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________________ बीजांकुर से फल वृद्धि तक विजय वल्लभ स्मारक पंजाब में भ्रमण कर रही थीं। स्मारक निर्माण के कार्य के लिए 21.2.71 को कुमारी भारती ने बम्बई में भागवती दीक्षा इनके उन्होंने समाज के आगे वालों को एकत्रित कर उनका मार्गदर्शन पास ग्रहण की और उनका सुयशा श्री नामकरण हुआ। किया वयोवृद्ध सर्व श्री ज्ञानदास जी सी०सब जज, बाबू राम जी सन् 1972 में विजय वल्लभ सरि जी महाराज के पट्टालंकार लीडर, ला. राम जी तथा प्रो० पृथ्वी राज जी आदि से विचार शान्तमूर्ति जैनाचार्य विजय समुद्र सूरि जी महाराज का बड़ौदा में विमर्श कर दिल्ली में स्मारक के निर्माण की योजना बनाई। मात्र चातुर्मास था। वहां एक विशाल साध्वी सम्मेलन हुआ। साध्वी 2 लाख खर्च करने का निश्चय हुआ और महत्तरा जी ने रु० मृगावती जी भी उस सम्मेलन में सम्मलित हुए। चातुर्मास चालीस हजार एकत्र भी करवाए। थी आत्मानंद जैन महासभा से पश्चात् समुद्र सूरि जी ने साध्वी जी को दिल्ली की ओर विहार निर्माण का प्रस्ताव पास करवाया और उन्हें काम सौंप दिया। जब करने के लिए आदेश दिया और 19 वर्षों से रूके हये बल्लभ - राजकुमार जैन, सन् 1959 में अखिल भारतीय श्वेताम्बर जैन कान्फ्रेंस का स्मारक के निर्माण का उत्तरदायित्व पुनः उनके कन्धों पर डाल लुधियाना में आचार्य विजय समुद्र सूरि जी महाराज की पावन दिया। निश्रा एवं श्री बहादुर सिंह जी सिंधी कलकत्ता निवासी की भारत की राजधानी दिल्ली के भीतर पंजाब की ओर जाने ज्ञान के पंज और अदम्य साहस के धनी, साध्वी मृगावती जी वाले राष्ट्रीय मार्ग नं, । के 20 कि.मी. पर 20 एकड़ भूखण्ड के अध्यक्षता में अधिवेशन हुआ, तो उन्होंने भी स्मारक निर्माण की महाराज साध्वी सुज्येष्ठा श्री जी, सुव्रता श्री जी तथा सुयशा श्री पुष्टि का प्रस्ताव पारित कर अपनी मोहर लगा दी। साध्वी जी को साथ लेकर, उग्र बिहार कर दिल्ली पहुंचे। समाज को मध्य जिस भव्य और कलात्मक भवन का निर्माण हुआ है, उसे "विजय वल्लभ स्मारक" कहते हैं। कलिकाल कल्पतरु अज्ञान मगावती जी के सदपदेशों का जन मानस पर गहरा प्रभाव होता कंभकरणी निद्रा से जागृत करने के लिए उन्होंने कठिन अभिग्रह था। फलस्वरूप धर्म परायण सुश्रावक स्व. ला दीनानाथ जी की धारण किये। फलस्वरूप स्मारक योजना को आगे बढ़ाने के लिए तिमिर तरणि युगवीर पंजाब केसरी जैनाचार्य श्रीमद् विजय सुपत्री कान्ता बहन के मन में वैराग्य पैदा हो गया और समय श्री आत्म वल्लभ जैन स्मारक शिक्षण निधि की स्थापना भगवान वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज के संघ और समाज पर अनन्त पाकर उन्होंने भागवती दीक्षा अंगीकार कर ली। उनका नाम महावीर के 2500वें निर्वाण वर्ष में दिनांक 12 जून 1974 को की उपकार हैं। उनकी यशोगाथा को अमर रखने के लिये ही इस सुव्रता श्री रखा गया। साध्वी मंडल ने लुधियाना से प्रस्थान कर गई। दिल्ली संघ के प्रधान ला. राम लाल जी ने इस ट्रस्ट की भव्य स्मारक का निर्माण हुआ है। आचार्य श्री जी तप, त्याग, दिया। मृगावती जी के सुदूर चले जाने पर श्री आत्मानंद जैन सभा स्थापना की। उनके अतिरिक्त सर्व श्री सुन्दर लाल जी (मोती साधना, आराधना के प्रति मूर्ति थे। उनका चरित्र अति निर्मल तनिक हतोत्साह सी हो गई। बयोवृद्ध नेता धीरे-धीरे क्रूर काल लाल बनारसी दास) तथा खैरायती