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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ ।
सौधर्मवृहत्तपागच्छ के तृतीय आचार्य श्री भूपेन्द्रसूरि को संवत 1973 में जावरा में आचार्य पद प्रदान कर गच्छ नायक का दायित्व दिया गया । आपका जन्म संवत 1944 में तथा दीक्षा संवत 1952 में हुई थी । दीक्षा के पश्चात् आपके गुरु श्री राजेन्द्रसूरि ने आपको मुनि नाम दीपविजय दिया था । श्री अभिधान राजेन्द्र कोश के सम्पादन व प्राकृत भाषा, व्याकरण, न्याय तर्क के श्रेष्ठ विद्वान थे । संवत 1993 की माघ शुक्ल सप्तमी को 49 वर्ष की आयु में आहोरमें आप स्वर्गवासी हुए ।
श्री भूपेन्द्रसूरि के स्वर्गवासोपरान्त संवत 1995 की वैशाख शुक्ल दसमी को इतिहासविद् श्री यतीन्द्रसूरि आचार्य बनें। आपकी दीक्षा श्री राजेन्द्रसूरि जी द्वारा संवत 1954 में हुई थी। श्री धनचन्द्रसूरिजी ने आपको व्याख्यान-वाचस्पति व उपाध्याय पद से अलंकृत किया था । आपका विहार क्षेत्र व्यापक था साथ ही विहार के मध्य आने वाले स्थानों । के मूर्तिलेखों व अन्य ऐतिहासिक संदर्भो को एकत्र व लिपिबद्ध करने का महत्वपूर्ण कार्य भी आपने किया । आपके प्रयासों से विभिन्न स्थानों पर शालाएं व गुरुकुल की स्थापना हुई । आपके कर कमलों से लगभग 45 प्रतिष्ठा/अंजनशलाकाऐं हुई व आठ वृहत् संघ यात्रा को नेतृत्व प्रदान किया । आपने लगभग 60 पुस्तकों की रचना की तथा 18 शिष्यों को दीक्षा प्रदान की । पौष शुक्ल तृतीया संवत 2017 (21 दिसम्बर 1960) को मोहनखेडा में आपने अपनी नश्वर देह को त्याग दिया जहां आपका एक सुंदर स्मृति मंदिर बनाया गया है ।
श्री यतीन्द्रसूरीश्वरजी के स्वर्गवास के पश्चात तीन वर्ष तक वरिष्ठ मुनि श्री विद्याविजयजी ने संघ प्रमुख का दायित्व निर्वाह किया । फाल्गुन शुक्ल तृतीयां संवत 2020 को श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में आपको समारोहपूर्वक आचार्य पद से अलंकृत किया गया। तत्पश्चात आप श्रीमद्विजय विद्याचन्द्रसूरि के नाम से विख्यात हुए । आपने अनेक प्रतिष्ठाऐं कराई व तीर्थों के विकास हेतु प्रयत्नशील रहे । श्री मोहनखेड़ा तीर्थ का आधुनिक विकास आप ही की
गाम है । आप इस तीर्थ को जैन विद्या व संस्कृति के केन्द्र के रूप में स्थापित करना चाहते थे। आपने अनेक मुमुक्षों को मुनि दीक्षा प्रदान की जिनमें इन पंक्तियों का लेखक भी शामिल है। निरन्तर मंत्र साधना के प्रभाव से आपको कुछ सिद्धियाँ भी प्राप्त थी । आप एक सरस कवि व सिद्धहस्त लेखक थे । आपने अनेक रचनाएँ की । आप अंतिम समय तक अन्तेवासियों को विभिन्न मार्गदर्शन देते रहें । अल्प अस्वस्थता के पश्चात संवत 2036 की आषाढ़ शुक्ल तृतीया (18 जुलाइ 1980) को मोहनखेड़ा तीर्थ में आपका स्वर्गवास हो गया जहां आपका स्मृति-मंदिर बनाया गया है ।
सौधर्मवृहत्तपागच्छ के वर्तमान आचार्य श्रीमद्विजय हेमेन्द्रसूरिजी है जो श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वरजी की परम्परा में श्री विद्याचन्द्रसूरीश्वरजी के उत्तराधिकारी बनें । आपको संवत 2040 में आहोर में आचार्य पद प्रदान किया गया । आपके कुशल नेतृत्व व मार्गदर्शन में गच्छ निरन्तर प्रगति कर रहा है ।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 12
हेमेन्द ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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