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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
इन सब घटकों को ध्यान में रखने पर हमारे सामने संस्कार निर्माण एवं व्यसन मुक्ति के कई प्रारूप बनने एवं बिगड़ने लगते हैं । अगर इन सबको साथ लेकर चलना पड़े तो हम बहुत बड़ी समस्या में फंस सकते हैं और अपने मूल उद्देश्य से भी भटक सकते हैं । अगर उन्हें छोड़ दिया गया तो हम वस्तुतः विषय सन्दर्भ के साथ न्याय नहीं कर सकेंगे । अतः दोनों ही परिस्थिति में हमारे सामने संकट है और इनका समाधान भी करना है क्योंकि हम उन्हें छोड़ना भी नहीं चाहते । इसलिये इस संकट के हल हेतु हमें उन प्रक्रियाओं को कार्यरूप देना होगा जो उनके विभिन्न पक्षों को अपने साथ जोड़ सके । यहां हम उन्हें केवल सूत्ररूप में प्रस्तुत कर रहे हैं
मनुष्य के सम्यक् स्वरूप का प्रकाशन संस्कार एवं व्यसन का स्वरूप निर्धारण मानव जीवन में संस्कार एवं व्यसन का स्थान संस्कार निर्माण एवं व्यसन मुक्ति की चेतना का जागरण
मूल्य एवं मूल्यबोध की भावना का विकास सभ्यता एवं संस्कृतिगत विशेषताओं का प्रकाशन सहअस्तित्व की व्यापकता का परिबोध
मानसिक संतुलन
जीवन शैली में परिवर्तन संस्कार निर्माण एवं व्यसन मुक्ति हेतु ये कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु हो सकते हैं, लेकिन उन्हें ही मात्र अंतिम नहीं माना जा सकता । क्योंकि ये दोनों सन्दर्भ अत्यंत व्यापक हैं। अतः इनके लिए व्यापक सूत्र भी बन सकते हैं । लेकिन यहां हमारा निवेदन यह है कि मात्र सूत्रों के प्रकाशन से ही संस्कार निर्माण एवं व्यसन मुक्ति के प्रयास सफल नहीं हो सकते । उस हेतु एक प्रतिबद्ध संकल्प की आवश्यकता है जो इन सूत्रों को कार्यरूप में परिणत कर सके ।
सन्दर्भ
1. वामन शिवराम आप्टे : संस्कृत हिन्दी-कोश, नाग प्रकाशक, दिल्ली 1995, पृ. 988 2. न परिमियन्ति भवन्ति व्यसनान्यपराण्यपि प्रभूतानि ।
त्यक्त्वा सत्पथमपथपृवृत्तयः क्षुद्रबुद्धिनाम् ।।1/32, पंचविंशितिका (पद्मनंदि) जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर 1932 3. जूयं मज्जं मंसं वेसा पारद्धि-चोर-परयारं ।
दुग्गइगमणस्सेदाणि हेउभूदाणि पावाणि ।।59, वसुनंदि-श्रावकाचार
भारतीय ज्ञानपीठ काशी, 1952, लाटी संहिता, 2/113, पंचविंशितिका 1/6 4. आप्टे : संस्कृत हिन्दी-कोश, पृ. 1051
संस्कारों नाम स भवित यस्मिन्जाते पदार्थों भवित योग्यः कस्यचिदर्यस्य । 3/1/3, शावर भाष्य 6. वस्तुस्वभावोऽयं यत् संस्कारः स्मृतिबीजमादधीत । 1/6/34/14, सिद्धिविनिश्चय (अकलंक) भारतीय ज्ञानपीठ, काशी 1951 7. शरीरादौ स्थिरात्मीयादिज्ञानान्य विद्यास्तासामम्य सः पुनः प्रवृत्तिस्तेन जनिताः वासनास्तैः कृत्वा । 37/36/8, समाधिशतक टीका,
वीरसेवा मन्दिर देहली सं. 2021 डॉ रामस्वरूप 'रसिकेस' आदर्श हिन्दी संस्कृत कोश, चौखंबा विद्याभवन वाराणसी, 1986 पृ. 591
आप्टे : संस्कृत-हिन्दी-कोश पृ. 1051 9. तत्त्वार्थसूत्र, 5/21 विवे : पं सुखलाल संघवी, पार्श्वनाथ शोधपीठ, वाराणसी 1993
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 48 हेगेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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