________________
कार्यकर्ता श्री सायर चंद नाहर, बंबई के सुश्रावक मान्यवर पुस्तकालय था। विभाजन के समय उसको गुजरांवाला मंदिर के लिए उत्तर प्रदेश और पंजाब में कुछ चातुर्मास करने का पुनः जयन्ती लाल रत्नलाल शाह टैक्स विशेषज्ञ तथा श्री किदार नाथ तलधर में सुरक्षित रख दिया गया। और कुछ वर्षों के पश्चात सेठ निश्चय कर उधर विहार कर दिया। उनका मनोबल बहुत ऊंचा जी साहनी मुख्य कार्यकारी पार्षद दिल्ली ने विभिन्न अधिवेशनों में कस्तूरभाई तथा माननीय धर्मवीर राज्यपाल के उद्यम और था परन्तु शरीर जब पूरा साथ नहीं दे रहा था। अध्यक्ष अथवा मुख्य अतिथि के रूप में पधार कर मंच को सहयोग से यह ग्रन्थ भंडार भारत लाया गया। श्री आत्मानन्द जैन लधियाना के प्रवास में महत्तरा जी के साध्वी मंडल परिवार सुशोभित किया।
महासभा ने यह ग्रन्थ भंडार भी 28.1.1980 के दिन भारत के में एक अभिवद्धि हई। एक विशाल आयोजन के मध्य एक ममक्ष उत्तर भारत के जैन समाज के पास गरू भक्ति तो बहत थी तत्कालीन गृहमंत्री ज्ञानी जैल सिह जी के कर कमलों द्वारा निधि बहन ने भगवती दीक्षा अंगीकार की। नतन साध्वी का नाम रखा परन्तु आर्थिक शक्ति समुचित न थी। इस विषमता को ध्यान में को विधिवत सौंप दिया।
गया सप्रज्ञा श्री जी महाराज। रख कर महत्तराजी ने समाज से आर्थिक सहयोग लेने के लिए दिनांक 21.4.1980 को बम्बई निवासी सेठ प्रताप भोगीलाल
लुधियाना में उन्होंने "उपाध्याय सोहन विजय उद्योग केन्द्र एक आसान योजना बनाई और प्रेरणा दी कि सभी गुरु भक्त जी ने महत्तरा श्री मृगावती जी की प्रेरणा एवं निश्रा में भगवान यथाशक्ति प्रति मास अपना आर्थिक योगदान सात साल के लिए वासुपूज्य मंदिर का शिलान्यास किया। दिनांक 1.4.1981 को
तथा उपाध्याय सोहन विजय मुद्रणालय की स्थापना करवाई।
महत्तरा जी ने विशाल मोहन देवी ओसवाल कैंसर हास्पिटल एवं देते रहने का संकल्प करें। किसी ने तो अपना निजी योगदान देने होस्टल ब्लाक का निर्माण प्रारम्भ हुआ। श्री संघ के आगे बानों का प्रण किया तो किसी ने धनराशि एकत्रित कर स्मारक निधि को एवं ट्रस्टियों ने रोड़ी और पत्थर अपने सिर पर उठाकर श्रमदान
शोध संस्थान जिसकी लागत उस समय 7 करोड़ अनुमानित थी, भेंट करने का वचन दिया। इस तरह कार्य सुगम हो गया। और द्वारा श्री गणेश किया। मुख्य स्मारक भवन के निर्माण के लिए
का शिलान्यास किया। श्री आत्मनंद जैन कालिज अम्बाला को
विपुल आर्थिक सहयोग दिलवाकर उसे संकट मुक्त किया एवं आर्थिक सहयोग योजनाबद्ध मिलना शुरू हो गया। भूमि परीक्षण, जल परीक्षण एवं विभिन्न खानों के पत्थरों का
चण्डीगढ़ में जिन मन्दिर एवं उपाश्रय निर्माण कार्य की नींव विजय वल्लभ स्मारक प्रांगण में एक जिन मंदिर अवश्य निरीक्षण एवं मूल्यांकन करवाया गया। भरतपुर क्षेत्र के बांसी
डाली। सन् 1983 में स्मारक के कार्यकर्ताओं की विनती स्वीकार बनना चाहिये, यह विचार महत्तरा जी के मन में सदढ़ होने लगा। पहाड़पुर खानों के पत्थर पास हुए। वास्तुकला के मर्मज्ञों और
