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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ लड़के की मां ने यह सुना तो उसका कलेजा टूक-टूक हो गया । विचार किया "मैं इसी आधार पर पुत्र के भविष्य के स्वप्न देख रही थी, पर वह स्वप्न ही भंग हो गया । अन्य किसी स्वजाति के घर यह सम्बन्ध होता तो मैं स्वयं मुखिया के पास जाती और उन्हें सारी बातों से अवगत करा कर न्याय मांगती । पर बागड़ ही खेत को खा रही है, तब किसके पास जाकर अपना दुःख सुनाऊ । मैं आज असहाय हूं विवश हूं पड़ौसी सम्पन्न है सशक्त है, उसकी मेरी बराबरी कैसे हो सकती है । इसलिये अब तो चुप रहना ही अच्छा है इसी में मेरी भलाई है ।" इधर मुखिया पुत्र के विवाह की तिथि निश्चित हो गई । घर रोशनी से जगमगा उठा। मुखिया पुत्र की बारात में नगर व आसपास के गावों के सैकड़ों व्यक्ति सम्मिलित थे। मंगल गीतों से नगर मोहल्ला गूंज रहा था । नगर के नर-नारी अपने -अपने घरों की खिडकियों में बैठकर बारात देख रहे थे । बारात चलते-चलते उसी सेठ शांतिलाल के घर के सम्मुख आई सेठानी ने बारात देखी तो अपने फूटे भाग्य पर उसे रोना आ गया, हृदय में दुःख का ज्वार उमड़ पड़ा वह फूट-फूट कर रोने लगी । मुखिया ने खुशियों और मंगल गीतों के बीच इस घर से रोने की आवाज सुनी मुखिया स्तब्ध रह गया। इस खुशी के अवसर पर आज कोई रो रहा है, तथा उसके रोने में बड़ा दर्द हैं, बड़ी छटपटाहट है । मुखिया ने संकेत करके बारात को आगे बढ़ने से रोक दिया । मुखिया ने ध्यान देकर सुना तो एक महिला और एक बालक के रोने की आवाज आ रही थी । मैं समाज का मुखिया हूँ मेरा कर्तव्य है कि उसके दुःख दर्द व रोने का कारण जानूं, उसके आंसू पोछू और आज के दिन कोई रो रहा है तो वह अवश्य ही बहुत दुःखी होगा, मेरी खुशी तभी है जब समाज और सर्व हारा वर्ग में खुशी हो।" मुखिया ने यह सोचा और बिना विलंब किये सीधे ही उस घर में पहुंच गया । मां रो रही है, पुत्र उसके आंचल में मुंह छिपाये सिसकियां ले रहा हैं । मां अपने अश्रुओं से उसे नहला रही है। मुखिया को अपने सामने खड़ा देखकर मां बेटे चकित होकर खड़े हो गये । मुखिया ने कहा "माताजी! आज खुशी के अवसर पर आप रो रही है? क्या बात है?" लड़के के सिर पर हाथ फिराते हुए मुखिया ने कहा "बेटा ! देखो! मेरे पुत्र का विवाह हो रहा है और तुम रो रहे हो?" सेठानी ने साहस करके मुखिया को जय- जिनेन्द्र करके कहा हैं, आपकी बात समाज के अतिरिक्त अन्य समाज के लोग भी मानते हैं सुनने को पधारे हैं, पर आप उसे दूर नहीं कर सकते ।" मुखिया ने उसे आश्वासन दिया उसे अवश्य दूर किया जायेगा ।" "मुखिया जी ! आप समाज के मुखिया आपका न्याय प्रसिद्ध है मेरा दुःख आप I "माताजी ! आपका जो भी दुःख है बे हिचक कहिये, मैं वचन देता हूँ "मुखियाजी ! आप जैसे न्यायप्रिय मुखिया आज जिस कन्या सेठानी ने मुखिया से आश्वासन पाकर कहा के साथ आपका पुत्र विवाह करने जा रहा है, वह कन्या किसकी मांग है आपको ज्ञात है? उस कन्या की सगाई किसी के साथ हो चुकी है, उसका पिता वाग्दान कर चुका है, क्या यह आपकी जानकारी में है?" सेठानी की बात सुनकर मुखिया असमंजस में पड़ गया । उसने कहा- "सच ! मुझे कुछ मालूम नहीं था, मैंने इस विषय में पूछा भी नहीं । आप बतलाइये किसकी मांग है वह ?" सेठानी ने कहा – “मुखियाजी ! वह इस लडके की मांग है । इसके पिता के साथ लड़की के पिता की घनिष्ठ मित्रता थी, और हम दोनों ही समृद्धिशाली थे। भगवान ने उन्हें हमसे छिन लिया। धन भी छाया की तरह लुप्त हो गया। हम गरीब हो गये, अनाथ हो गए। अनाथ और गरीब को कौन अपनी कन्या दे, इसलिये उस गरीब की मांग आज आपके पुत्र के साथ विवाह किया जा रहा है। आपके लिये खुशी का दिन है हमारे लिये रोने का।" मुखिया ने सेठानी से क्षमा मांगते हुए कहा - "माताजी ! आप निश्चित रहें, यह सगाई या सम्बन्ध जिसके साथ हुआ है उसके साथ ही विवाह होगा । चलो बेटा ! तैयार हो जाओ !" मुखिया को विलंब लगते देख समाज हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 68 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति ary.org
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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