लाल जी (एनके रबड और उत्कृष्ठ था। संगठन, शिक्षा और सेवा उनके जीवन का मंत्र की चपेट में आते गए। स्मारक कार्य आगे न बढ़ सका। था। नारी उत्थान और जन कल्याण के वे मसीहा बने। सादा, कम्पनी) इसके आजीवन ट्रस्टी नियुक्त हुए। ला. रत्नचंद जी निरहंकार और निर्लिप्त जीवन का आदर्श उन्होंने समाज के भारत के विभाजन के फलस्वरूप पंजाब की आर्थिक दशा (रत्नचंद रिखबदास जैन) तथा राज कुमार जैन निधि के क्रमशः समक्ष रखा। सरस्वती पुत्र के मुखारविन्द से ज्ञान की कविता और कमजोर थी अतः इच्छा होते हुए भी गुरु भक्त इस कार्य को आगे अध्यक्ष तथा मंत्री एवं सर्वश्री बलदेव कुमार तथा राजकुमार राय संगीतमयी अजस्र धारा बहती थी। लोकेषणा से वे कोसों दर थे। न बढ़ा पाये। साध्वी श्री शीलवती जी तथा मृगावती जी एवं साहब उपाध्यक्ष चुने गए और श्री धनराज जी कोषाध्यक्ष नियुक्त धार्मिक एवं व्यावहारिक शिक्षा के माध्यम से समाज का उन्होंने उनकी सुशिष्या सुज्येष्ठा श्री जी एवं नूतन साध्वी श्री सुव्रता श्री हुए तथा श्री विनोद लाल दलाल, निर्माण उपसमिति के अध्यक्ष उत्थान किया। ऐसी प्रतिभाशाली विभूति का जब 22 सितम्बर जी महाराज आगमों के अभ्यास के लिए पंजाब छोड़कर गजरात बनाये गए।.सवा छः एकड़ का भूखण्ड 15 जून 1974 को खरीदा सन् 1954 को बम्बई में देवलोक हुआ तो प० साध्वी महत्तरा थी की ओर चली गई। उन्होंने अहमदाबाद में आगम प्रभाकर मनि गया। इस प्रकार साध्वी जी महाराज का प्रथम संकल्प सम्पन्न मृगावती जी की प्रेरणा से जैन समाज ने उनके आदर्श जीवन । श्री पुण्य विजय जी के मार्ग दर्शन में पं० सुखलाल जी और पं० हुआ। मूल्यों को उजागर करने के लिए ही इस स्मारक के निर्माण का जो बेचरदास जी के पास आगमों की गहन पढ़ाई की। अध्ययन के जब आचार्य विजय समुद्र सरि जी महाराज भगवान महावीर निर्णय किया था वह आज साकार रूप ले चुका है। इसका प्रतिष्ठा पश्चात बम्बई पहुँची। कुछ ही समय बाद दिनांक 17.2.68 को के 2500 वे निर्वाण वर्ष के राष्ट्रीय महोत्सव को सान्निध्य प्रदान महोत्सव वसंत पंचमी दिनांक 10.2.1989 को मनाया जा रहा श्री शीलवती जी महाराज का बम्बई में देवलोक गमन हो गया। करने के लिए 30 जून 1974 को दिल्ली में, आचार्य विजयेन्द्र दिन्न है। इस हेतु ग्यारह दिवसीय महामहोत्सव 1.2.89 से मां और बेटी का नाता टूट गया और अब मृगावती जी के नेतृत्व में सूरि, आचार्य प्रकाशचंद्र मूरि, गणि जनक विजय आदि मनि 11.2.1989 तक रचा गया है। साध्वी मंडल दक्षिण भारत की ओर चला गया। बंगलौर, मैसूर मंडल एवम् साध्वी मंडल के साथ पधारे, तो उनका नगर प्रवेश जैनाचार्य विजय वल्लभ मरीश्वर जी महाराज के देवलोक आदि में चातुर्मास किये। बंगलौर में उनकी निश्रा में बड़े उत्साह भगवान महावीर 25 वीं निर्वाण शताब्दी समिति के तत्वावधान गमन के समय साध्वी मृगावती श्री जी अपनी गुरुवानी माता के साथ बल्लभ सूरि जी महाराज की जन्म शताब्दी मनाई गई। में भव्य रूप से कराया गया। विराट जन सभा हुई जिसमें उन्होंने शीलवती जी महाराज, शिष्या सज्येष्ठा श्री जी के साथ उस समय दक्षिण भारत का परिभ्रमण कर वे पुनः बम्बई पधारी। दि० पूज्य साध्वी मृगावती जी महाराज के कर्तृत्व पर अति प्रसन्नता Jain Education International For Prvate & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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