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________________ भर कर कहाः ऐसा जान पड़ता है कि अब इस जन्म में मुझे प्रज्वलित करने के लिए अपने शरीर के रक्त की एक एक बूंद उनके भक्त वर्ग के संयम का बांध टूट गया। और उत्तेजन में आचार्य गुरुदेव के दर्शन न होंगे। मेरा यह कितना दुर्भाग्य है। मुझे बहाई। उनके ही अथक प्रयत्नों के सफल से यह विद्यालय जवाबी हैंडबिल छपवा डाला। आप लोग गुरुदेव के चरणों में क्यों नहीं ले जाते?" स्थापित हुआ। ज्योति जली। विद्यालय कायम हुआ। पर उसको वह हैंडबिल छपकर जब आचार्य विजय बल्लभ के देखने में आचार्य ललित सूरि जी म. ने उन्हें आश्वासन देते हुए स्थाई रखने के लिए वे धन न जुटा सके। उनकी आशाअधूरी रह हुए स्थाई रखने के लिए वे धन न जुटा सके। उनकी आशाअधूरी रह आया तो उनके दुःख की सीमा न रही। दूसरे दिन प्रवचन में कहा-"संधवी जी, आपकी बीमारी जल्दी ही मिट जाएगी। आप गयीं। वे जीवन के अन्तिम समय तक कार्यरत रहे। अपने जीवन अत्यन्त ही होगा अपने बारे अत्यन्त दुःखी होकर अपने हृदय के भावों को व्यक्त करते हुए न करें। आपकी अस्वस्थता के समाचार गुरुदेव को का उन्हान आहात दकर जावन-सफल कर दिया। उनका कमठ कहा-"शांति में सुख है, आराधना है और धर्म है। अशांति में पहुंचा दिये गए हैं। अभी आपका प्रवास करना भी ठीक नहीं है। जीवन हमारे लिए एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करता है। अब दःख, विराधना और अधर्म है। इसलिए व्यक्ति को प्रत्येक केवल अरिहंत... का स्मरण चाल रखें। सब ठीक होगा।" यह आपका कर्तव्य है कि उनका जलाइ हुइ ज्ञान का ज्याति म तल परिस्थिति में शांति का मार्ग अपनाना चाहिए।" इतने में समाचार आए कि आचार्य विजय बल्लभ रघुनाथगढ़ भर कर उसे 'अखण्ड ज्योति बनाए रखें और उसकी किरणों से पधार गए हैं, जो वरकाणा से थोड़ी सी दूरी पर था। समस्त राजस्थान आलोकित करें। "अगर तुम सही रास्ते पर चले रहे हो, तुम्हारी आत्मा उस रास्ते को स्वीकार करती है तो निर्भय होकर चलते रहो। अगर जसराजजी को अश्वासन देकर आचार्य ललित सरि जी म. कोई उस रास्ते को गलत कहता है, या तुम्हारे पर मूठे आक्षेप अपने शिष्यों के साथ अगवानी के लिए रघुनाथगढ़ पहंचे। वंदन करता है तो तनिक भी विचलित मत होओ। दुर्जनों का तो काम के बाद उन्होंने आचार्य श्री जी से प्रार्थना की: 'गरुदेव, जसराज ही यह होता है कि यदि कोई सुपथ पर चल रहा है तो उसके पांव जी का जीवन दीपक बुझ रहा है। आप के दर्शन की लालसा से खींचने का हर संभव प्रयत्न करते हैं। जब दुर्जन अपनी कुटिलता अब तक प्राण टिकाए हए हैं। कृपया पधार कर दर्शन देने का कष्ट नहीं छेड़ता तब हमें अपनी सज्जनता क्यों छेड़नी चाहिए। क्षमा और सहिष्णुता करें।" ___आचार्य विजय वल्लभ ने तत्काल बरकाणा के लिए विहार "और यह भी ध्यान रखें कि आग में घी डालने से आग और कर दिया बीच में बिजोवा गांव पड़ा। हजारों लोग उनके स्वागत तेल होता है। मुझे दुःख है कि हमारी ओर से किसी ने जवाबी आचार्य विजय वल्लभ के विचारों एवं