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________________ 20 जागना। जब ऐसा मौका आए कि अपने छोटे सुख के लिए विचार आया। लेकिन महावीर कहते हैं, विचार आ गया तो बात क्या कर रहे हैं? क्या लोगों को मूल्यों का कोई भी बोध नहीं है? दूसरे को दुख देने का ख्याल उठे,तब सम्हलना। तब अपने हाथ हो गई। जहां तक तुम्हारा संबंध है, हो गई। जहां तक वृक्ष का बोध हो नहीं सकता इस काले पर्दे के कारण, जो आंख पर को खींच लेना। क्योंकि असली सवाल यह नहीं है कि तुमने अपनी संबंध है, अभी नहीं हुई लेकिन तुम्हारा संबंध है, वहां तक तो हो पड़ा है। महावीर कहते हैं, तुम अंधे नहीं हो, सिर्फ आंख पर पर्दा कृष्ण लेश्या पर पानी सींचा। उसकी जड़ों को मजबूत किया। गई। है। बुरका ओढ़े हुए हो-काला बुरका; कृष्ण लेश्या का। उसी में तुम्हारा आत्मतत्त्व खो गया है। उसी में खो गया जीवन जब तुमने सोचा किसी को मार डालें, ऐसी मन में एक हमारे छोटे-छोटे कृत्य में हमारी लेश्या प्रगट होती है। तम अभिप्राय। उसी से पता नहीं चलता कि जीवन में कुछ अर्थ भी है? कल्पना भी उठ गई तो बात हो गई। दूसरा अभी माना नहीं गया। उसे छिपा नहीं सकते। और अब तो इसके लिए वैज्ञानिक आधार उसी से पता नहीं चलता है कौन हूँ मैं? कहां जा रहा है? क्यों जा अपराध नहीं हआ, पाप हो गया। भी मिल गए हैं। रहा हूँ? पाप और अपराध में यही फर्क है। पाप का अर्थ है. तम्हें जो सोवियत रूस में, किरलियान फोटोग्राफी के विकास ने बड़ी तुम अंधे हो क्योंकि कृष्ण लेश्या की तुम अब तक सम्हाल करना था, वह भीतर तुमने कर लिया। अभी दूसरे तक उसके हैरानी की बात खोज निकाली है कि जो तुम्हारे भीतर चेतना की करते रहे। उसे खाद दिया, पानी दिया। उस पर्दे में कभी छेद भी परिणाम नहीं पहुंचे। परिणाम पहुंच जाएं तो अपराध भी हो दशा होती है, ठीक वैसा आभा-मण्डल तुम्हारे मस्तिष्क के हुआ तो जल्दी तुमने रफू किया, सुधार लिया। तुम जब-जब दूसरे जाएगा। अदालत अपराध को पकड़ती है, पाप को नहीं पकड़ आसपास होता है। और किरलियान की खोज महावीर से बड़ी पर नाराज होते हो, तब-तब तुम ख्याल करना, किसी अर्थों में वह सकती। पाप तो मन के भीतर है। अपराध तो तब है, जब मन का मेल खाती है। जिस व्यक्ति के मन में हिंसा के भाव सरलता से तुम्हारे कृष्ण लेश्या के पर्दे पर चोट कर रही है। तुम्हारे अहंकार विष बाहर पहुंच गया और उसके परिणाम शुरू हो गए। और उठते हैं, उसके चेहरे के पास एक काला वर्तुल.... को चोट लगाती है, तुम नाराज हो जाते हो। बाह्य जगत में तरंगें उठने लगीं। तब पुलिस पकड़ सकती है। संतों के चित्रों में तुमने प्रभामण्डल बना देखा है, ऑरा बना कल में एक कहानी पढ़ रहा था। अमरीका में टेक्सास प्रांत तब अदालत पड़ सकती है। देखा है। वह एकदम कवि की कल्पना नहीं है-अब तो नहीं है। के लोग बड़े अभद्र, हिसक समझे जाते हैं। एक सिनेमागृह में एक कानून तुम्हें तब पकड़ता है, जब पाप अपराध बन जाता किरलियान की खोज के बाद तो वह कवि की कल्पना बड़ा सत्य टेक्सास प्रांत का आदमी अपनी बंदूक सम्हाले इंटरवेल के बाद है। साबित हुई। किरलियान की खोज ने तो यह सिद्ध किया कि जो वापिस लौटा। बाहर गया होगा। अपनी सीट पर उसने किसी लेकिन महावीर कहते हैं, धर्म के लिए उतनी देर तक कैमरा हजारों साल बाद पकड़ पाया, वह कवि की