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________________ विशाल प्रशस्त भव्य ललाट महापरूषोचित प्रभावकारी व्यक्तित्व दिव्य प्रकाश पञ्ज से उदभासित बाल रवि के समान नयनाभिराम आकृति, प्राणिमात्र के प्राणाधार बहजन हिताय ही नहीं सर्वजीव हिताय की दृष्टि परोपकारी शुभ चितताओं के जनक उज्ज्वल शरदशशांक की शीतल मरीचिका के समान आहलादकारी, मनसा-वाचा-कर्मणा साधत्व के स्वत नि सुत स्रोत, गुरुपदिष्ट मार्ग पर अनवरत अग्रसर आध्यात्मिक सुषमा-केन्द्र, जन-मन मोहक मोहन प. प. श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सुरीश्वर जी महाराज का जन्म विक्रम संवत् 1980 कार्तिक बदी 9 को बडौदा के निकट सालपुरा ग्राम में हआ। संस्कारी वातावरण, पारिवारिक परम्परा और आचरण पर आधारित होता है। गरु इन्द्र का आज का महान् व्यक्तित्व शैशव काल में ही धार्मिक विशद शाकाहारी, अहिंसावादी पारिवारिक वातावरण से प्रारम्भ हुआ। साधु संतों का समागम उनका उपदेश श्रवण मन में वैराग्य भाव पैदा करने लगा। प्राकृतिक वैभव और हरीतिमा के मध्य रहने के कारण हरियाली का शनैः शनैः पतझड़ में परिवर्तन जीवन की नश्वरता का आभास दे रहा था। बैराग्य का रंग गहरा था और सांसारिक जीवन भार स्वरूप लगने लगा। फलत: सं. 1998 फाल्गुन शुक्ला पञ्चमी को मनिराज श्री विनय विजय जी महाराज के कर-कमलों द्वारा आप श्री ने भागवती दीक्षा ले ली। यग द्रष्टा पंजाब केसरी प. प. विजय वल्लभ सरीश्वर जी महाराज का सुखद सान्निध्य आपकी अन्तर्निहित सौम्यता परमार्थ प्रेम व चारित्रिक गरिमा को द्विगणित करने वाला सिद्ध हआ। आप श्री को वि. सं. 2011 चैत्र बदी 3 को सूरत में गणिवर्य पद का सम्मान मिला और आपके सदगणों से प्रभावित होकर वि.सं. 2027 माध शक्ला पञ्चमी को वरली में वहाँ के नूतन मंदिर के प्रतिष्ठा-महोत्सव पर परम पूज्य आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वर जी महाराज ने आपको आचार्यपद से अलंकृत किया। आप श्री ने मानव मात्र को उदारता व सहिष्णता का पाठ पढ़ाने वाले श्री महावीर स्वामी जी का संदेश मात्र जैन बंधओं तक ही नहीं पहुँचाया अपित जैनेतरों तक पहुँचाया और उन्हें प्रभावित किया। गजरात के परमार क्षत्रिय आपश्री के प्रवचनों से इतने प्रभावित हए कि वे गरुदेव के अनन्य भक्त बन गये। 50,000 जैनेतर परमार क्षत्रियों ने बड़े ही धूमधाम के साथ सोत्साह जैन धर्म अंगीकार किया। कितने तो जैन धर्म को अंगीकार कर सन्तुष्ट नहीं हए अपितु जैन मुनि बन गये। जैन इतिहास की यह अभतपर्व घटना स्वयं में इस बात का प्रमाण है कि आप श्री के प्रवचन कितने प्रभावशाली हैं और भटके हओं को राह दिखाने वाले हैं। आप श्री की वाणी में दर्शन न्याय, साहित्य, व्याकरण आगम आदि विषयों का गहरा अध्ययन व पांडित्य स्पष्ट झलकता है। - परम गुरु भक्त आपश्री ने गुरु देवों द्वारा स्थापित संस्थाओं पाठशालाओं को अत्यंत जागरुकता व निष्ठा के साथ सम्भाला है। साथ ही गुरूदेवों की योजनाओं व स्वप्नों को साकार रूप देने की दिशा में कई सबल कार्य पूर्ण कर लिये हैं और कई कार्य पूर्णता की और अग्रसर हैं। बडौदा में बना श्री विजय वल्लभ सार्वजनिक अस्पताल बौडेली का महातीर्थ के रूप में परिवर्तन, गाँव-गाँव में मंदिर और पाठशालाओं का निर्माण पावागढ तीर्थोद्वार, मुरादाबाद में जिनशासनरत्न प. प. आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय समुद्र सूरीश्वर जी महराज का समाधिमन्दिर आदि कार्य पूर्ण किये जा चुके हैं। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक वल्लभ स्मारक दिल्ली में पूर्णता प्राप्त कर ली। आप श्री के चरण-कमल गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, जम्म, Kinta काश्मीर, जहाँ भी पड़ते हैं वहीं दीक्षा-महोत्सवों अंजन शलाका-प्रतिष्ठाओं, उपधान तपों, पैदल यात्रा-संघों आदि अनेकानेक पार्मिक कार्यक्रमोंन महोत्सना की धम मच जाती है।
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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