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________________ श्री विजय वल्लभ जैन होम्योपैथिक औषधालय - बीरचन्द भाभू जैन संस्कृति के अनुपम तीर्थ थी आत्म-वल्लभ-स्मारक की होकर हंसते-हंसते जाते हैं। अल्प समय में ही औषधालय ने सहायता का प्रेरणास्पद कार्यक्रम भारत सरकार के मंत्री श्री स्थापना के पीछे महत्तरा श्री मृगावती महाराज की अनपम दृष्टि अपनी सुगंध चारों ओर फैलाई है। आज औषद्यालय में रोगी ही जगदीश टाइटलर, दिल्ली के कार्यकारी पार्षद् (शिक्षा) श्री रही। यह तीर्थ जैन संस्कृति और कला वस्तु की आत्मा मुखरित नहीं आते वरन् औषधालय स्वयं भी उनके द्वार पर जाता है। कुलानंद भारतीय, प्रसिद्ध न्यायविद डा० लक्ष्मीमल सिधवी, करे, इस उद्देश्य के साथ महत्तरा थी की यह भी निरन्तर प्रेरणा महत्तरा श्री को भावनानसार औषधालय संस्था ने एक विकलांग सेवा-प्रणेता, उच्च प्रशासनिक अधिकारी श्री डी.आर. रही कि सेवा, शिक्षा एवं साधना की त्रिवेणी इस तीर्थ से "चलते-फिरते औषधालय सेवा” का भी शुभारम्भ किया है। मेहता तथा सांसद चौ० भरत सिंह एवं श्री अनुपचंद शाह की प्रवाहित होनी चाहिए। 'स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ्य आत्मा का प्रत्येक सोमवार एवं गरुवार को क्रमश: खेडाकलां गांव एवं उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। इन अपंग बहन-भाइयो का कृत्रिम निवास होता है। इस शाश्वत सत्य की प्रतीति महत्तरा श्री रूपनगर के गरीब जरूरतमंद लोगों में जाकर औषधालय रोगियों अंग-उपांग (हाथ-पैर) प्रदान किए गए ताकि ये आत्मनिर्भर हो महाराज को रही और इसी सन्दर्भ में रोगी सेवा का समाज को को चिकित्सा प्रदान करता है। सेवा की उपयोगिता एवं सके। उन्हें आर्थिक सहायता भी दी गई जिससे व खुद के राजगार निरन्तर उनका आह्वान रहा। लोकप्रियता को रेखांकित करने के लिए यह तथ्य काबिलेगौर है से बाइज्जत जिन्दगी जी सकें। इस मौके पर 170 महानभावों ने महत्तरा श्री महाराज की इस करुणामयी सदभावना से कि आसपास की जनता में इस औषधालय के प्रति अति उत्साह मरणोपरान्त अपने नेत्रदान के संकल्प-पत्र भी भरे। राष्ट्रपरुष प्रेरित होकर और उन्हीं की दिव्य कृपा का आशीर्वाद पाकर एवं विश्वास है। डा० साहब एवं उनके सहयोगियों के गांव पं० नेहरू ने अपनी आत्मकथा के समापन पर लिखा है श्रावक श्रेष्ठ, उदारमना, धर्मनिष्ठ स्व. लाला थी धर्मचन्द जैन ने पहुँचने के पूर्व वहाँ के निवासी अन्य सभी व्यवस्थाएं स्वयं कर देते The words are lovely Dark & Deep. रोगियों की सेवा के लिए श्री आत्म-वल्लभ जसवंतधर्म मैडिल हैं। आसपास की जनता के मन में स्मारक प्रति श्रद्धा, सहयोग एवं but I have many promises to keep. फाउंडेशन दिल्ली की स्थापना की। इसी सेवा फाउंडेशन के आत्मीय भाव जागृत करने में यह औषधालय मक सेवा कर रहा and miles to go before I sleep. अन्तर्गत स्मारक परिसर में श्री विजय वल्लभ जैन होम्योपैथिक है। इतने अल्प समय में औषधालय के प्रगति-सेवा-कार्य एवं औषधालय की स्थापना की गई। 15 जून 1985 को 21 सितम्बर 1985 में औषधालय के संस्थापक, लोकप्रियता इसके संचालकों के लिए उत्साह-प्रदायक है और संक्रान्ति-दिवस की पावन बेला पर सेवा के इस संस्थान का श्रावक-शिरोमणि ला० धर्मचन्द जी के देवलोक गमन हो जाने साथ-साथ अधिक उत्साह से कार्य करने के लिए यह प्रेरणास्पद उदघाटन लोकप्रिय सांसद श्री अनपचंद शाह के कर-कमलों द्वारा पर इस औषधालय के निबांध संचालन का दायित्व उनके पुत्र भी है। यह शभारम्भ की बेला है, विश्रामस्थली नहीं। सम्पन्न हुआ। रत्न एवं मेरे बड़े भाई श्री पदमचंद जैन एवम् मैने अन्य ट्रस्टियों औषधालय के विस्तार एवं उसके आधनिकता की अनेक स्थापना से आज तक यह औषधालय निरन्तर रोगी-सेवा में के साथ सम्भाल लिया। योजनाएँ प्रस्तावित हैं। एक्सरे-ई.सी.जी. तथा लैबोरेट्री की निःशुल्क निःस्वार्थ भाव से समर्पित रहा है। अनुभवी, सेवाभावी भाई श्री पदमचंद ने पूर्ण समर्पण एवं निष्ठा-भाव से इस सुविधा उपलब्ध कराने भी विचार है। इस औषधालय के विस्तार डा० तेजिन्द्र बुद्धिराजा आरम्भ से ही इस सेवा कार्य में समर्पण को न केवल निरन्तरता प्रदान की, अपितु सेवा के अनेक नए की योजना है। वर्ष भर में कुछ और स्वास्थ्य सम्बन्धी भाव से जुड़े हैं। लगभग 35 से 50 रोगी प्रतिदिन इस औषद्यालय आयाम भी खोले। फाउंडेशन की ओर से 17 मई 1987 को महान् परियोजनाएं आरम्भ करने का भी संकल्प है। औषधालय की से स्वास्थ्य-लाभ पाते हैं। अनेक प्राचीन एवं असाध्य बीमारियों युगपुरुष, क्रांतिकारी एवम् सामाजिक पुनर्जागरण के अग्रदूत ओर से अति शीघ्र ही कैंसर एवं मधुमेह से पीड़ित रोगियों के जैसे टी.वी., पुराना नजला, चर्म रोग, जोड़ों का दर्द, पथरी जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की दीक्षा-शताब्दी स्वास्थ्य-जांच-शिविर लगाने का कार्यक्रम बनाया जा रहा है। इत्यादि का निदान यहाँ सफलतापूर्वक हो रहा है। कुछ दवा ने के उपलक्ष्य में जीवदया, विकलांग सहायता एवं नेत्रदान समारोह औषधालय के प्रबंधक इस अस्पताल को जन-आकांक्षाओं के काम किया कुछ पुण्यभूमि और इससे जुड़ी पुण्य आत्माओं की का आयोजन परम विदुषी साध्वीश्री सुव्रता श्री महाराज की निथा अनुरूप बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं और इस सद्कार्य में आप दआ ने सहायता की, जिससे रोते-रोते रोगी आते हैं और ठीक में किया गया। इस अवसर पर लगभग 100 विकलांगों की सभी का सहायेग एवं आशीर्वाद प्रार्थित है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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