सूक्ष्म मनीषा ने आदमी को बैठे देखा। उसने पूछा-टेक्सास के आदमी ने-कि रुकना आवश्यक नहीं है। जीवन की परम अदालत में तो हो ही बहुत पहले पकड़ लिया था। ऋषियों की मनीषा ने बहुत पहले महानुभाव! आपको पता है, यह सीट मेरी है। वह जो आदमी बैठा गई बात। तुमने सोचा कि हो गई। नहीं किया, क्योंकि करने में देख लिया था। था, मजाक में ही कहा, थी आपकी। अब तो मैं बैठा हूं। सीट किसी बाधाएं हैं, कठिनाइयां हैं, सीमाएं हैं। करना महंगा सौदा हो जब तुम्हारी दृष्टि साफ होने लगी तो जब तुम्हारे पास कोई की होती है? सकता है। सोच-विचार करने तुम रुक गए। हुशियार आदमी आता है, तो तत्क्षण तुम्हें उसके चेहरे के आसपास विशिष्ट रंगों बस. उसने बंदक तानी और गोली मार दी। भीड़ इकट्ठी हो हो, चालाक आदमी हो, मुस्कुरा कर गुजर गए लेकिन भीतर सोच के झलकाव दिखाई पड़ते हैं। अगर हिंसक व्यक्ति है. लोभी गई और उसने लोगों से कहा कि इसी तरह के लोगों के कारण लिया गोली मार दूंगा। पर जहां तक धर्म का संबंध है, बात हो व्यक्ति है, क्रोधी व्यक्ति है, मद-मत्सर, अंहकार से भरा व्यक्ति टेक्सास के लोग बदनाम हैं। गई; क्योंकि तुम्हारी कृष्ण लेश्या मजबूत हो गई। है तो उसके चेहरे के आसपास एक काला वर्तुल होता है। पर बहुत बार तुम्हारे मन में भी-चाहे तुमने गोली न मारी कृष्ण लेश्या को मजबूत करना पाप है। अब तो इसके फोटोग्राफ भी लिए जा सकते हैं। क्योंकि हो, यह कहानी अतिशयोक्तिपूर्ण मालूम होती है, लेकिन बहुत कृष्ण लेश्या को क्षीण करना पुण्य है। किरलियान ने जो सूक्ष्मतम कैमरे विकसित किए हैं, उन्होंने बार गोली मार देने का मन तो हो ही गया है। बहुत छोटी बातें शुक्ल लेश्या को मजबूत करना पुण्य है। और शुक्ल लेश्या चमत्कार कर दिया है। और ऐसा बर्तल लोभी, हिंसक, अंहकारी, पर-कि कोई तुम्हारी सीट पर बैठ गया है-गोली मार देने का के भी पार उठ जाना, पाप और पुण्य दोनों के पार चले जाना क्रोधी के आसपास होता है, और ठीक ऐसा ही वर्तुल जब आदमी मन तो हो ही गया है। मुक्ति है, निर्वाण है। मरने के करीब होता है, तब भी होता है। महावीर कहते हैं, मन भी हो गया तो बात हो गई। इस जब तुम्हारे मन में पाप का विचार उठता हैतबतुम दूसरे का जो आदमी मरने के करीब है, किरलियान कहता है, छह कहानी में वे यह नहीं कह रहे हैं कि पहले आदमी ने वृक्ष तोड़ा: नुकसान करना चाहते हो-अपने छोटे-मोटे लाभ के लिए। वह महीने पहले अब घोषणा की जा सकती है कि यह आदमी मर सिर्फ सोचा। भी पक्का नहीं है होगा। लेकिन यह संभव कैसे हो पाता है ? दुनिया जाएगा। क्योंकि छह महीने पहले उसके चेहरे के आसपास मृत्यु ...'भूख लगी, फल खाने की इच्छा हुई, वे मन ही मन में इतने युद्ध, इतनी हिंसा, इतनी हत्याएं, इतनी आत्महत्याएं, घटना शुरू हो जाती है। जो छह महीने बाद उसके हृदय में घटेगी, विचार करने लगे।' छोटी-छोटी बात पर कलह, यह संभव कैसे हो पाती है? क्या लोग वह उसके आभामण्डल में पहले घट जाती है। ऐसा कुछ किया नहीं है अभी; ऐसी भाव-तरंग आयी, ऐसा बिलकुल अंधे हैं? क्या लोगों को बिलकुल पता नहीं चलता कि वे इन दोनों का जोड़ ख्याल में लेने जैसा है। इसका अर्थ हुआ, JanEducation international
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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