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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
दीक्षोत्सव :
मुमुक्षु पूनमचंद को संयम मार्ग पर चलने की अनुमति मिल जाने से मार्ग की सभी बाधाएं समाप्त हो गई। मुमुक्ष पूनमचंद अब अपने गुरुदेव के श्रीचरणों में समर्पित होकर संयम मार्ग पर अग्रसर होना चाहता था । कोई भी जैनाचार्य अथवा मुनिराज सहज ही किसी को दीक्षा प्रदान नहीं कर देते हैं । वे दीक्षार्थी को परखते हैं । यह देखते हैं कि दीक्षार्थी वास्तव में दीक्षा लेकर आत्मकल्याण के मार्ग पर अग्रसर होना चाहता है अथवा किसी उत्साह अथवा अन्य किसी कारण के उपस्थित होने पर दीक्षा लेने चाहता है । कहीं दीक्षार्थी दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् कहीं संयम मार्ग का त्याग तो नहीं कर देगा । इन सब बातों को देख पारख कर कसौटी पर खरा उतरने के पश्चात् ही दीक्षाव्रत प्रदान किया जाता है ।
दीक्षा प्राप्ति के लिये मुमुक्षु पूनमचंद प्रातः स्मरणीय विश्वपूज्य गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के शिष्यरत्न परम तपस्वी, विद्वदरत्न पूज्य मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. की सेवा में विचरण करने लगा । वैराग्य काल में पूनमचंद ने अपने गुरुदेव की पूरी पूरी सेवा की, अन्य मुनि भगवंतों की भी वह सेवा करता, उनकी आज्ञा के अनुसार काम करता, उनकी आज्ञा के अनुसार ही आचरण भी करता । पूनमचंद के आचरण से गुरुदेव मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. ने शीघ्र ही जान लिया कि पूनमचंद का वैराग्य पक्का है, वह वास्तव में दीक्षा का अधिकारी है । उन्होंने सभी प्रकार से विचार कर एक दिन मुमुक्षु पूनमचंद की दीक्षा का मुहूर्त घोषित कर दिया । पूज्य मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. का वि.सं. 1999 का वर्षावास भीनमाल के लिए स्वीकृत हो चुका था। इस बात को ध्यान में रखते हुए और श्रीसंघ भीनमाल की भावना को सम्मान देते हुए पू. मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. ने वि.सं. 1999 आषाढ़ शुक्ला द्वितीया को भीनमाल में मुमुक्षु पूनमचंद को दीक्षा प्रदान करने का शुभमुहूर्त प्रदान कर दिया । दीक्षा का शुभमुहूर्त मिलने पर मुमुक्षु पूनमचंद की प्रसन्नता असीम हो गई । उसका मन प्रफुल्लित हो गया । रोम रोम खिल उठा ।
आषाढ़ शुक्ला द्वितीया वि. सं. 1999 भीनमाल में अविस्मरणीय बन गया । वैसे भी भीनमाल प्राचीनकाल से ही जैनधर्म का केन्द्र रहा है । भीनमाल राजस्थान के जालोर जिले का एक प्राचीन नगर है और नगर ने अनेक उतार चढाव देखे हैं । कुछ जैन जातियों का यह उत्पत्ति स्थान भी रहा है । अनेक जैनाचार्य एवं मुनिराजों की यह जन्मभूमि एवं कर्मभूमि रहा है । प्रातः स्मरणीय परम पूज्य दादा गुरुदेव श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमदविजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की भी इस नगर पर कृपा रही है । इसी भीनमाल नगर में मुमुक्षु पूनमचंद का दीक्षोत्सव आयोजित हुआ । आषाढ़ शुक्ला द्वितीया वि.सं 1999 को शुभमुहूर्त में गुरुदेव प.पू. मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. ने अपार जनसमूह की साक्षी में दीक्षार्थी पूनमचंद को दीक्षाव्रत प्रदान कर नूतन मुनि का नाम मुनिराज श्री हेमेन्द्र विजयजी म.सा. रखकर अपना शिष्य घोषित किया । इस अवसर पर जैनधर्म की जय महावीर स्वामीकी जय गुरुदेव श्री राजेन्द्रसूरिजी म. की जय के निनादों से भीनमाल का गगन मण्डल गूंज उठा । उपस्थित जनसमूह ने नव दीक्षित मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजी म. सा. के भाग्य की मुक्तकंठ से सराहना की । अब आपका संयमी जीवन प्रारम्भ हो गया । संयम की राह पर :
मुनि जीवन में प्रवेश के साथ ही आपकी मनोकामना पूर्ण हो गई । अब आप अपने नये जीवन के अनुसार रहने लगे । श्रमणाचार के लिये आवश्यक ज्ञान की प्राप्ति अपने गुरुदेव के सान्निध्य में प्राप्त करना प्रारम्भ कर दिया। आपका प्रथम वर्षावस वि. सं. 1999 का अपने गुरुदेव परम तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. के सान्निध्य में भीनमाल में व्यतीत हुआ । अध्ययन के अतिरिक्त आपने अपने आपको अपने गुरुदेव एवं वरिष्ठ मुनिराजों की सेवा में समर्पित कर दिया । गुरुदेव की आज्ञा का पूर्ण निष्ठा के साथ पालन करना, उनकी सेवा करना, अन्य मुनिराजों की सेवा करना लगभग यही कार्य आपने अपने प्रथम वर्षावास में किया । गुरुदेव की आज्ञा से आगमग्रंथों का विशेष कर दशवकालिक का स्वाध्याय भी करते रहते । इस वर्षावास में आपको मुनि जीवन के आचरण को श्रमणाचार को समझने और उसे अपने जीवन में उतारने का अवसर मिला । आप इस बात के लिये सदैव सतर्क रहते कि आचरण में कहीं कोई शिथिलता न आने पावे । जैसा श्रमणाचार शास्त्रों में बताया गया है, गुरुदेव ने जैसा बताया है, सिखाया है उसमें किसी प्रकार की कमी नहीं रहने पाये ।
हेमेन्ट ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 32 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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