________________
श्री गष्टसंत शिगमणि अभिनंदन पंथ
"बेटा ! तूने उसे नहीं पहचाना है । वह कोई वृद्ध या निर्धन ब्राह्मण नहीं था । वह तो अपना कुल देवता था। इतने में चन्दन ने देखा, जिस खूटे से बैल बंधा था उसे उखाड़ कर भागने का प्रयास कर रहा था ।
चन्दन दौड़ कर पहुँचा, पर जब तक बैल खूटा उखाड़ चुका था । अन्धकार की काली छाया हट गई, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई । पुण्य का उज्ज्वल प्रकाश झोंपड़ी में चारों ओर फैल गया । उसने मां को आवाज लगाई मां देखो तो यहां तो बड़ा-सा गड्ढा हो गया है और कुछ कलश जैसा भी नजर आ रहा है । पास आकर देखो तो सही यह क्या है?
माँ ने देखकर कहा - बस बेटा ! आज से अपने शुभ दिन आ गये, ये कोरे घड़े नहीं है, इसमें हीरे जवाहरात के आभूषण हैं । स्वर्ण मोहरों का भंडार है । अब सब कुछ ठीक हो जायेगा ।
सबसे पहले चन्दन ने पिता के हाथ की निशानी भवन मुक्त कराया । जिन नौकरों ने विश्वासघात किया था। स्वयं आ आकर क्षमा मांगने लगे । जैसा पूर्व में कारोबार चलता था पुनः चलने लगा ।
माँ-बेटे का जीवन सुख से व्यतीत होने लगा । चन्दन युवा हो गया था, अतः माँ ने संभान्त परिवार की सुशील कन्या देखकर विवाह कर दिया ।
सेठ की चतुराई एक सेठ अकेला ही व्यापार करने के उद्देश्य से विदेश के लिये चल पड़ा । उसने अपने साथ में किसी को नहीं लिया। मार्ग लम्बा और विकट था, फिर भी उसके मन में इसकी चिन्ता नहीं थी । उसे अपने आप पर विश्वास था । उसे अपनी बुद्धि और अपने विवेक पर विश्वास था । वह सदा अपनी स्वयं की बुद्धि और विवेक पर चलता था ।
मार्ग में जब वह चला जा रहा था, तब उसे एक व्यक्ति मिला । दोनों आपस में साथी बन गये । सेठ ने भी विचारा, चलो एक से दो भले । दूसरा साथी एक ठग था । राहगिरों को ठगना ही उसका काम था । ठग पहले दूसरे का साथी बनता और फिर विश्वास प्राप्त कर धीरे-धीरे उसे ठगता । उसने कुछ दूर चलने पर सेठ पर भी अपना हाथ साफ करने का विचार किया । चलते-चलते संध्या हो जाने पर एक गांव के बाहर रात्रि निवास के लिये वे ठहरें। रात्रि को सोने से पहले उस ठग ने सेठ से कहा – यह गांव ठीक नहीं है, अपनी सम्पत्ति को संभालकर ठीक से रखना । सेठ ने अपना बटुआ दिखाकर उस ठग साथी से कहा – यदि यह मेरा है तो कहीं जा नहीं सकता और यदि यह मेरा नहीं है तो, फिर इसकी रक्षा किसी तरह की नहीं जा सकती । उस ठग ने समझ लिया कि यह सेठ पूरा बुद्धू है । इस पर हाथ साफ करना आसान है ।
रात्रि में सेठ सो गया । वह ठग भी सोया तो नहीं किन्तु सोने का नाटक करने लगा । जब उसने देखा कि सेठ को गहरी नींद आ गई है, तब वह उठा और सेठ के वस्त्रों की तलाशी लेने लगा । बहुत देर तक तलाश करने पर भी उसके हाथ वह बटुआ नहीं लगा । आखिर थक कर और परेशान होकर वह ठग भी सो गया । प्रातःकाल जब दोनों उठे, तब उस ठग साथी ने सेठ से कहा कि अपनी पूंजी को संभाल लो, वह सुरक्षित है या नहीं । सेठ ने सहजभाव से कहा – क्या संभाल लें, सब ठीक है । देखो यह बटुआ मेरे पास ही है । वह ठग जिस बटुए को तलाश करता रहा । प्रातःकाल उसे सेठ के पास देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ । दूसरे और तीसरे दिन भी इसी प्रकार घटना घटी । वह ठग विचार करने लगा - आखिर बात क्या है? इसके पास ऐसा कौनसा जादू है, जिससे वह रात में इस बटुए को गायब कर देता है । आखिर उसने सेठ से पूछा - सेठ! मैं तुम्हारे साथ तुम्हें ठगने के लिये रहा, परन्तु उसमें मैं सफल नहीं हो सका । मैं इस रहस्य को जानना चाहता हूँ कि दिन में वह बटुआ आपके पास रहता है, किन्तु रात्रि में कहां चला जाता है? सेठ ने हँसकर कहा - जिस दिन पहली बार तुम मुझे मिले, उसी दिन तुम्हारे मुंह की आकृति देखकर मैं यह समझ गया था, कि तुम एक ठग हो । बात यह है कि बटुआ कहीं आता जाता नहीं था, अन्तर इतना ही था कि दिन में वह मेरी जेब में रहता था और रात्रि को वह तुम्हारी जेब में
हेमेन्व ज्योति * हेमेन ज्योति
49 हेमेठद ज्योति* हेमेन्त ज्योति
For Paolo