कार्यों से बम्बई के संघ के लिए एकत्र हुए थे। उन्हें मांगलिक सनाकर तेज कदमों से हैंडबिल छपवाया है। विरोधियों के निदात्मक हैंडबिलों से मुझे अत्यन्त प्रभावित हुए। बम्बई ने उनके विचारों को 'महावीर जैन वरकाणा पहुंचे। जैसे ही उन्होंने जसराज जी के कमरे में प्रवेश तनिक भी दःख नहीं है। पर इस हैंडबिल ने मुझे अस्वस्थ कर किया, चारों ओर मृत्य का सन्नाटा छाया हुआ था। एक यात्रिक विद्यालय' जैसी संस्थाओं को स्थापित कर क्रियान्वित भी किया। दिया।" संसार की यात्रा से थक कर विश्राम के लिए किसी अनंत लोक की उनके समयानुरूप विचारों को स्वीकार करने वाला विशेषतः शिक्षित, बद्धिजीवी यवावर्ग था। बम्बई में उनको मानने और "क्या आप लोग नहीं जानते हैं कि हम मैत्री, करूणा. स्नेह. ओर जा रहा था। हाथ-पांव ठंडे हो रहे थे। सांस जारों से चल रही थी आचार्य विजय वल्लभ ने उनके ललाट पर हाथ रखा। उनका पूजनेवाला विशाल भक्त वर्ग खड़ा हुआ। जैसे जैसे उनके भक्तों सद्भाव, प्रेम और क्षमा के उपासक हैं। इस प्रकार हैडंबिलबाजी प्रशंसकों एवं शिष्यों की संख्या बढ़ने लगी। साथ ही उनके ईर्ष्यालु से समाज के हजारों रुपये बरबाद होते हैं। समाज के आपसी पावन स्पर्श पाते ही निश्चेष्ट शरीर में पुनः चेतना लोट आयी। विरोधियों की भी संख्या बढ़ने लगी। सौजन्य, आपसी ऐक्य को संकट पैदा होता है। मैं यह स्पष्ट जसराजजी ने आंखें खोली। जिसके तारक दर्शन के लिए प्राण अटके थे उन्हें अपने सम्मुख पाकर वे भाव विह्ल हो गए। चरण शब्दों में कह देना चाहता हूं कि मेरी ओर से मेरे अनुयायियों, बम्बई चातुर्मास में उनसे ईष्या करने वाले वर्ग ने उनके छूने के लिए हाथ बढ़ाकर जैसे ही बैठने का प्रयत्न किया। एक विचारों एवं कार्यों के विरोध में सैंकड़ों हैंडबिल छपवाये। उनके कार्यकर्ताओं और शिष्यों की ओर से यदि कोई हैंडबिल ओर लुढ़कर गये। हंस उड़ गया। निकलेगा तो वह मेरे महान दुःख का कारण होगा। हम उन हैंडबिलों में विजय वल्लभ पर ऐसे कल्पनातीत मिथ्या दोषारोपण महामना पूर्वाचायों के अनुयायी हैं जिन्होंने प्राणांत पीड़ा पहुंचाने उनका मुख प्रसन्नता से खिला हुआ था और ओठों पर मृद किये जाते हैं जिसे पढ़कर विजय वल्लभ का भक्त वर्ग उत्तेजित वाले को भी कभी शाप नहीं दिया था।" मुस्कराहट थी जो अन्तिम दर्शन की प्रसन्नता की साक्षी रूप थी। हो उठता था। पर विजय वल्लभ अपना घोर विरोध होने पर भी शोकमग्न एकत्र जन समूह को संबोधित करते हए आचार्य धैय शांति क्षमा और सहिष्णुता का ही रास्ता अपनाते। वे उनके आचार्य विजय बल्लभ की इस महान उदारता, सहिष्णुता, विजय वल्लभ ने कहा-"आज अपने समाज का एक निष्ठावान, हैंडबिल देखकर बस सहज ढंग से मुस्करा देते। क्षमा और मैत्री का संदेश पाकर श्रद्धानत मस्तक और भी नत सच्चा सेवक चला गया। उसने गोड़वाड़ में ज्ञान की ज्योति एक हैंडबिल उनके विरोधियों ने ऐसा निकाला जिसे पढ़कर हो गये। . For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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