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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म. : संक्षिप्त जीवन परिचय
- मुनि प्रीतेशचन्द्रविजय
- मुनि चन्द्रयशविजय राजस्थान अपनी अनेक विशेषताओं के लिये विश्व विख्यात है । राजस्थान के ग्राम-नगर तथा क्षेत्रों की भी अपनी अलग अलग विशेषताएं है और उन विशेषताओं के कारण उनकी विशिष्ट पहचान है | राजस्थान में जहां शूरवीरों का बाहुल्य रहा है, वहीं दानवीरों की भी कमी नहीं रही है । इसके साथ ही यहां तपवीर, धर्मवीर, क्षमावीर आदि भी हुए जिन्होंने इस प्रदेश को गौरवान्वित ही किया । यहां यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि इस प्रदेश की शीलवती नारियों ने भी प्रदेश के गौरव में चारचांद लगाये हैं ।
राजस्थान में जहां भक्तिरस की गांगा बही वहीं राजनीतिक उथल-पुथल भी रही । एक ही प्रदेश पर सत्ता परिवर्तन के कारण अनिश्चितता एवं असुरक्षा के वातावरण ने लोगों को पलायन करने के लिये बाध्य कर दिया, तो कुछ समय की प्रतीक्षा कर संकट समाप्त होने तक मौन साधे वहीं बने रहे । इस प्रकार के उतार चढ़ाव राजस्थान के जालोर जिले में भी आए । एक समय तो ऐसा भी आया कि जैन मंदिरों पर शासन ने अपना अधिकार जमा लिया और उसे शस्त्रागार बना दिया । जालोर की यही स्थिति थी । विश्ववंद्य श्रीमज्जैनाचार्य गुरुदेव श्रीमदविजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के सदप्रयासों से इस स्थिति का निराकरण हुआ और फिर उनके द्वारा जैन मंदिर का उद्धार हुआ। आज जालोर दुर्ग स्थित जिनालय तीर्थ स्थान का स्वरूप ग्रहण कर चुके हैं ।
उसी जालोर जिले में एक कस्बाई ग्राम है बागरा । बागरा में जैन मतावलम्बी तो अच्छी संख्या में निवास करते ही है, यहां जैनधर्म की स्थिति भी काफी अच्छी रही है । यहां के जैन धर्मावलम्बियों की श्रद्धाभक्ति को ध्यान में रखते हुए समय समय पर जैनाचार्यो, जैनमुनियों, जैन साध्वियों का सतत् आवागमन बना रहता था और आज भी यही स्थिति है । यहां अनेक मूर्धन्य जैनाचार्यों, जैन मुनियों और जैन साध्वियों ने वर्षावास कर इस अवधि में धर्म की गंगा प्रवाहित ही है । इसके अतिरिक्त यहां समय समय पर अनेक महत्वपूर्ण कार्यक्रम भी सम्पन्न हुए हैं। यहां का श्रावक वर्ग भी काफी समृद्ध हैं ।
बागरा पर आचार्य भगवंत श्रीमद विजय यतीन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की विशेष कृपा थी तभी तो उन्होंने यहां तीन वर्षाकाल किये । उनकी कृपा से यहां जैन गुरुकुल की स्थापना भी हुई थी और उन्होंने यहां उपधान तप भी करवाया था। यहां के जैन मंदिर प्राचीन है तथा दर्शनीय भी हैं | बागरा गांव का बाह्य प्राकृति दृश्य भी मनमोहक है ।
बागरा गांव जालोर से भीनमाल जाने वाले मार्ग पर स्थित है । यहां रेल सुविधा भी है । रेलवे स्टेशन बागरा रोड समीप ही है और उससे अहमदाबाद तथा जोधपुर तक पहुंचा जा सकता है । सड़क यातायात के माध्यम से भी बागरा मुख्य मार्ग पर स्थित होने के कारण मुख्य नगरों से जुड़ा हुआ है । यही बागरा हमारे चरितनायक राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्यदेव श्रीमद विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का जन्म स्थान है । यह बागरा मारवाड़ के नाम से प्रख्यात है । परिवार प्रशस्ति :
जालोर जिलान्तर्गत इस बागरा गांव में एक पोरवाल जाति का परिवार रहता था । पोरवाल जाति हमारे देश की जातियों में अपना प्रमुख स्थान रखती है । इस जाति की उत्पत्ति ईसा की आठवीं शताब्दी के लगभग मानी जाती है । जैनाचार्य श्री स्वयंप्रभ सूरि से प्रतिबोध पाकर इस जाति की उत्पत्ति हुई । इस जाति में जैनधर्मावलम्बी एवं वैष्णव धर्मावलम्बी दोनों ही पाये जाते हैं ।
बागरा में निवास कर रहे पोरवाल परिवार के मुखिया श्रीमान् ज्ञानचन्दजी थे । श्रीमान ज्ञानचन्दजी के दो पत्नियां थी। पहली पत्नी का नाम सौ. उज्जमदेवी तथा दूसरी पत्नी का नाम सौ. कंकूबाई था । इस दम्पती के दो पुत्र घेवरचंद एवं पूनमचंद तथा पांच पुत्रियां 1. मुनिबाई 2. लहेरीबाई 3. जड़ावीबाई 4. मोहिनीबाई और 5. शांताबाई थी।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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