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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जब बालक के नामकरण का समय आया तो श्रीमान ज्ञानचन्दजीने अपने परिजनों से परामर्श किया और सबके परामर्श से सद्य प्रसूत पुत्ररत्न का नाम पूनमचंद रखा गया। वास्तव में यह पुत्ररत्न परिवार में पूनम के चांद की भांति ही था। इस पुत्र के जन्म से परिवार में जिस प्रसन्नता और शांति का अनुभव किया गया, उसका वर्णन कर पाना सम्भव नहीं है। यह तो गूंगे के द्वारा गुड खाने के समान हैं ।
समय की गति के साथ बालक पूनमचंद चन्द्रमा की कला की भांति बड़ा होने लगा । उसकी किलकारियों से घर आंगन गूंज उठा । वह अपनी बाल सुलभ क्रीड़ाओं से परिवार के सभी सदस्यों को मंत्र मुग्ध करने लगा । बालक पूनमचंद को अपनी गोद में लेने उसे खिलाने की होड़ सी रहती थी । अड़ोस पड़ोस के किशोर तथा स्त्रियां भी उसेलेकर आनन्द का अनुभव करते। जब वह कुछ बड़ा हुआ और पांव पांव चलने लगा तो वह घर में कम पडोसियों के यहां अधिक रहने लगा । बाल क्रीड़ाओं में पांच छः वर्ष किधर व्यतीत हो गये किसी को अहसास ही नहीं हुआ ।
भविष्यवाणी :
बालक पूनमचंद की शिक्षा आरम्भ हो गई । आवश्यक व्यावहारिक शिक्षण उसने प्राप्त किया । इसी बीच एक पड़ोसी ने विचित्र भविष्यवाणी कर दी । उसकी भविष्यवाणी से परिवार में चिंता की रेखायें खिंच गई । हुआ यों कि वह पड़ोसी एक समय श्रीमान ज्ञानचन्दजी के पास बैठा बतिया रहा था। इसी समय बालक पूनमचंद भी अपने पिता के समीप किसी कार्य से आया । पड़ोसी ने पूनमचंद को देखा । उसके ललाट पर उसकी दृष्टि पड़ी और वह पड़ोसी चिंतन के सागर में डूब गया । पूनमचंद वहां से चला गया । श्रीमान ज्ञानचन्दजी ने अपने पड़ोसी को चिंतन मुद्रा में देखा तो सहज ही पूछ लिया "अरे, आप कहां खो गये? क्या बात है ?
"हां, हां ! आप क्या कह रहे थे ?" पड़ोसी का चिंतन भंग हुआ और पूछा ।
"मैं कह रहा था कि आप किस चिंता में डूब गये थे?" श्रीमान ज्ञानचन्दजी पूछा ।
"चिंता नहीं, चिंतन कहो ।" पड़ोसी ने कहा । "ठीक है चिंतन ही सही । यह बताओ कि बात क्या थी ?" श्रीमान ज्ञानचन्दजी ने कहा ।
"आपके पुत्र को देखकर मैं चिंतन में डूब गया था ।" पड़ोसी ने कहा ।
"क्यों ? क्या बात देखी आपने मेरे पुत्र में? बताइये ।" श्रीमान ज्ञानचन्दजी ने पूछा ।
"मैं जो कुछ भी कहूं उसका आप बुरा मत मानना । मैं आपके पुत्र के ललाट जो देखकर भविष्य की बात कर रहा हूं।" पड़ोसी ने कहा ।
"आप बतावें तो सही । उसमें बुरा मानने की बात ही कहां है ।" श्रीमान ज्ञानचन्दजी ने कहा ।
"पूनमचंद के ललाट को मैंने आज ध्यान से देखा है। उसके आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि आपका यह पुत्र अधिक समय तक गृहस्थी में नहीं रहेगा। यह दीक्षा व्रत लेकर जैन शासन का नायक बनेगा ।" पड़ोसी ने बताया ।
"ओह ! यह बात है । मैं तो कुछ और ही समझ रहा था ।" श्रीमान ज्ञानचन्दजी ने कहा कुछ क्षण मौन रहकर उन्होंने कहा- "मैं ऐसा प्रयास करूंगा कि पूनमचंद पर जैन साधु साध्वियों की परछाई तक नहीं पड़े, फिर यह किस प्रकार दीक्षा ले पायेगा। न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।”
"आप चाहे जितने और जैसे उपाय कर लेना, मेरा दृढ़ विश्वास है कि पूनमचंद जैन शासन का नायक अवश्य बनेगा।" पड़ोसी ने कहा और फिर वह अपने घर चला गया ।
इन दोनों के बीच हो रही चर्चा का कुछ अंश श्रीमती उज्जमदेवी तथा परिवार के अन्य सदस्यों ने भी सुना । पड़ोसी के चले जाने के पश्चात् श्रीमान ज्ञानचन्दजी से परिवार के लोगों ने सब कुछ जानना चाहा । जैसा पड़ोसी ने कहा था वही उन्होंने दोहरा दिया । इस भविष्यवाणी को सुनकर परिवार में एक नई चिंता व्याप्त हो गई । अब
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