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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ जीवन के एकांगी और संकुचित अर्थ : कई स्थूल हार्द वाले लोग जीवन का संकुचित अर्थ पकड़कर उसी राह पर चलते हैं। ऐसे लोगों ने अपने अपने ढंग से, अपनी अपनी सुविधा के अनुसार जीवन का अर्थ समझा है। कुछ लोग कहते हैं - जीवन सुख का सरोवर है, इसके विपरीत कुछ लोगों को जीवन दुख का सागर प्रतीत होता है। कुछ लोग कहते हैं - जिन्दगी कर्तव्य की पगडंडी है। परन्तु यह विचार भी एकांगी है। कई लोग जिन्दगी को एक खेल समझते हैं। जैसे नाटक में विविध पात्र अपना अपना पार्ट अदा करके चले जाते हैं। ऐसे लोग जीवन को एक नाटक समझते है। कुछ लोग जीवन को मधुर संगीत समझते हैं और मस्ती के, बेफिक्री के जीवन को जीवन समझते हैं। कुछ लोग संघर्ष को और कुछ लोग परस्पर सहयोग को जीवन का अर्थ समझते है। कुछ चोरी, डकैती, व्यभिचार, बेईमानी, भ्रष्टाचार आदि में रचेपचे रहने वाले लोग दुःसाहस को ही जीवन का लक्ष्य समझते हैं। कुछ लोग जीने के एक अवसर को जीवन समझते हैं। जीवन क्या है, क्या नहीं ? केवल जन्म लेना ही जीवन का अर्थ नहीं है, कि जो पैदा हो गया उसने जीवन पा लिया। न ही जीवन का अर्थ जन्म लेना, बूढ़ा होना और मर जाना है। जीवन का अर्थ संतानोतपत्ति भी नहीं है, न ही संतान और परिवार के पीछे स्वयं को कुरबान कर देना जीवन है। कोई सौ साल पहले जन्मा और सौ साल बाद मर गया यह भी जीवन नहीं है। जीवन का अर्थ परिवार के लिए जीना नहीं है। अपनी जवानी में उखाड़-पछाड़ करना, बहुत पढ़ लिख जाना, डिगरियां पा लेना या दस बीस लाख रूपये कमा लेना या लंबा चौड़ा व्यवसाय कर लेना, प्रसिद्धि, प्रशंसा या प्रतिभा पा लेना, किसी प्रकार का साहस करके नाम कमा लेना भी जीवन नहीं है। जीवन वह है जो ज्योतिर्मय हो, सुगन्धमय हो - जीवन वह है, जो जन्म लेने से पूर्व भी जीवित था, मरने के बाद भी जीवित रहेगा। तथा वर्तमान में ज्योतिर्मय - प्रकाशमय होकर रहता है वह जीवन है। केवल बल्ब सम हो जाना जीवन नहीं है किन्तु बल्ब का रोशनी से भर जाना जीवन है। ज्योति से युक्त बल्ब के समान ज्ञानादि से या विवेक की ज्योति से युक्त जीवन ज्योतिर्मय है। माटी के दीये तो कुम्हार के यहां लाखों की संख्या में पड़े रहते हैं, लेकिन दीये का ज्योतिर्मय होना महान है, तथैव जीवन रूपी दीप का ज्योतिर्मय होना सच्चे माने में जीवन है। फुलवारी में फूल तो बहुत से खिलते हैं, इसका महत्व नहीं परन्तु फूल का सुगंधमय होना जरूरी है, इसी प्रकार जीवन उसी का नाम है जो सत्य, अहिंसा आदि की सुगंध से ओतप्रोत हो। आध्यात्मिक समृद्धि पा लेना जीवन है : जीवन केवल भौतिकता का पर्याय नहीं है अपितु उससे पार आध्यात्मिक समृद्धि पा लेना जीवन है। अन्तर्जगत को दरिद्र रखकर बाह्य जगत को समृद्ध कर लेने से जीवन सच्चे माने में समृद्ध नहीं होगा। जीवन मंदिर का बाह्य रूप : क्या आंकते ? कुछ विचारकों का कहना है कि जीवन एक मंदिर है। जैसे सिमेंट, लोहे के गर्डर, सरिया, लकड़ी के दरवाजे - खिडकियां, मिट्टी पानी आदि सब मिलकर मंदिर बनता है। उसको लोग मंदिर कहते हैं। वैसे ही केवल शरीर को जीवन नहीं कह सकते। जीवन रूपी मंदिर बना है- शरीर के साथ साथ मन, इन्द्रियां, प्राण, अंगोपांग, मस्तिष्क, हृदय, हाथ-पैर आदि सब मिलकर यह जीवन मंदिर बनता है। जैन दर्शन की भाषा में कहूँ तो आहार पर्याप्ति, शरीर पर्याप्ति, इन्द्रिय पर्याप्ति, श्वासोच्छवास पर्याप्ति, भाषा पर्याप्ति और मनः पर्याप्ति, इन 6 पर्याप्तियों से मानव जीवन पर्याप्त बनता है, मगर स्थूल दृष्टि से देखें तो यह जीवन का बाह्य रूप है, जो जीवन मूल्य से अनभिज्ञ व्यक्ति के जीवन में भी पाया जाता है। जीवन का अंतरंग रूप क्या और कैसा ? जीवन का अंतरंग रूप तब बनता है जब मन, बुद्धि, चित्त, हृदय, प्राण, इन्द्रियां, वचन और काया आदि शरीर से संबद्ध अंगोपांग सम्यग्ज्ञानादि रत्नत्रय के रंग से रंगे हो, अथवा ये आत्मविश्वास और शुभाशा से ओतप्रोत होकर वात्सल्य, श्रद्धा और समर्पणता के रंगों से जीवन-प्रासाद रंगा हो। वस्तुतः अंतरंग रूप ही जीवन का वास्तविक एवं मौलिक रूप है। हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 31 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति Con.intaisional
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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