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________________ जिनका दर्शन मात्र ही शांति और अद्वैत माधर्य का समन्वय उपस्थित करता था, बिन कहें जिनके आकर्षक मखाकृति में उपदेश, गंगा की अजय धारा के समान मुखर हो उठते थे, जिनके प्रवचनों की शैली मधर मोहक और प्रभावशाली होने के साथ-साथ श्रोताओं पर ऐसी अमिट छाप छोड़ती थी कि वे कभी विस्मृत न कर पाते, ऐसे प्रभावी उपदेशक शातिमुर्ति व पारस पज्य आचार्य श्रीमद विजय समद्र सरीश्वर जी महाराज। आप श्री का जन्म वि. सं. 1948 मार्गशीर्ष शक्ता एकादशी को हुआ। अन्य है वह पानी नगरी (राजस्थान) जिसने ऐसे बहमल्य रसन को जन्म दिया। बाल्यावस्था में गंभीर, एकांतप्रिय व धर्म के प्रति अगाध आस्था रखनेवाले साधु-सन्तों की सेवा में विशेष रुचि लेने लगे। (यह सेवा भाव इस बात का स्पष्ट परिचायक था कि भविष्य में आप सम्पूर्ण जैन धर्म व समाज के लिये प्रेरणा के स्रोत व मार्गदर्शक बन छ समय उपरांत आप आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ नरीश्वरजी म.सा. के सम में आये और फिर बादल को देख नर्तन करते मयर की भांति आप अपना मार्ग प्रणेता पर अभिभूत हो उठे। 19 वर्ष की किशोरावस्था जो सासाररूपी क्रीडास्थली में खेलने की होती है, समुद्र के लिये समोर की असारता का व्यावहारिक पाठ पढ़ाने वाली शारीरिक मोहमाया, आकर्षक बाह्यकांति की कृत्रिमता को दिखॉडत कर अन्तनिहित-नवासीत का दशांना कराने वाली बन गयी। वि. स. 1967 में फाल्गुन वदी षष्ठी को प. पू. आचार्य गुरुदेव श्रीमद् विजय वल्लभ सुरीश्वरजी म. सा. के करकमलों से सूरत नगर में दीक्षा ग्रहण की। पूज्य श्री सोहन विजय जी आपके दीक्षा गुरु गुरु भक्ति की परख भक्त के आचरण कथन व व्यवहार से होती है। आप साथ जीवन के लिये आवश्यक अपरिहार्य समस्त धार्मिक क्रियाओं के साथ पूज्य गुरुदेव के आदेशों का अक्षरश पालन करना अपना लक्ष्य व पनीत कर्तव्य समझते थे, जैसे एक साली बाग के लिये बीजारोपण करे पौधे लगाये और तदनन्तर दूसरा अपना कर्तव्य मानकर सिंचन करे और अपनी धमनिष्ठा से नंदन कानन के समक्ष ला खड़ा करे वैसे ही आप श्री पू. गुरुदेव द्वारा स्थापित शिक्षण संस्थाओं, का मलालयों, उद्योगकेन्द्रों की देखरेख अपना उत्तरदायित्त्व मानकर करते थे। इसीलिये थाना (बम्बई) में बि.सं 2009 माघ सदी 5 को गुरुदेव ने आपको आचार्य पद पर प्रतिष्ठित कर अपना पट्टधर बनाया। आपके हृदय में मानवता के प्रति अपार प्रेम करुणा व सहानभूति थी। आप में राष्ट्रीयता की भावना कट-कूट कर भरी थी। 1962 के भारत-चीन युद्ध के अवसर पर आपने समस्त देशवासियों से अपील की कि वे देश रक्षार्थ धन और सुवर्ण का सक्तहरुल से दान करें। इस महान की इस अपील का अप्रत्याशित प्रभाव पड़ा और प्रचुर मात्रा में सुवर्ण धन संग्रह हुआ। वि.स. 2027 दिल्ली में महावीर स्वामीजी अस्पताल के 2400 के निर्माण महोत्सव के अवसर पर आपश्री को विरुशासनाराम की पदवी प्रदान कर राष्ट्रीय सम्मान दिया गया। आप श्री वहाँ समस्त साध- समाज में सबसे अधिक बृद्ध होने के कारण भीष्म पितामह की भाँति प्रधानपद पर सुशोभित हुए। जैन शासन का यह सूर्य जिसकी आभा में जान मन देदीप्यमान था। जिनकी प्रेरणा के पावन प्रसंगों का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षिता रहा ऐसे के जिलशासनरत्न वि. सं. 2034 ज्येष्ठ बढी अष्टमी मुरादाबाद में प्रात काल 6 बजे अपूर्व आराधना के साथ वेदना रोहित अखंड समाधि को प्राप्त हुए। आज मुराबाद में प. पू. आचार्य श्री की पावन स्मृति में जैन श्री संघ को मनीत ओला गरुभक्ति का प्रतीक समाधि मंदिर है।
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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