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श्री गष्टसंत शिरोमणि अभिनंदन था
सेठ ने उस मोती के स्वामी से कहा- देख लिया अपने मोती का चमत्कार ! यह भेद किसी को न देना और लाख मन लोहे का भी सोना बनाना हो तो इसी प्रकार बना लेना ।
युवक ने अतीव कृतज्ञता के साथ कहा - आपने मेरा बड़ा उपकार किया है । परन्तु मैं इस सोने का क्या
करूँ?
सेठ ने कहा - यह आपका है । जो आपकी इच्छा हो वही करो । युवक बोला - मैं इसे लेकर नहीं जा सकता । जाऊँगा तो मार्ग में ही लूट लिया जाऊँगा ।
सेठ ने कहा, बीस मन सोने को छिपा भी नहीं सकते और न छिपाया जा सकता है । इसके पीछे तो जीवन से ही हाथ धोने का अवसर आ सकता है ।
उस युवक ने कहा - सेठजी ! आपने मेरा जो उपकार किया है, उसे जीवन पर्यन्त नहीं भूल सकता । कोई लफंगा मिल जाता तो मेरा मोती ही ठग लेता । पर आपने मेरे प्रति असीम उदारता प्रदर्शित की । आप न मिलते तो यह मोती कोड़ियों में चला जाता । मैं इसका मूल्य और महत्व नहीं समझ सकता था । मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ । पर यह भी थोड़ा है और यह आपकी ही बुद्धि का प्रताप है ।
सेठ ने कहा - नहीं, नहीं ऐसा करना योग्य नहीं ।
तब युवक ने कह दिया - यदि आप मुझे जीवित रखना चाहते हैं तो इसे स्वीकार कर लीजिये और यदि मृत्यु के मुँह में झोंकना चाहते हैं तो मुझे दे दीजिए । क्या मैं उसे लेकर जा सकता हूँ? नहीं, यह मेरे प्राणों का ग्राहक हो जायेगा।
यह कहकर और सेठ को वह सब सोना सौंपकर वह चल दिया । जब उसे सोने की आवश्यकता पड़ती मोती से पूरी कर लेता । उस मोती का नाम चन्द्रकान्ति है ।
३ सच्चा अपराध देश के एक उच्च न्यायालय में ऐसा अपराध प्रस्तुत हुआ जो एकदम सच्चा था, पर वकील ने अपनी बहस से उसे झूठा सिद्ध कर दिया । बात इस प्रकार है -
एक सेठ संध्या समय अपनी बग्गी में बैठकर भ्रमण या वायु सेवन को निकला और स्वयं ही घोड़ों को तेजी से हांक रहा था । वह घोड़ों को सरपट दौड़ाता जा रहा था ।
एक वृद्धा अपने पुत्र को साथ लेकर सामने की ओर से आ रही थी । किसी कारण से अचानक घोड़े भड़क उठे और बहुत प्रयत्न करने पर भी सेठ के अधिकार में नहीं रहे, नियंत्रण से बाहर हो गये । बग्गी लडके के ऊपर से निकल गयी। लड़का घायल हो कर वही गिर पड़ा । उसके किसी कोमल स्थान पर से पहिया निकला था इसलिये थोड़ी देर पीड़ा से छटपटाते हुये उसकी मृत्यु हो गई।
लडके के गिरते ही वहां लोगों की भीड़ जमा हो गई पुलिस भी घटना स्थल पर पहुँच गई । वृद्धा से सारी बातें मालूम करके पुलिस ने सेठ को बन्दी बना लिया । यथा समय अभियोग लगाया गया, वृद्धा की ओर से शासकीय अभिभाषक बहस कर रहा था और सेठ ने अपना निजी वकील किया था। पेशियां पर पेशियां पड़ने लगी अन्त में एकबार बहस के लिये एक तिथि निश्चित हो गई ।
सेठ को मालूम था कि मेरे द्वारा ही लड़के की हत्या हुई है और मैं किसी प्रकार भी बेदाग मुक्त नहीं हो सकता । मेरी जीत होना असंभव है । यह सोचकर वह चिन्तित हो रहा था, तभी एक व्यक्ति उसके पास पहुंचा। उसने कहा सेठ जी मेरी बात मानो तो बहस के लिये नगर के प्रसिद्ध वकील को नियुक्त करलो, वरना आप जेल जाने से बच नहीं सकते।
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