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________________ श्री राष्टसंत शिरोमणि अभिनंदन था शेषकाल में आप अपने गुरुदेव के साथ विभिन्न क्षेत्रों में विचरण कर धर्म प्रचार करते रहे | धीरे धीरे समय व्यतीत हुआ और वर्षावास का समय निकट आने पर गुरुदेव तपस्वी श्री हर्षविजयजी म.सा. ने सं. 2007 के वर्षावास के लिये भीनमाल श्री संघ को साधु भाषा में स्वीकृति प्रदान का दी । यथा समय वर्षावास के लिये भीनमाल में समारोहपूर्वक आपका नगर प्रवेश हुआ । इसके साथ ही वर्षावास कालीन धार्मिक क्रियायें प्रारम्भ हो गई । स्मरण रहे कि भीनमाल में ही हमारे चरित्रनायक ने संयमव्रत अंगीकार किया था और प्रथम वर्षावास भी यही व्यतीत किया था । सं. 2007 माघ शुक्ला त्रयोदशी को दासपा में प्रतिष्ठा सम्पन्न करवानी थी, अतः आप अपने गुरुदेव के साथ दासपा पधारे । प्रतिष्ठा सम्पन्न होने के पश्चात् आप भीनमाल होते हुए कागमाला पधारें, जहां तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. तथा आपके पावन सान्निध्य में जिनेश्वर भगवानों की पांच प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई । सं. 2008 का वर्षावास आपने अपने गुरुदेव के साथ भीनमाल में व्यतीत किया । इस वर्षावास की उपलब्धि यह रही कि यहां संघ में वर्षों से मतभेद चले आ रहे थे । गुरुदेव तपस्वी श्री हर्षविजयजी म.सा. प्रयासों से वे मतभेद समाप्त हो गये और संघ में एकता स्थापित हो गई । इन प्रयासों में हमारे चरित्रनायक गुरुदेव की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही । संयम जीवन के दस वर्ष व्यतीत हो गये । उस अवधि में हमारे चरित्रनायक ने बहुत कुछ सीखा । अपने इस जीवन में आपने त्याग और सेवा का अपना लक्ष्य रखा । साथ ही आपने बच्चों में संस्कार वपन करना भी शुरू किया । आप संस्कारों के महत्व से भलीभांति परिचित हैं । आप इस तथ्य से भी परिचित थे कि आजकल की भागमभाग की जिन्दगी में बालकों को परिवार में बराबर संस्कार नहीं मिल पाते हैं । परिणाम स्वरूप बच्चे दिग्भ्रमित भी हो सकते हैं । इस दृष्टि से आपने यह प्रयास प्रारम्भ किया । प्रातः उठकर नवकार महामंत्र का स्मरण करना। माता-पिता तथा अन्य वरिष्ठ सदस्यों के चरण स्पर्श करना । अभिवादन में जय जिनेन्द्र का उच्चार करना । नियमित रूप से मंदिर जाकर दर्शन वंदन पूजन करना । सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अचौर्य, ब्रह्मचर्य का पालन करना। इतना ही नहीं आपने व्यसन मुक्त समाज के निर्माण के लिये भी व्यसनों के दोषों को गिनाते हुए व्यसनों से बचने की भी प्रेरणा प्रदान की । अनेक बालकों को आपने गुरुवंदन भी सिखाया । जिनालय में प्रवेश करते समय कौन कौन सी सावधानियों रखनी चाहिये । यह भी सिखाया । इन सब बातों का परिणाम यह हुआ कि आप जहां भी विराजते आपके पास बालकों की भीड़ लग जाती । बालकों में संस्कार वपन करने के कार्य से आपको भी सुखानुभूति होती । बाद में तो आपने त्याग, सेवा और बालकों में संस्कार वपन को अपने दैनिक जीवन का अंग बना लिया। जो आज तक चल रहा है । सं 2009 का वर्षावास हमारे चरिनायक ने अपने गुरुदेव तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. के साथ अपनी जन्मभूमि बागरा में व्यतीत किया । बागरा निवासी अपने लाड़ले सपूत को नये रूप में देख देखकर तथा उनकी शिक्षाओं को सुन सुनकर मुग्ध हो रहे थे । उन्हें इस बात की विशेष प्रसन्नता थी की बागरा की माटी में जन्मे, पले-पुसे साधक का उन्हें चार माह सान्निध्य मिलेगा । वर्षावास विभिन्न धार्मिक क्रियाओं के साथ व्यतीत हो गया। लोगों की अहसास ही नहीं हो पाया कि चार माह की यह अवधि कैसे निकल गई । वर्षावास की समाप्ति पर आपने अपने गुरुदेव के साथ थराद की और विहार कर दिया, जहां उपधान तप सम्पन्न करवाया । सं. 2012 का वर्षावास ग्राम आहोर में अपूर्व धर्माराधना के साथ सम्पन्न हुआ । इंद शरीरं व्याधि मंदिरम के अनुसार इस समय तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. का स्वास्थ्य कुछ अस्वस्थ रहने लगा था । उपचार भी चल रहा था किंतु कोई लाभ नहीं हो रहा था । इसी समय थराद श्रीसंघ ने अपनी हार्दिक इच्छा प्रकट की कि मुनिराजश्री थराद में स्थिरता रखे । थराद श्रीसंघ की विनती को मान देकर आपने अपने शिष्यों के साथ थराद की ओर विहार कर दिया । आप थराद पधार गये । हमारे चरित्र नायक दत्तचित्त होकर अपने गुरु की सेवामें लग गये। वजाघात: तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म. की अस्वस्थता की सूचना चारों ओर प्रसारित हो गई थी । परिणामस्वरूप देश के विभिन्न भागों से गुरुभक्तों का थराद आवागमन शुरू हो गया । हमारे चरितनायक गुरुदेव मुनिराज श्री हेगेल्या ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 35 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति www.fingbrary of
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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