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आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रंथ प्रनवें तिनिके पाट अब जस रस कित्ति जिहाजु । भरे भारती भारती कनककुशल कविराजु ॥ ४०॥ मानै जिन्है महाबली, महाराज अजमाल । अरु सूबे अजमेरु के मान कै महिपाल ॥ ४१॥ जानै खान जिहाँ जिन्हे, ब्हादर बड़े नुबाब । सैदनि को मामू सुधर, गुण सौरभ गुलाब ॥ ४२ ॥ जूनागढ़ सूबै जबर, बाबी वंश नुबाब । सरेखान जिन सुगुरु को अधिक बढ़ायो श्राब ।। ४३ ।। अरे जती इक और सब, एकु और कौं आपु। पाट तपां पंच सद्धिों , थप्यो तउ निजु थापु ।। ४४ ।। तदनु राउल देसल तनुज, कच्छपति लखाकुमार। गुरु कहि राखै गाम दे, परम मान करि प्यार ।। ४५ ।। कच्छ इंद अाजै रहैं और उ सुधी अनेकु । अखिल शास्त्रवेत्ता अधिकु, एकु एकु तें एकु ।। ४६ ।। पूज्य महापुन्यासके, पुष्टि जदपि परिवार । तदपि समों कुंअरेस को, अानत मन इतबार ॥ ४७ ।। करि लखपति तासौं कृपा, कह्यौ सरस यह काम । मंजुल लखपति मंजरी, करहु नाम की दाम ।। ४८॥ तब सविता को ध्यान धरि, उदित को श्रारंभ। बाल बुद्धि की वृद्धि को, यह उपकार अदंभ ।। ४६ ।।
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