________________
श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
मंत्रराज के पांच पदों की रंग स्थापना :
पांचों पदों के प्रस्थापित रंग, उन पदों की विशेषताओं के प्रतीक है। यथा प्रथम पद अरिहंत -श्वेत-यह रंगरागद्वेष रहित निर्मल आत्माओं का प्रतीक हैं। द्वितीय पद-सिद्ध-लाल-यह रंग परिपक्व अनाज की तरह, परिपक्व विशुद्ध आत्माओं का प्रतीक है । तृतीय पद -आचार्य पीला - यह रंग सूखे वृक्षवत् रूप सेव हरियाली को नष्ट करने का प्रतीक है । चतुर्थ पद उपाध्याय नीला - यह रंग अल्प पाप कलिमल शेष रही अत्माओं का प्रतीक है । पंचम पद साधु-काला यह रंग पाप कलिमल को धोनेवाली साधक आत्माओं का प्रतीक है ।
स्वरूप-पंच परमेष्ठी का पावन स्वरूप संक्षेप में इस प्रकार है - प्रथम पद - णमो अरहन्ताणं
"घण घाइ कम्महणा, तिहुवणवइ भवकमल मतदा |
अरिह अणंत ताणी, अणुप्प मसोसवा जयंतु जय || अर्थात् जिन्होंने चारो घाती कर्मो का सर्वथ । क्षयकर तीन लोक में विद्यमान भव्यजीवों रूपी कमलों को विकसित करने में जो सूर्य हैं । जो अनंतज्ञानी हैं और अनुपम सुखमय हैं वे अरिहन्त जगत में जयवंत हैं ।
"ललि अयंसहाव लट्ठा समप्पडा अदोसदुट्ठा गुणेहिजिट्ठा ।
पमायसिट्ठा तवेण पुट्ठा, सिरीहइटा रिसीहि जुट्ठा ||" अर्थात् वे स्वरूप से सुन्दर, समभाव में स्थिर, दोष रहितगुणों से अत्यन्त महान कृपा करने मे उत्तम, तप के द्वारा पुष्ट लक्ष्मी से पूजित व ऋषियो से सेवित हैं ।
विशेष - अरहन्त शब्द के पर्याय व अर्थ इस प्रकार है -
1. अर्हन्त - अर्हन्त पूजनीय त्रिलोक पूज्य (प्राकृत में अर्हत शब्द है) 2. अरहोत्तर - अ + रह + उत्तर - जिनसे कोई रहस्य छिपा नही है सर्वज्ञ । 3. अरिहन्त - अरि + हन्त - कर्म रूप शत्रुओं को जिन्होंने नष्ट कर दिया है । 4. अरहन्त - अ + रह + अन्त - जो पुनः पैदा न हो (अरूह - न उगना व अन्त रहित) । 5. अरथांत-अरथ + अन्त - सर्व प्रकार से अपरिग्रही तथा जिनका अंत (मृत्यु) नहीं होता | 6. अरहन्त - अरह + अंत - आसक्ति राहत -पूर्ण अनासक्त । 7. अरहयद - अरह+यद - मनोज्ञया अमनोज्ञ प्रसंग में भी जो तीतली स्वभाव का त्याग नहीं करते हैं ।
2. अरहन्त देव अनंत चतुष्टय (अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंत चारित्र, व अनंत बलवीर्य रूप), के धारक होते हैं, तभी अठारह दोषरहित व बारह गुण सहित होते हैं । अठारह दोष है -
नहिं अज्ञान', निद्रा, मिथ्यात्म, नहीं राग' और द्वेष नहीं । नहीं अव्रत काम' हास्यादि:-13, छ नहीं पंच'4-18 अंतरा वहां ।।
बारह गुण है - 1. अनंत ज्ञान 2. अनंत दर्शन 3. अनंत चारित्र (स्वस्वरूप में अनंत स्थिरता) 4. अनंत तप 5. अनंत सुख 6. क्षायिक समकित (निराकुल एवं विशुद्ध आत्म प्रतीति) 7. शुक्ल ध्यान (स्व-स्वस्थ का निर्विकल्प ध्यान) 8. अनंत दान लब्धि (अनंत प्राणियों पर अनंत अभय दान स्वरूप शुद्ध विच्छभाव से परिणमन) 9. अनंत लाभ लब्धि (अव्याबाध आत्म स्वरूप की प्राप्ति का अनंत लाभ) 10. अनंत भोग लब्धि (अनंत एश्वर्य का प्रतिक्षण भोग) 11. अनंत उपभोग लब्धि (आत्मा के परमानंद का प्रवाह रूप में पुनः पुनः अनुभूति) व 12. अनंत वीर्य लब्धि (जिसके आलम्बन से आत्मा की अनंत सामर्थ्य रूप रूचि प्रगट होती है जिसमें किंचित सूचना या वियोग नहीं ।
ये बारह गुण सभी केवली भगवन्तों में मिलते हैं ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 50
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
onal use