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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ। बार समाज से प्रार्थना की परन्तु उसका परिणाम शून्य ही आया और कोई भी इन को अपनाने के लिये किसी तरह से भी तैयार नहीं हुये । इस विषय में बड़े बड़े गृहस्थ, राजकीय कर्मचारी, संत-साधु आदि ने अपना-अपना पूरा परिश्रम किया, परन्तु फिर भी इस कार्य में उन्हें कुछ भी सफलता नहीं मिली । इस तरह से यह विषय लगभग 250 वर्ष से चल रहा था और किसी तरह से भी कोई आशा दृष्टिगोचर नहीं हो रही थी । पूज्य स्व. गुरुदेव समर्थ प्रभावक योगीराज प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज उस समय जैन शासन में एक महान जैनाचार्य थे । खाचरौद श्रीसंघ के अत्याग्रह से अपने शिष्य परिवार के साथ आप यहां चातुर्मास हेतु विराजमान थे । उस समय आपका अलौकिक प्रभाव और तप-त्याग एवं अद्भुत सर्वत्र विश्रुत हो चुकी थी । 'चिरोलावालों ने गुरुदेव की सेवा में उपस्थित होकर व्याख्यान के बाद विनम्र दुःख भरी प्रार्थना की कि हे गुरुदेव! आप जैसे समर्थ धर्माचार्य एवं योगसिद्ध आदेय वचनी के विराजमान होते हुए भी यदि हमारा पुनरुद्धार नहीं हुआ तो फिर हमारा भविष्य किसी तरह से सुधरने वाला नहीं है । आपही एक हमारा उद्धार करने में समर्थ हैं । आपके आदेय और योगसिद्ध वचनों को कोई भी कदापि अस्वीकार नहीं करेगा । गुरुदेवने कहा कि आप लोग किसी तरह से हताश न हों और आपका कार्य शीघ्र ही संपन्न होगा । गुरुदेव के इस कथन में शासनप्रेम और धर्मजागृति भरी भावना को देखकर उन्हें बड़ा भारी संतोष हुआ और उन्होंने कहा कि इस विषय में जो मान, अपमान, दण्ड आदि जैसा भी आपकी आज्ञा से मिलेगा हम सहर्ष शिरोधार्य करेंगे । गुरुदेव की योगशक्ति और तप-त्यागमय जीवन का समाज पर इतना प्रबल प्रभाव था कि जो व्यक्ति किसी तरह भी लाख रुपये के दण्ड से और समाज पंचों के जूते शिर पर उठाने पर भी माफी देने के लिये कदापि तैयार नहीं थे और इस कार्य को जो असंभव ही मानते थे वे ही व्यक्ति गुरुदेव के प्रभावशाली वचनों और धर्ममर्म की व्याख्या से इतने आकर्षित हुए कि उन्हें आखिर में अपना निर्णय बदलना ही पड़ा । फलतः अन्य में बिना किसी दण्ड के प्रेम एवं स्वधर्मी के नाते सारी मालवा प्रान्तीय समाजने उनका पुनरुद्धार करके उनको पूर्ववत् अपने में मिला लिया। यह गुरुदेव के आदेय वचन और उनकी अलौकिक तप त्यागमय आदर्श जीवन का ही उदाहरण है । इसी तरह से अन्य भी कई प्रकार की आश्चर्यकारी घटनाएँ आपके जीवन से संबन्धित हैं । कितने ही राजा, महाराजा बड़े-बड़े विद्वान्, योगी, सन्यासी, साधु और जैन-जैनेतर धर्माचार्यों ने आपकी सात्विक योगसिद्धि, सत्यनिष्ठता, निःस्पृहता एवं कठिनतम साध्वाचार पालन की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है । गुरुदेवने अपने जीवन में जिस क्रान्ति और सत्य वस्तु के प्रचार से समाज में आनेवाली शिथिलता को दूर की है वह इतिहास के पृष्ठों पर और जैन समाज में चिरकाल के लिये स्मरणीय बनी रहेगी । आपकी अटल धैर्यशालिनी शान्त मुद्रा, लुभावनी मनमोहिनी आकृति प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित कर लेती थी । कई योग्य व्यक्ति गुरुदेव के भक्त या शिष्य कहलाने में अपना बड़ा भारी महत्व मानते थे और उनकी भक्ति कर जीवन को सफल हुआ समझते थे । इस अर्द्धशताब्दी के नायक आप है जो विक्रमीय बीसवीं शताब्दी के महान पुरुषों में से एक हैं । जैन और जैनेतर समाज में आपके त्याग, तपोबल और योगशक्ति की कई एक कथायें प्रचलित है । आपकी विद्वता और समयज्ञता के विषय में तो लिखना ही क्या है । आपकी अनेक प्रकार की विशेषताओं को अन्तकरण में स्मरण कर भक्तिभरी श्रद्धा से शिर चरणों में सहसा नत हो जाता है । विद्वता के परिचयार्थ तो आप का रचित साहित्य ही पर्याप्त है जिसमें श्री अभिधान राजेन्द्र कोश सर्वोपरि एक प्राकृत महाकोश है । "स जीवति यशो यस्य' इस सूक्ति के अनुसार गुरुदेव का निर्मल यश सदा के लिये अमर बन चुका है । 'त्रिस्तुतिः' का पुनरूद्धार करना आपके ही सार्मथ्य में था । शुभम् हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 5 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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