कर वे साध्वी मंडल के साथ पुनः दिल्ली पधारे। अतः जब 15000 वर्ग फट निर्माण करने की डी.डी.ए. से अनुमति आधुनिक आचिंटैक्टस एवं ट्रस्टियों के एक शिष्टमंडल ने क मिली तब निर्माण काम के तीन विभाजन किये गये। अर्थात मुख्य राजस्थान और गुजरात के विशिष्ट मंदिरों-राणकपुर, जैसलमेर, शिल्पियों तथा महत्तरा जी के परामर्श से निधि ने निर्णय स्मारक भवन तथा भगवान का मंदिर एवं एक अतिथि कक्ष। देलवाड़ा तथा तारंगा का निरीक्षण कर निर्माण की भावी योजना किया कि मंदिर चतर्मख बनेगा। और उसमें मलनायक भगवान समचे बान्ध काम के नीचे एक विशाल तलधर बनाने की भी बनाई। मुख्य स्मारक भवन तथा भगवान के मंदिर के निर्माण का वासुपूज्य जी के अतिरिक्त भगवान ऋषभदेव, भगवान मनि योजना बनाई गई। महत्तरा जी महाराज ने स्मारक स्थल की इस काम प्राचीन जैन वास्तुकला के अनुरूप ही पत्थर द्वारा करने का सुव्रत स्वामी एवं भगवान पार्श्वनाथ विराजमान होंगे। यह भी पण्य भमि का नाम "श्री आत्म बल्लभ संस्कति मदिर" रख निर्णय किया गया और होस्टल ब्लाक के निर्माण का काम निर्णय हुआ कि भगवान महावीर के प्रथम गणधार अनन्तलब्धि दिया। कार्य की शीघ्र सिद्धि के लिये उन्होंने स्मारक स्थल पर ही आधुनिक ढंग से एक सुप्रसिद्ध शिल्पी श्री अमृतलाल मूल शंकर निधान गौतम स्वामी जी, आचार्य विजयानन्द रि जी, आचार्य स्थिरता कर अहर्निश अपनी साधना और आराधना शुरू कर त्रिवेदी और श्री चन्दुलाल त्रिवेदी को स्मारक भवन तथा मंदिर का विजय वल्लभ सूरि जी तथा आचार्य विजय समद सरि जी दी। मच्छरों का भारी उपद्रव तथा भख और प्यास एवं सर्दी-गर्मी निर्माण काम सौंपा गया और होस्टल ब्लाक के निर्माण का महाराज की प्रतिमायें मंदिर के रंग मंडप में विराजमान की जायें। की तनिक भी चिन्ता न कर उन्होंने स्मारक की निर्जन भूमि पर ही उत्तरदायित्व श्री सुरेश गोयल आचिंटैक्टस को दिया गया। तथा गुरुदेव विजय वल्लभ सूरि जी महाराज की भव्य 45 इंच कई मास बिताये। जिन मन्दिर निर्माण तथा संचालन के लिये एक पत्थर की उपलब्धि में विशेष कठिनाईयां आती रहीं, इसी कारण प्रमाण प्रतिमा (बैठी मुद्रा में) को मुख्य गुम्बद के नीचे एक सुन्दर पृथक ट्रस्ट "श्री वासुपूज्य जैन श्वेताम्बर मन्दिर ट्रस्ट" के नाम मुख्य स्मारक भवन का निर्माण कार्य मंद गति से चलता रहा। पट्ट स्थापित किया जाए। इसके निर्माण का काम सर्वश्री डी.एल, से स्थापित किया गया। सर्वश्री शांति लाल जी (एम.एल.बी.डी.) महत्तरा श्री मृगावती जी महाराज सन् 1978 से ही कछ माहा एवं कान्तिभाई पटेल मूर्तिकार अहमदाबाद को सौंप दिया बीर चंद जी (एनके) तथा ला, धर्म चंद जी इसके आजीवन ट्रस्टी अस्वस्थ रहने लगे थे। कारण कि शरीर में एक विचित्र सा रोग गया तथा भगवान की प्रतिमा बनाने का काम श्री बी.एल. नियुक्त हुए और सर्वश्री राम लाल जी तथा विनोद लाल दलाल उत्पन्न हो रहा था। मई 1980 में बम्बई और दिल्ली के सोमपुरा मूर्तिकार अहमदाबाद के कन्धों पर डाला गया। अन्य क्रमशः प्रधान और मन्त्री बनाये गए। श्री सुदर्शन लाल जी शल्य-चिकित्सकों ने मिलकर उनका आपरेशन कर उन्हें रोग से गुरु महाराजों की मूर्तियां जयपुर से ही बनवाने का निर्णय हुआ। (आर.सी.आर.डी.) ने कोषाध्यक्ष का भार संभाला। एक प्रकार मुक्त करा दिया। 4 महीने के शल्योपरान्त उपचार के स्मारक निर्माण कार्य सुचारू रूप से चलाने के लिये हमें श्री
विजय वल्लभ सूरि जी महाराज द्वारा स्थापित श्री बाद वह पुनः पूर्ण-रूपेण वल्लभ स्मारक के काम में समर्पित हो घनश्याम जैसे कुशल सोमपुरा शिल्पी की सेवाएं भी स्थायी रूप आत्मानन्द जैन गुरुकुल गुजराँवाला (पाकिस्तान) में एक सुन्दर गये। स्मारक निर्माण के कार्य में सरकार की अनुमति प्राप्त करने में उपलब्ध हो गई।
और विशाल हस्तलिखित एवं मुद्रित ग्रन्थों पर आधारित में विलम्ब के कारण उन्होंने अपने समय का सदुपयोग करने के विजय वल्लभ स्मारक एक राष्ट्रीय स्तर की संस्था बने, इस Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org