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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था जिस समय पूज्य मुनिराज का स्वर्गवास हुआ, उस समय वे पू. आचार्य भगवंत के प्रकाश्यमान अभिनंदन ग्रंथ को अंतिम रूप देने में लगे हुए थे। आपने ग्रंथ के सम्पादक उज्जैन निवासी डॉ.तेजसिंह गौड़ तथा मुद्रक नेहज प्रिंटिंग प्रेस, बम्बई के श्री जयेशभाई तथा श्री परेशभाई को बुला लिया था और पिछले दो-तीन दिन से अभिनंदन ग्रन्थ को अंतिम रूप देने में व्यस्त रहे। दिनांक 28-8-2002 की रात्रि लगभग दस बजे तक अभिनंदन ग्रंथ की विषयवस्तु को अंतिम रूप दे दिया गया था और प्रकाश्यमान चित्रों को भी लगभग अंतिम रूप दिया जा चुका था, केवल कुछ ही चित्रों के विषय में विचार करना था। अभिनंदन ग्रन्थ की विषय वस्तु तो प्रेसवालों को सौंप दी गई और वे रात्रि में बम्बई के लिये प्रस्थान कर गये। चित्रों को दिनांक 29-8-2002 को अंतिम रूप देना था किन्तु शायद नियति को कुछ और ही मंजूर था। दिनांक 29-8-2002 को पू. मुनिराजश्री प्रीतेशचंद्रविजयजी म.सा. का एकाएक निधन हो गया। उन्हें अस्वस्थावस्था में तत्काल चिकित्सालय भी ले जाया गया, किन्तु वहां पहुंचने तक पंछी उड़ गया था, पिंजरा रह गया था। चिकित्सालय में डॉक्टरों ने परीक्षणोपरांत उन्हें मृत घोषित कर दिया। दिनांक 29-8-2002 को अपरान्ह उनका काकीनाड़ा में ही अंतिम संस्कार कर दिया। वर्षावास समाप्त हुआ और पू. आचार्यश्री ने अपने मुनिमंडल के साथ काकीनाड़ा से विहार कर दिया और वे गुम्मीलेरु तीर्थ पधारे। यहां से विहार कर आप पेदीमीरम तीर्थ पधारे, जहां पौष कृष्णा दशमी को भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म कल्याणक मनाया गया और पर्वाराधना की गई। पेदीमीरम में पू. आचार्यश्री के करकमलों से प्रतिष्ठित श्री राजेन्द्र सूरि जैन दादावाड़ी में प्रथम बार गुरु सप्तमी पर्व आपके सान्निध्य में समारोहपूर्वक मनाई गई। पेदीमीरम के कार्यक्रम समाप्त होने पर पू. आचार्यश्री ने यहां से विहार कर दिया और मार्गवर्ती ग्रामों में विचरण करते हुए आपका पदार्पण राजमहेन्द्री में हुआ, जहां माघ शुक्ला षष्ठी को पू. आचार्यश्री के करकमलों से भगवान् सुमतिनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा समारोहपूर्वक सानन्द सम्पन्न हुई। राजमहेन्द्री में ही पू. आचार्यश्री का 20वां आचार्य पद प्रदानोत्सव समारोहपूर्वक मनाया गया। इस अवसर पर गुरुभक्तों का उत्साह देखने योग्य था। राजमहेन्द्री के कार्यक्रम सम्पन्न हुए और पू. आचार्यश्री ने यहां से विहार कर दिया। मार्गवर्ती ग्राम-नगरों में धर्म ध्वजा लहराते हुए आप विजयवाड़ा पधारे। आपके यहां पदार्पण से गुरुभक्तों में हर्ष की लहर व्याप्त हो गई। चूंकि मालवा की ओर से बार-बार यह विनती आ रही थी कि अब आपश्री मालवा की ओर पधारे। मारवाड़ के गुरुभक्तों की भी विनती आपकी सेवा में निरंतर पहुंच रही थी। मारवाड़ में कुछ प्रतिष्ठादि कार्य सम्पन्न होना थे। अतः पू. आचार्यश्री ने विजयवाड़ा से अपना विहार मालवा की ओर कर दिया। विजयवाड़ा से मालवा तक का विहार काफी लम्बा रहा। अनेक मार्गवर्ती ग्रामी-नगरों में गुरुगच्छ का नाम उज्ज्वल करते हुए, जिनवाणी का प्रचार-प्रसार करते हुए पू. आचार्य भगवंत अपने मुनिमंडल के साथ दिनांक 9-3-2003 को श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पधारे। आपके श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पधारने के पूर्व ही आपके पधारने के समाचार प्राप्त हो गये थे। अतः दिनांक 9-3-2003 को बड़ी संख्या में गुरुभक्त आपकी अगवानी करने के लिये एक-दो दिन पूर्व ही श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पहुंच चुके थे। आपके यहां पदार्पण से गुरु भक्तों में उमंग एवं उत्साह का संचार होगया। लगभग एक माह तक पू. आचार्यश्री की श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पर स्थिरता रही। इस अवधि में दर्शनार्थियों का सतत् आवागमन बना रहा। दिनांक 10-4-2003 को पू. आचार्यश्री ने श्री मोहनखेड़ा तीर्थ से. राजस्थान-मारवाड़ की ओर विहार कर दिया। ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए आप नरता पधारे, जहां आपके कर-कमलों से भगवान् मुनि सुव्रतस्वामी आदि जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा समारोहपूर्वक सानंद सम्पन्न हुई। इस अवसर पर आचार्यश्री प्रद्युम्नविमल सूरीश्वरजी म.सा. विशेष रूप से उपस्थित हुए थे। यह प्रतिष्ठोत्सव श्री हरण-उदाणी परिवार की ओर से आयोजित किया गया था। नरता के प्रतिष्ठोत्सव की समाप्ति के पश्चात आपने यहां से विहार कर दिया और विभिन्न ग्रामों में विचरण करते हुए आप भीनमाल पधारे। स्मरण रहे कि पू. आचार्यश्री का लगभग पांच वर्षों के पश्चात् भीनमाल पदार्पण हुआ था। हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 54हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्ट ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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