर में नियम से ऊर्ध्व गति प्रदान करता
2. चमत्कार से नमस्कार यह लौकिक सत्य है । किन्तु नमस्कार मंत्र से चमत्कार यह लोकोत्तर सत्य है ।
यह महामंत्र आत्मशोधन का मुख्य हेतु होते हुए भी,समग्र आधि व्याधि उपाधि रोग शोक,दुख दारिद्र आदि सभी का विनाशक है । इसके आराधन से समस्त विघ्नों का विनाश होता है । भव-क्लेश व संताप नष्ट होकर शाश्वत सुख का अचिन्त्य अनंत लाभ प्राप्त होता है । इसी महामंगलमय महामंत्र की आराधना श्रीपाल नरेश, श्री सुदर्शन श्रेष्ठी, सुभद्रासती, मयणरहासती, द्रौपदीसती, सोमासती आदि अनेकानेक आत्माओं ने की है तथा भयंकर, कष्टों, विघ्नों पर विजय प्राप्त कर अनंत सुखों को उपलब्ध हुए हैं । नमस्कार से चमत्कार विषयक यहां कतिपय सत्य घटनाएँ संक्षिप्त में प्रस्तुत हैं।
1. कवि निर्भय हाथरसी - आप एक बार बडौत (मेरठ) नगर में एक कवि संमेलन में गए । सारे कवि अपनी कविताएँ बोल चुके थे । जब निर्भय हाथरसी का बोलने का मौका आया कि अचानक जोरदार वर्षा हुई, जिसमें सारा आयोजन अस्त व्यस्त हो गया । किसीने हंसी में कहा कि हाथरसी ने कविता नहीं पढ़ी है अतः इन्हें पारिश्रमिक भी नहीं मिलेगा । यह बात हाथरसी को चुभ गई और वे तत्काल दौडकर मंच पर जा चढ़े । एकाग्र मन से णमोकार मंत्र का उच्चारण किया और कविता बोलने लगे तो तत्काल घनघोर वर्षा बंद हो गयी । फिर सारी रात कवि सम्मेलन चला | यह अश्चर्यजनक था कि नगर में सारी रात वर्षा होती रही, परंतु कवि सम्मेलन के स्थान पर एक बूंद भी पानी नहीं बरसा । णमोकार मंत्र मात्र पांच पक्तियों के अलावा कुछ नहीं जानते हुए भी बाबा हाथरसी के 148
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