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________________ भारत की राजधानी दिल्ली में आत्म-वल्लभ-जैन मद्रास स्मारक-शिक्षण-निधि के कार्यकर्ताओं ने आत्म-वल्लभ- श्रीमान माननीय ट्रस्टी महोदय वल्लभ स्मारक -दिल्ली संस्कृति-मंदिर के अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव के पावन योग्य धर्म लाभ। प्रसंग पर स्मारिका प्रकाशित करने का निर्णय किया है। यह पत्रिकाएं मिली हैं। बल्लभ स्मारक जिनालय की आल्हाद का विषय है। भारत को इस बात का नाज है कि इस प्रतिष्ठा बसंत पंचमी के दिन होने वाली है,जानकर प्रसन्नता भूमि ने अनेक अन्तरराष्ट्रीय ख्याति के सन्तों को जन्म दिया। उन्होंने साधना, तप, त्याग और पुरुषार्थ के बल पर अनेक मानवता के कार्य किये, आध्यात्मिक पथ-प्रदर्शन शासनदेव की कृपा से यह प्रतिष्ठा महोत्सव सुंदर किया एवं स्व-पर का कल्याण किया। उसी सन्त परम्परा शासन प्रभावना पूर्वक निर्विघ्न संपन्न हो- यही हार्दिक की श्रृंखला की कड़ी आचार्य श्री वल्लभ विजय जी महाराज मंगल कामना करता हूं। थे। वे क्रान्तिकारक, उच्चविचारक समन्वयवादी. दीर्घ - आचार्य पद्मसागर सूरि दृष्टि सम्पन्न सन्तरत्न थे। उन्होंने अपने जीवन काल में अनेक प्रान्तों में पैदल परिभ्रमण कर जनता के मानस को बलसाड़ (गुजरात) पहचाना और उस समय की आवश्यकता को जानकर परम गुरु भक्त महामंत्री श्री राजकुमार जी को अनेक शैक्षणिक संस्थाओं का उपदेश देकर स्थापनाएँ कीं। धर्मलाभ। विद्यार्थियों के छात्रावास के लिये प्रेरित किया। स्त्री-शीक्त आपका पत्र मिला। आप वल्लभ स्मारक प्रतिष्ठा को जगाने के लिये कन्या-मन्दिरों की स्थापना कराई। परम्पराओं से ऊपर उठकर साध्वीवृन्द को प्रवचन देने का महोत्सव निमित्त एक स्मारिका प्रकाशित कर रहे हैं यह मार्ग प्रशस्त किया। जन-जन तक पहुंच कर धार्मिकता व जानकर प्रसन्नता हुई। नैतिकता का सन्देश दिया। उनके गण से उमण होने के गच्छाधिपति आचार्य श्री चारित्र-चूड़ामणि इन्द्रदिन्ना लिये परम विदषी साध्वी श्रीमगावती जी ने जनताको प्रेरित सूरीश्वर जी महाराज की निथा में होने वाले प्रतिष्ठा करके उनके स्मारक ने शोध-पीठ, ग्रन्थालय आदि की अंजनशलाका-महोत्सव, जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स का स्थापना की है। इससे हमारे प्राचीन साहित्य का खजाना अधिवेशन तथा स्मारिका का प्रकाशन आदि कार्यों की मैं सुरक्षित रहेगा। अनेक नये ग्रन्थों का निर्माण होगा। हार्दिक सफलता चाहता हूं। स्मारिका के माध्यम से आचार्य श्रीवल्लभ सरिजीमहाराज वल्लभ स्मारक में अहिंसा-प्रचार, शाकाहार. का ठोस कार्य जनता के सामने आकर उनका जीवन नशाबन्दी, व्यसन मक्ति और अहिंसक समाज रचना के जन-जन के लिये प्रेरणादायी बने तथा इस संस्था के माध्यम कार्यक्रम भी चालू हों, ऐसी मैं स्व. गुरुदेवों के चरणों में पुनः से मानवता के अनेक कार्य सम्पन्न हों, यही मेरी शुभ विनती करता हूँ। कामना है। युगद्रष्टा गुरुदेव का स्मारक भी युगद्रष्टा ही बनाना चाहिये। -आचार्य आनन्द ऋषि जनक चन्द्र सूरि For Private B.Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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