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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
एवं धम्मस्स विणओ, मूलं परमो से मुक्खे ।
जेण कित्ति सुअं सिग्धं, नीसेसं चाभिगच्छइ || तात्पर्य यह है कि विनय धर्म का मूल है और मोक्ष उसका सर्वोत्तम फल है । विनय से कीर्ति बढ़ती है तथा प्रशस्त श्रुतज्ञान का लाभ होता है ।
एक पाश्चात्य विचारक ने विनय को ही ईश्वर प्राप्ति का एक मात्र साधन मानते हुए कहा है - "विनय ही एक ऐसा मार्ग है जो हमें ईश्वर तक पहुंचाता है । अन्य समस्त मार्ग चाहे वे दूसरे अनेक गुणों से युक्त हों, हमें पथभ्रष्ट कर देंगे।" सच्ची साधना और तप वहीं कहलाता है जो गर्वरहित होकर विनयपूर्वक किया जाए -
विनयेन विना चीर्णमः अभिमानेन संयुतम |
महच्चापि तपो व्यर्थम, इव्येतदवधार्यताम || तात्पर्य यह है कि यह समझ लेना चाहिए कि विनय के बिना और अभिमान के साथ किया हुआ महान तप भी व्यर्थ हो जाता है ।
जैन शास्त्रों में विनय के माहात्म्य को तथा उसके प्रभाव को विस्तार से वर्णित किया गया है । यहां इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि मनुष्य को अपने आचार विचार में विनय गुण को अपनाना चाहिये । विनय से प्रगति के सब द्वार स्वतः खुल जाते हैं ।
24. वाणी
एक कहावत है - "करे कौन और भरे कौन ।" जीभ का काम अभिव्यक्ति है । जीभ वाणी के रूप में विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान करती है । यदि जीभ द्वारा उल्टी-सीधी बातें कह दी जाती है तो उसका परिणाम सिर को भुगतना पड़ता है । इसलिये कभी भी ऐसी वाणी नहीं बोलना चाहिये जिसका परिणाम दुःखद हो । सदैव मधुरवाणी का प्रयोग करना चाहिये। कहा भी है :
ऐसी वाणी बोलिये मनका आपा खोय ।
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय || कठिन से कठिन कार्य भी मधुर वाणी से सम्भव हो जाते हैं । मधुरवाणी वशीकरण मंत्र का काम करती है। कटु वचनों के द्वारा ईर्ष्या, द्वेष, वैर-विरोध तथा क्रोध उत्पन्न होता है । उसके विपरीत मधुरवाणी से सर्वत्र मैत्री भाव उत्पन्न होता है, अमृत-सी वर्षा होती है । मृदु-वाणी का चमत्कारिक प्रभाव होता है । इससे प्रेम, अपनत्व शांति और संतोष की प्राप्ति होती है । मनुष्य का सच्चा आभूषण वाणी है । मृदु-वाणी ही मनुष्य को सौन्दर्य प्रदान करने वाला सच्चा आभूषण है । वाणी में अद्भुत शक्ति होती है । अतः मनुष्यों को चाहिये कि ऐसी वाणी बोले जिससे सबको सुख मिले । मधुरवचनों से बोलने वाले का सम्मान बढ़ता है । कर्कश और कटु वचनों से आदमी का मान-सम्मान घटता है | कौआ और कोयल दोनों एक समान है किंतु कोयल अपनी मीठी वाणी के लिये सबको प्रिय है । आपको कोयल के समान बनना है | 25. दया
क्रौंच पक्षी को बहेलिये का तीर लगा और वह आहत होकर तड़फने लगा । उसे देखकर वाल्मीकि का हृदय दयार्द्र हो गया और कविता के बोल फूट पड़े । किसी के दुःख को देखकर यदि आपके हृदय में उसके प्रति सहानुभूति उत्पन्न हो और आप उसके दुःख को दूर करने का प्रयास करते हैं तो यह दया है । महात्मा तुलसीदास ने दया को धर्म का मूल कहा है -
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 10 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
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