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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
देर रात में भोजन करने के पश्चात् व्यक्ति सो जाता है । भोजन करने के पश्चात् पानी पीना चाहिये, जो वह नहीं पी पाता जिससे भोजन के पाचन पर प्रभाव पड़ता है । भोजन पच नहीं पाता है ।
देर रात में भोजन करने के पश्चात् व्यक्ति सो जाता है । जबकि भोजन करने के पश्चात् उसे कुछ चहल कदमी करनी चाहिये जिससे भोजन पचने में सुगमता रहे । भोजन करने के बाद सो जाने से भोजन वैसा का वैसा ही पेट में पड़ा रहता है । जिसके परिणाम स्वरूप भारीपन का अनुभव तो होता ही है, साथ ही अपच के कारण उदररोग होने के भी अवसर अधिक रहते हैं और एक बार उदर रोगों ने घर देख लिया तो फिर जीवन भर पीछा नहीं छोड़ते हैं ।
देर रात को भोजन करने पर उसमें पड़े हुए क्षुद्र जीव जंतु कृत्रिम प्रकाश में दिखाई नहीं देते हैं और वे भी उदरस्थ हो जाते हैं । जो रोग उत्पत्ति के कारण बनते हैं ।
इसी प्रकार कभी कभी और विशेषकर वर्षा ऋतु में भोजन पर फफूंद उत्पन्न हो जाती है जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है । यह फफूंद रात के कृत्रिम प्रकाश में दिखाई नहीं देती हैं । मनुष्य भोजन के साथ उसका भी सेवन कर लेता है और बाद में बीमार पड़ जाता है । वह अपनी रुग्णता का कारण नहीं जान पाता है ।
देर रात को भोजन करने वाले व्यक्तियों का पेट प्रायः भारी रहता है और दिन भर आलस बना रहता है । उसमें जैसी चाहिये वैसी स्फूर्ति भी नहीं रह पाती हैं ।
इसके विपरीत जो व्यक्ति सूर्यास्त से पहले ही भोजन कर लेता है वह सदैव चुस्त, दुरूस्त और स्फूर्तिवान बना रहता है । उसका स्वास्थ्य भी प्रायः ठीक ही रहता है । उसमें कार्यक्षमता भी अधिक रहती है ।
सूर्य के प्रकाश में भोजन करने से भोजन में पड़े हुए क्षुद्र जीव अथवा फफूंद आदि स्पष्ट दिखाई दे जाती है जिससे मनुष्य के स्वास्थ्य को हानि नहीं पहुंचती है ।
अनेक पाश्चात्य विचारकों ने भी रात्रि भोजन का निषेध करते हुए सूर्यास्त से पूर्व भोजन करने को मानव हित में बताया है ।
अस्तु बंधुओ ! रात्रि भोजन का त्याग करें । अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान रखते से पहले भोजन करने की आदत अपनाये व अपने स्वयं का हित साधन करें । 36. युवकों से
वर्तमान समय में यह आम शिकायत मिल रही है कि आज का युवक अनुशासनहीन और उच्छृखल होता जा रहा है । घर पर वह अपने माता-पिता की आज्ञा नहीं मानता और विद्यालय में अपने गुरुजनों की । उसका दोष सब युवकों को देते हैं । इसके मूल कारण की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है । अनुशासनहीनता, उच्छृखलता और धर्म विमुखता का मूल कारण युवकों को बाल्यकाल से संस्कारों का नहीं मिलना है । यदि माता-पिता प्रारम्भ से ही अपनी संतान का जीवन संस्कारित करे तो उन्हें इस प्रकार की शिकायत करने का अवसर ही नहीं मिलेगा।
युवकों में अनेक शक्तियां होती हैं । उनमें तेजस्विता है, तत्परता है, तन्मयता है, उत्साह और उमंग है । नया कुछ करने की अद्भुत क्षमता भी है । युवकों की शक्तियों का उपयोग उनके स्वयं के विकास के लिये करना चाहिये, जिससे समाज और राष्ट्र का उत्थान हो सके । आज का युवक ही कल का नागरिक है । इसलिये समय रहते उन्हें अपने कर्तव्य निश्चित करना चाहिये । व्यर्थ के वितंडावाद में उन्हें नहीं उलझना चाहिये ।
सबसे पहली बात तो यह है कि युवकों को चाहिये कि वे अपने माता-पिता और गुरुजनों की अवहेलना करना बन्द कर उनकी आज्ञा का पालन करे । अनुशासन में रहना सीखे और उच्छृखलता का त्याग करें । ऐसा करने से उन्हें अपने भविष्य का निर्धारण करने के लिये सोच विचार करने का पर्याप्त समय मिलेगा । जब युवक अपने भविष्य के लिये अपना लक्ष्य निर्धारित कर ले तो फिर उसके अनुरूप कार्य करने का दृढ़ संकल्प लेकर उसमें जुट जाये । दृढ़ संकल्पी व्यक्ति के सामने कितनी ही समस्यायें क्यों न आये वे सब शनैः शनैः दूर होती चली जाती है।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 18 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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