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नींव की ईंट
-अवधनारायणधर द्विवेदी "लड़े सिपाही नाम सरवार का" उक्ति जिस यथार्थवादी ने प्रारंभ की, उसकी सूझ-बूझ को दाद देनी चाहिए। जीवन के प्रायः सभी क्षेत्रों में ऐसा होता है कि वास्तविक कार्यकर्ता दृष्टि से ओझल हो जाते हैं, श्रेय बड़ों को मिलता है। इसे कौन नहीं जानता आज शासन में बड़े-बड़े राजनेता महत्त्वपूर्ण पदों पर कंडली मार कर बैठे हैं, स्तुति-गान कराते हैं पर उन असंख्य कार्यकर्ताओं का कोई नाम तक नहीं लेता, जिन्होंने स्वतंत्रता-संघर्ष में आत्म-बलिदान किया है।
श्री वल्लभ-स्मारक के संदर्भ में राष्ट्रसंत समुद्र सरि के पावन आदेश की चर्चा होती है, वर्तमान जैनाचार्य, जैन-दिवाकर आचार्य इन्द्रदिन्न सूरि का योगदान सराहनीय है। महत्तरा साध्वी मृगावती श्री के बलिदान के अनुरूप उनका समाधि-मंदिर उनकी यशोगाथा का प्रवक्ता है। यह सब ठीक है, सहज है। जिसका जितना योगदान हो उसका उतना गणगान होना ही चाहिए। इससे लोगों को सत्कार्य की प्रेरणा मिलती है। देश, समाज और । धर्म का हित होता है। किन्तु वल्लभ स्मारक के इतिहास में एक । व्यक्ति ऐसा है जिसका कार्य सभी देखते हैं। उसकी परेशानियां अनुभव करते हैं। सहानुभूति भी प्रकट करते हैं। परन्तु श्रेय प्राप्त-कर्ताओं की सूची में उसका नाम नहीं दिखाई पड़ता। वह । ऐसा चाहता भी नहीं, क्योंकि वह कर्म-पथ का पथिक है। जिस मिशन को हाथ में लिया है, वही लक्ष्य है, प्राप्य है। और किसी बात से उसे कुछ लेना-देना नहीं है। किन्तु समाज का कर्तव्य है ।
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