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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन व
ग्रंथ
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अथवा बाहर खड़े किसी परिचित व्यक्ति के सुपुर्द कर देनी चाहिए। कारण कि यदि ऐसे पदार्थ भूल वश हमारे पास रह जाते हैं तो फिर वे उपयोग करने योग्य नहीं रहते हैं ।
2. अचित्त का त्याग :- प्रभु की पूजा के लिए धूप-दीप, अक्षत, नैवेद्य आदि अचित वस्तुऐं लेकर मंदिर में प्रवेश करना चाहिए। रिक्त हाथ कभी भी प्रभु के दर्शन करने के लिए नही जाना चाहिए। अर्थात अपने उपयोग की वस्तुओं का त्याग कर, प्रभुजी की पूजा की वस्तुऐं लेकर मंदिर में जाना चाहिए ।
3. उत्तरासन:- मंदिर में प्रवेश करने के पूर्व उत्तरासन करना चाहिए अर्थात चदरे से अपने शरीर को अलंकृ त करना चाहिए। कंधे पर चदरा डाले बिना मंदिर में प्रवेश करना उचित नहीं कहा जा सकता।
4. अंजलि :- मंदिर में प्रवेश करते ही जब सर्व प्रथम प्रभु की प्रशांत मुखाकृति के दर्शन हो वैसे ही अपने दोनों हाथ जोड़कर मस्तक झुकाकर 'नमो जिणाणं' कहना चाहिए। कारण कि उस समय दर्शनार्थी का रोम-रोम प्रभु के दर्शन कर फुलरित हो जाता है। हृदय में भावोल्लाद की लहरें तरंगित होने लगती है। ऐसे उत्कृष्ट भावों के साथ "नमी जिणाणं" पद का उच्चार कर ही मंदिर में प्रवेश करना चाहिए।
5. प्राणिधान :- मंदिर में प्रवेश करने से लेकर बाहर निकलने तक मन, वचन, माया को प्रभु की शक्ति में एकाकार कर देना ही प्राणिधान है दूसरे भाब्दो में यह भी कह सकते हैं कि प्रभु दर्शन में अपने आप को तल्लीन का देना चाहिए।
ऊपर जिन पाँच बातों की हमने चर्चा की उन्हें शास्त्रीय भाषा में पाँच अभिगम कहतें हैं। जो पाँच प्रकार का विनय कहा जाता है।
मंदिर जाना :
जब मंदिर जाने से पहले कुछ सावधानियाँ आवश्यक होती है कारण कि हम अन्यत्र कहीं जाते हैं तो उसके पूर्व कुछ तैयारियाँ करते हैं तो फिर मंदिर जैसे परम पावन स्थान पर जाते समय तैयारी क्यों नहीं ? किंतु उसका अर्थ यह भी नहीं कि मंदिर जाने के लिए कोई विशेष तैयारियां करनी पडती है।
मंदिर जाने के पूर्व अपनी-अपनी सामर्थ्यानुसार वस्त्राभूषण धारण कर पूजन सामग्री थाली में सजा कर याचकों को यथाशक्ति दान देते हुए मंदिर जाना चाहिए। यदि दान देने की सामर्थ्य न हो तो उसमें विचार करने जैसी कोई बात नहीं है। परमात्मा की भक्ति के गीत गाते हुए मंदिर जाना चाहिए। मंदिर जाते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अपने स्पर्श से किसी झुंड जीव की हत्याएं न हो।
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यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना आवश्यक प्रतीत होता है वह यह कि प्रायः यह देखा गया है कि समृद्ध परिवार के लोग अपनी कार आदि में बैठ कर मंदिर जाते है। यह उचित नहीं ठहराया जा सकता ऐसे मंदिर जाने से शासन की प्रभावना नहीं होती है। यदि आपके निवास से मंदिर अधिक दूरी पर है और आप वहाँ प्रतिदिन नहीं जा सकते हैं तो कम से कम सप्ताह में एक बार ही मंदिर जाकर सविधि पूजा आदि करना चाहिए। सायंकाल स्कूटर से मंदिर जाना भी उचित नहीं है। उससे दुर्घटना आदि का भी भय बना रहता है मंदिर जाने या मंदिर जाने मात्र की इच्छा का जो फल बताया जाता है वह इस प्रकार है। :
* मंदिर जाने की इच्छा मात्र करने पर एक उपवास का फल !
* मंदिर जाने के लिए खड़ा होने पर दो उपवास का फल !
** मंदिर जाने हेतु पैर उठाने पर तीन उपवास का फल !
* मंदिर जाने के लिए चलना आरंभ करने पर चार उपवास का फल !
* मंदिर जाने के लिए थोड़ा चलने पर पाँच उपवास का फल !
* मंदिर दिखने पर एक मास के उपवास का फल !
* मंदिर पहुँचने पर छः मास के उपवास का फल !
* मंदिर के द्वार के पास पहुँचने पर एक वर्ष के उपवास का फल !
* प्रदक्षिणा करते समय एक सौ वर्ष के उपवास का फल ! * देवाधि की पूजन करने पर एक हजार वर्ष के उपवास का फल ! * प्रभु की स्तुति-स्तवनादि करने पर अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
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