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________________ जैन स्थापत्य कला की उत्कृष्ट कलाकृति "वल्लभ-स्मारक" -विनोद लाल एन. दलाल अखिल भारतीय स्तर का यह स्मारक एक परम उपकारी अहमदाबाद की शेठ आणंदजी कल्याण जी की पेटी के मुख्य जर्जरित होने पर भी वीतराग प्रभु की यह वीर साध्वी हमेशा गुरु-देव के ऋणों से उऋण होने का एक विनम्र प्रयास है। शिल्पी श्री अमृतलाल भाई त्रिवेदी और उनके सहायक श्री शान्त और आत्मिक रूप से प्रतीत होती थी। रोग बढ़ता गया और चंदुभाई त्रिवेदी को निर्माण का कार्य सौंपा गया। श्री संघ की इस अत्यन्त अमूल्य धरोहर को बचाने के तमाम परम पूज्य आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि जी ने जिन मंदिर, शिक्षण संस्थायें तथा विद्यामंदिरों की स्थापना द्वारा मानव मात्र के वर्तमान गच्छाधिपति, जैन दिवाकर, परमार क्षत्रियोद्धारक, प्रयास निष्फल गये। समग्र जैन समाज को रोता-बिलखता छोड़, कल्याण एवम् उत्कर्ष के लिये अपना समस्त जीवन समर्पित कर चारित्र चूड़ामणि आचार्य श्री विजयइन्द्रदिन्न सूरिजी के जन-जन की प्रिय, वात्सल्यमयी, वल्लभ-स्मारक की स्वप्नदृष्टि और प्रणेता मृगावती 18 जुलाई 1986 की प्रातः 2.15 बजे । दिया था। मानव समाज के इस महान सेवक, आदर्श त्यागी आशीर्वाद तथा प. पूज्य साध्वी श्री मृगावती श्री जी के सानिध्य में । गरूदेव का वि.सं. 2011 में बंबई में देवलोक गमन हुआ। माता परम गुरुभक्त लाला रतनचदारख परम गुरुभक्त लाला रतनचंद रिखबदास जी के कर कमलों से देहत्याग कर महा-प्रयाण कर गई। साध्वी सज्येष्ठा श्री जी के गुरु साध्वी श्री शीलवती श्री जी महाराज तथा उनकी विदषी तारीख 29-1-1988 के शुभ दिन "भूमिपूजन' तथा जैन समाज वियोग का आघात अभी ताजा ही था कि यह भयंकर वज्रपात शिष्य रत्न कांगड़ा तीर्थोद्धारक महत्तरा साध्वी श्री मगावती श्री के अग्रगण्य कार्यकर्ताओं और दस हजार से भी अधिक मानव हुआ। वातावरण में शून्यता व्याप्त हो गई। कार्यकर्ताओं का जी की प्रेरणा से जैन श्री संघ ने आचार्य भगवंत की यशोगाथा मेदिनी की उपस्थिति में अनन्य गरुभक्त लाला खैरायती लाल जी उल्लास और उत्साह हट गया और निर्माण कार्य प्रायःरुक गया। अमर रखने हेत एक भव्य एवम विविधलक्षी स्मारक निर्माण के वरद हस्त से "शिलान्यास" विधिपूर्वक सम्पन्न हुआ और इस कठिन घड़ी में पूज्य मुगावती श्री जी की सयोग्य शिष्या करने का संकल्प किया और इस निमित्त एक कार्य समिति का शुभ घड़ी से निर्माण प्रारंभ हुआ। विदूषी साध्वी श्री सुव्रता श्री जी, श्री सुयशा जी और साध्वी श्री गठन भी किया। महत्तराजी की निश्रा एवम् मागदर्शन में निर्माण कार्य में तीव्र सप्रज्ञा श्री जी ने अत्यन्त धैर्य का परिचय दिया और अचानक आई। गति आ रही थी कि एक अत्यन्त दुखद घटना घट गयी। 