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________________ संस्कृति निर्माता युगादिदेव श्री शांतिलाल खेमचंद शाह, बी. ए. भारतीय संस्कृति में भगवान् ऋषभदेव का स्थान अनोखा है। जंगल में मंगल कर मानव को उन्होंने मानवता की सभ्यता प्रदान की। पशुसमाजवत् विषयसुख और पेट पालने में ही अपने को कृतार्थ मानने वाले मानव को आत्मा के अमर खजाने का पता उन्होंने बताया। संस्कृति की उन्होंने एक ऐसी मजबूत नींव डाली कि उस पर युगयुग तक सभ्यता का प्रासाद खड़ा हो सका । केवल तत्त्वज्ञान की ही सुधा उन्होंने नहीं बरसाई, प्रत्युत व्यवहार को भी उन्होंने प्रधानता दी । व्यवहार की संपूर्ण उपेक्षा कर कोरे निश्चय की बातें करनेवालों को यह भलीभांति समझना चाहिए कि निश्चय को संपूर्णतया समझनेवाले एक महान् मानव ने ही व्यवहार का निर्माण किया है। सब धर्मों की जड़ तो एक ही है, हर पन्थ उसकी एक एक डाली है। यह जड़ है ऋषभदेव । दुनिया के सारे धर्म, कर्म, व्यवहार, ज्ञान, ध्यान, रीति, नीति के वे निर्माता हैं। उन्हें अपनाकर हम अलग अलग नाम देते हैं, किन्तु वस्तु तो वही है । वैदिक लोग विष्णु के चौवीस अवतार मानते हैं । उनमें आठवाँ कम भदेव का ही है। इस आठवें अवतार में उन्होंने परमहंस का मार्ग बताया। उनके पिता का नाम नाभि राजा और माता का नाम मरुदेवी लिखा है। भागवत के पंचम स्कंध में बड़े विस्तार के साथ ऋषभदेव का जीवन है। ऋषभदेव का उपदेश भी हमें तीर्थकरों के उपदेश-सा मालूम होगा। रजोगुणी लोगों को मोक्षमार्ग बताने के लिये यह अवतार है। नगरपुराण के भवावतार नामक चौदहवें शतक में कहा है। कुलादिबीजं सर्वेषां प्रथमो विमलवाहनः । चक्षुष्मान् च यशस्वी चाऽभिचंद्रोऽथ प्रसेनजित् । मरुदेवश्च, नाभिश्च भरते कुलसत्तमाः । अष्टमो मरुदेव्यां तु नाभेर्जात उरुक्रमः ॥ भागवतपुराण में सात कुलकरों के स्थानपर सात अवतार की कल्पना कर आठवें अवतार के रूप में भदेव को माना है। जंगल में मंगल जंगल में रहनेवाले, पेड़-पौधों पर जीवन बसर करने वाले मानव को असि, मसि और कृषि का महत्त्व समझाकर सभ्यता के मार्गपर लानेवाले ऋषभदेव हैं। कृषिप्रधान भारतवर्ष के उद्धार का मार्ग उन्होंने उस काल में समझाया जब नैसर्गिक कामपूर्ति और उदरभरण के सिवाय आदमी कुछ सोच हीं नहीं सकता था। Jain Education International दिन ब दिन पेड़ घटने लगे । फलों पर निर्वाह होना मुश्किल मालूम होने लगा । जंगली पशुत्रों के कारण जीवन में संरक्षण न था । युगल पैदा होता था जिसमें बाल और बालिका होते थे। जवानी में वही पति-पत्नी बन संतान पैदा करते थे । वे ऋषभदेव थे कि जिन्होंने प्रथम लग्नविधि का निर्माण किया । लग्न 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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