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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
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भव्य विमा - स्वर - भाल रखें हृदय विशाल,
सच्चे समाज शिक्षक, युवा पथ प्रदर्शक,
महायशस्वी, तपस्वी, आध्यात्मिक ज्ञानी है ।
संयम पथ - पथिक, ध्यान-योगी हैं अधिक,
मानवता के पुजारी, पारदर्शी उपकारी,
'पारदर्शी का वन्दन करते अभिनन्दन,
मृदुल स्वभावी गुरु, मधु मम वाणी है ।
जिन - धर्म प्रचारक, सम्प की निशानी हैं ।
हेमेन्द्र सूरीश्वरजी, सन्त स्वाभिमानी है । ।। 8 ।।
राष्ट्रसन्त शिरोमणि, हेमेन्द्र सूरीश्वरजी, प्रतिष्ठाएँ उपधान, संघ- यात्राएँ महान्,
तप - दीक्षा समारोह, महिमा अपार है । कोकिल-कंठी आवाज, जिन-शासन के ताज,
झुकता जैन समाज मानता संसार है । काव्यांजलि है अर्पण कर लें स्वीकार हैं ।
तीन थुई समाज के, आप कर्णधार है ।
श्री विजय हेमेन्द्र सूरीश्वर अष्टक
सभी संपदा त्याग कर धारा संत-स्वरूप ।
- बालकवि मनुराजा प्रचडिया मंगलकलश, 394, सर्वोदय नगर, आगरा रोड, अलीगढ़ - 202001.
बाहर-भीतर एक से बने श्रमण अनुरूप 1|1||
देखा आगम- आंख से, जग को भली प्रकार ।
नश्वरता हरदम दिखी, नैतिकता के द्वार 1121
संयम औ' तप-तेज से किया कर्म का नाश ।
कर्म निर्जरा से जगा, भीतर परम प्रकाश ||3||
लोभ पाप का बाप है, त्यागा उसे त्वरन्त ।
कौतुक सभी कषाय के व्यर्थ किये भगवंत 11411 चय संचय को त्याग कर हुये पूर्णतः रिक्त |
अंतरंग आकाशमय, किया ध्यान अतिरिक्त 115।।
अनेकांत के अर्क हो, हे सूरीश्वर देव ।
वाक् द्वन्द्व सब मिट गये, वंदे तव अतएव ।।6।। सदाचार के ब्याज से, दिये सभी उपदेश ।
जियो स्वयं जीवें सभी महावीर सन्देश |7||
गुरुवर पाकर धन्य हैं, जग के लोग तमाम ।
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 78
सभी वंदना कर रहे, नियमित सुबहू शाम 118 ||
हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
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