9 हुई जिम्मेवारी को उठा लिया। कार्यकर्ताओं को धीरज रख संयोगवश 17-18 वर्ष तक इस दिशा में कोई प्रगति न हो निर्माण कार्य को गतिशील करने की प्रेरणा दी। उन्होंने समझाया । नवम्बर 1985 की शाम पूज्य साध्वी श्री सज्येष्ठा श्री जी सकी। आचार्य श्री जी के पट्टधर शांतमूर्ति विजय समुद्र कि पूज्य श्री के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके द्वारा । प्रतिक्रमण, कल्याणमंदिर, माला जाप आदि क्रियाओं से निवृत्त सूरिश्वरजी महाराज ने अपनी सयोग्य साध्वी श्री मगावती जी को हए ही थे कि वे अस्वस्थ होने लगी। श्वास की गति तीव्र होने लगी शुरू किये हुए कार्य नियत समय में ही सम्पन्न हों। सबकी चेतना । इस कार्य को कार्यान्वित करने हेत वि. सं. 2029 का चार्तुमास फिर जागृत हुई और निर्माण कार्य में गति आने लगी। और कुछ ही क्षणों में किसी भी प्रकार का उपचार उपलब्ध होने से देहली में करने का आदेश दिया। साध्वी श्री जी ने अपने आप को पहले ही 18 मिनटों में उन्होंने समाधिपूर्वक देहत्याग किया। पूज्य मृगावती श्री जी के जीवन काल में ही साधु मंडल और धन्य समझा और गुरुदेव के आदेश को सहर्ष स्वीकार कर भीषण । सेवा. साधना और समर्पण की मर्ति की आत्मा अनंत में लीन हो साध्वी मंडल के लिये दो उपाश्रय, अल्पाहार ग्रह, डिसपेन्सरी गर्मी की परवाह न करते हुए देहली की ओर विहार कर दिया। और स्मारक-कार्यालय के भवनों के "शिल्यान्यास" की तिथियाँ देहली पहुँच कर यहां के कार्यकर्ताओं को एकत्रकर गुरुदेव के निश्चित की गई थीं। साध्वी श्री सव्रता श्री जी की प्रेरणा से यह आदेश को मूर्तरूप देने की प्रेरणा दी। परिणामस्वरूप एक ही वर्ष पूज्य सुज्येष्ठा श्री जी अपने गुरु मृगावती श्री जी की सेवा में सभी कार्य नियत समय में ही किये गये। के अल्प समय में रूप नगर जैन मंदिर से 13 किलोमीटर दूर ग्रांड हमेशा तत्पर रहती थी। उनकी प्रत्येक छोटी-बड़ी ट्रेक राजमार्ग पर जमीन खरीदी गई। आवश्यकताओं का अत्यन्त एकाग्रता से ख्याल रखती थी। वल्लभ स्मारक की योजना का बीज अत्यन्त शाश्वत था वस्तुतः महत्तराजी के लिए वे "माँ" समान थी। उनके अवसान और इसीलिये उपरोक्त अवरोधों के उपरान्त निर्माण कार्य विजय वल्लभ स्मारक योजना को संचारित करने के लिये की हदयविदारक घटना से भी पज्य मगावती जी जरा भी अबाध गति से चल रहा है और यह स्मारिका आपका "श्री आत्म वल्लभ जैन शिक्षण निधि" ट्रस्ट की स्थापना की विचलित न हई। और सतत प्रेरणा देकर स्मारक के निर्माण कार्य आने तक प्रतिष्ठा का कार्य 10.12.89 को सम्पन्न हो चुका गई। ट्रस्ट के पेट्रन, जैन समाज के अग्रणी नेता और प्रसिद्ध को गतिमान किया। परन्तु नियति कुछ और ही थी, अभी कठिन स्मारक भवन के स्थापत्य की माहिती संक्षेप में बन उद्योगपति शेठ श्री कस्तुरभाई लालभाई के मार्गदर्शन में परीक्षा बाकी थी। पूज्याश्री का शरीर असाध्य रोग से पीड़ित और प्रयास कर रहा हूँ। गयी।
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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