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________________ श्री राष्टसंत शिरोमणि अभिनंदन पंथ प्रश्न :- स्थावर में जीव प्रत्यक्ष रूप से नहीं दिखते जिससे उन्हें बचाने का उल्लास नहीं जगता| क्यों ? उत्तर :- जिस प्रकार तुम क्रिकेट प्रत्यक्ष नहीं देखतें हो फिर भी कॉमेन्ट्री सुनकर उसे सत्य मानकर आनन्द लेते हो, उसी प्रकार जिनेश्वर भगवंतों ने इन जीवों को एवं उनकी वेदना को साक्षात देखी है और उसकी कॉमेन्ट्री दी है। संसार के चलते फिरते मनुष्य पर विश्वास रखने वाले यदि परमात्मा पर विश्वास आ जाय तो हमारे जीवन में जयणा का वेग आ सकता है। जयणा को प्राधान्य देकर हम प्रत्येक कार्य कर सकते है। बाकी भगवान तो कहतें हैं कि “आत्मवत् सर्व भूतेषु यदि तुम्हें दुख पसंद नहीं है तो किसी को भी दुख हो वैसी प्रवृति ही नहीं करनी। जयणा के स्थान : 1.पृथ्वीकाय - सभी प्रकार की मिट्टी, पत्थर, नमक, सोड़ा (खार) खान में से निकलते हुए कोयले, रत्न, चाँदी, सोना वगैरह सर्व धातु पृथ्वीकाय के प्रकार हैं। नियम 1. ताजी खोदी हुई मिट्टी (सचित्त) पर से नहीं चलना। लेकिन पास में जगह हो वहाँ से चलना। 2. सोना, चाँदी, हीरा, मोती, रत्न वगैरह के आभूषण पृथ्वीकाय के शरीर (मुर्दे) हैं। इसलिए उनका जरूरत से ज्यादा संग्रह नहीं करना, मोह नहीं रखना, हो सके उतना त्याग करना। 2. अपकाय :- सभी प्रकार के पानी, ओस, बादल का पानी, हरी वनस्पति पर रहा हुआ पानी, बर्फ, ओले वगैरह अपकाय (पानी के जीव) हैं। नियम 1. फ्रिज का पानी नहीं पीना, बर्फ का पानी नहीं पीना एवं बर्फ नहीं वापरना। 2. पानी नल में से बाल्टी में सीधा ऊपर से गिरे तो इन जीवों को आघात होता है इसलिए बाल्टी नल से बहुत नीचे नहीं रखना जिससे पानी फोर्स से नीचे नहीं गिरे। 3. गीजर का पानी उपयोग में नहीं लेना। 4. कपड़े धोने की मशीन में सर्वत्र पानी छानने का संखारे का विवेक रखना। 5. पाँच तिथि (पाक्षिक) तथा वर्ष की छ: अट्ठाई में कपड़े नहीं धोना। हमेशा नहाने वगैरह के लिए ज्यादा पानी नहीं वापरना और साबुन का उपयोग शक्य हो तो नहीं करना। 6. बार बार हाथ, पैर, नहीं मुँह धोना । पानी छानने की विधि : सुबह उठकर रसोई घर तथा पूरे घर का बासी कचरा निकालकर उसे सूखी जगह पर परठवना (डालना)। बर्तन को बराबर देखकर उसमें जीव नहीं हैं, वैसी खातरी करने के बाद उसमें घड़े का पानी डालना। फिर घड़े पर गरणा रखकर उसमें थोडा पानी डालना और फिर घडे के पानी को मात्र हिलाकर उसे बाहर निकालना। पुनः पानी छानकर घड़े में लेना और कपडे अथवा ब्रश से घड़ा धो लेना। फिर जहां घड़ा रखने की जगह हो वह बराबर साफ कर लेना, वरना चिकनापन जम जाय तो उसमें निगोद जीवों की उत्पत्ति हो जाती है। घड़े के अंदर भी चिकास अथवा लील-फुग न हो उसका ध्यान रखना। घड़े को स्थान पर रखकर गरणा रखकर पानी भरना। इस प्रकार पूरा पानी छानने के बाद एक बाल्टी में थोड़ा पानी लेकर उसमें गरणे कों डूबाकर निकाल लेना और पानी को पानी के रास्ते में जाने देना और गरणे को ऐसे ही सुखा देना निचोना नहीं। शाम को साबुन लगाकर धोया जा सकता है, गरणा मैला होने नहीं देना। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 59 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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