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आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ
कथन के वर्णन से स्पष्ट होता है कि यह कालक निमित्त के, ज्योतिष के, जानने वाले थे। इस तरह दत्त के मातुल आर्य कालक और अनाम-परम्परा के कालाचार्य ब्राह्मण होने की संगति मिलती है। दोनों वृत्तान्तों में कालक को निमित्त-मन्त्र-विद्या-ज्ञान होने का भी साम्य है।
गर्दभिल्लोच्छेदक कालक का भागिनेय बलमित्र राजा था। यहाँ कहावली,२० अावश्यक चूर्णि' इत्यादि के उपर्युक्त कथानक में कालकाचार्य का भागिनेय दत्त भी राजा होता है। यह भी विचारणीय है।
बलमित्र का धर्म कौनसा था! और बलमित्र-भानुमित्र क्या सचमुच कालक के भागिनेय थे? निशीथचूर्णि कहती है कि कितनेक प्राचार्यों के कथनानुसार वे (बलमित्र-भानुमित्र) कालकाचार्य के भागिनेय थे। मगर निशीथचूर्णिकार भगवजिनदास महत्तर को (ई० स०६७६ अासपास) यह पक्का मालूम नहीं था इसी लिए इन्होंने निश्चितरूप से नहीं बताया।२२ कालकाचार्य और जिनदास के सत्तासमय के बीच में ठीक ठीक अन्तर होगा जिससे जिनदास को इस विषय में अविच्छिन्न विश्वसनीय परम्परा मिल न सकी। आगे जिनदास कहते हैं कि बलमित्र के भागिनेय बलभानु ने जैनी दीक्षा ली जिससे बलमित्र का पुरोहित और दूसरे नाराज हुए। पुरोहित ब्राह्मणधर्मी होने से बल मित्र-भानुमित्र भी ब्राह्मणधर्मी होंगे। अगर कालकाचार्य के इन दोनों भागिनेय जैनधर्मी होते तो कालकाचार्य के लिये उज्जैन से बाहिर चले जाने की परिस्थिति खड़ी न होती जैसा कि आवश्यक-चूर्णि अन्तर्गत (तिथि बदलनेवाली) कथानक में वर्णित है। भागिनेय होने पर भी अगर बलमित्र-भानुमित्र ब्राह्मणधर्मी हों तब वे सब बातें होनी असम्भव नहीं। अगर कालक खुद जन्म से ब्राह्मण जातीय हों तब तो उनके भागिनेय बल मित्र-भानुमित्र ब्राह्मणधर्मी होने का सुसंगत ही होता है। ब्राह्मणधर्मी होने पर भी क्योंकि बलमित्र-भानुमित्र कालक के भागिनेय थे, इन दोनों ने गर्दभोच्छेदन में कालक को सहायता दी। दत्त और बलमित्र दोनों अलग अलग कथानकों में कालक के भागिनेय कहे गये हैं। वे दोनों एक थे या भिन्न भिन्न व्यक्ति ? कथानकों के ढंग से तो उनके अलग अलग व्यक्ति होने का अनुमान होता है। • तुरुमिणी (या तुरुविणी) नगरी कहाँ थी? वह शायद हॉल में मध्यभारत में तुमैन (Tumain नाम से पिछानी जाती नगरी होगी। कालकाचार्य का ज्यादा सम्बन्ध उजैन, भरुकच्छ और प्रतिष्ठानपुर से रहा इस से तुरुमिणी का मध्य या पश्चिम भारत में होना सम्भवित है किन्तु वह कहाँ थी यह निश्चितरूप से कहना शक्य नहीं।
श्री नवाब प्रकाशित कालकाचार्य कथा में दिये हुए मध्यकालीन (संवत् ११०० के पिछे रचे गये) ऐसा शब्दप्रयोग आचार्य हरिभद्र और शीलाङ्क के टीकाग्रन्थों में ब्राह्मणों को ‘धिग्जातीय 'ही कहा गया है अत एव नवाब प्रकाशित अन्य कथाओं में पिछे के (मध्यकालोन) लेखकों ने कालकाचार्य की भगिनी (दत्त की माँ) को ब्राह्मण जातीय बताई है वह ठीक ही है।
२०. नवाब प्रकाशित, कालकाचार्यकथा, पृ० ४० २१. वही, पृ० ४०
२२. 'केयि आयरिया भणंति, जहा-बलमित्त-भाणुमित्ता कालगायरियाणं भागिणेज्जा भवंति। मातुलो त्ति काउं महंतं आदरं करेंति अब्भुठटाणादियं ।'-निशोथचूर्णि, उद्देश १०, कालकाचार्यकथा (नवाब प्रकाशिक), पृ० २. देवचन्द्रसूरिविरचित कालककथा (सं० ११४६) में बलमित्र-भानुमित्र को कालक के भागिनेय कहे हैं, देखो, कालकाचार्यकथा, (नवाब), पृ० १४. वही, पृ० ३७ में कहावली-अन्तर्गत कथानक में भी यही कहा गया है।
२३. मूल ग्वालिअर रियासत का यह तुमैन एक प्राचीन स्थल है जहाँ से उत्तरगुप्तकालीन शिल्प इत्यादि मिले हैं।
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