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________________ पिप्पल गच्छ गुर्वावलि १७ वीं शताब्दि तक इस गच्छ के श्राचार्यों एवं विद्वानों के उल्लेख मिलते हैं। इसके पश्चात् इस गच्छ के प्राचार्य एवं यतिगरण कब तक कौन कौन हुए, इसके जानने के लिये कोई भी साधन प्राप्त नहीं है। ___ इस गच्छ के विद्वानों के रचित ग्रंथ बहुत ही थोड़े हैं। जिन चार पांच ग्रंथकारों का पता चला, उनका निर्देश ऊपर किया ही जा चुका है। इतने दीर्घ काल में इतने श्राचार्य व मुनिगण हुए हैं। उनका साहित्य अवश्य ही कुछ विशेष रूप से मिलना चाहिए या संभव है वह इस गच्छ के उपासकों के ज्ञानभंडारों में पड़ा हो । तथा उन ग्रंथों की प्रतिलिपियों का प्रचार अधिक न हो पाया जिससे वे रचनाएँ अज्ञात ही रह गई। पिप्पल गच्छ गुरुस्तुति जज्ञे वीरजिनासुधर्मगणभृत् तस्माच्च जम्बूस्ततः। संख्यातेषु गतेषु सूरिषु भुवि श्रीवज्रशाखाभवत् ॥ तस्यां चन्द्रकुलं मुनीन्द्रविपुलं तस्मिन् वृहद्गच्छता । तत्राभूयशसः प्रसादितकुकुभ्श्रीसर्वदेवप्रभुः ॥१॥ श्रीनेमिचन्द्राभिधसूरिरस्मात् जज्ञे जगन्नेत्रचकोरचन्द्रः । चारित्रलक्ष्मीललितांगहार प्रौप चापोरुशुभानुकारः ॥२॥ यादीन्द्रः कविपुङ्गवैकतिलकः सत्कीर्तिली(ला)सरः । क्रोड़फ्रीड़दशेषसजनमहो चारित्रचूड़ामणिः ॥३॥ नंद्यादुद्भतभाजनं स भगवान् श्रीशांतिसूरिप्रभुः । पृथ्वीचंद्रचरित्रसत्रमकरो यो विश्वदतोत्सवः ॥ ४ ॥ श्रीमन्महेन्द्रो विजयाख्यसिंहो देवेन्द्रचंद्रः शुचिपद्मदेवः। श्रीपूर्णचन्द्रो जयदेवसूरि हेमप्रभो नाम जिनेश्वरस्य ॥४॥ सिद्धश्रावकारिते निरुपमे श्रीनेमिचैत्ये पुरा । पूज्यैरष्टगुणा निजपदे संस्थापयांचक्रिरे ॥ श्रीमपिप्पलगच्छनायक तया विज्ञाय होराबलं । विख्याता भुवि शांतिसूरिगुरवः कुर्वन्तु वो मंगलम् ॥ ५ ॥ चक्रेश्वरी यस्य पुपोष पूजां सिद्धो भवद् यस्य गिरा नमस्यः । श्रीवृक्षगच्छाम्बरसप्तसप्तिः श्रीशांतिसूरिः सुगुरुर्बभूव ॥ ६॥ तदनु मदनुहंता शाशनो द्योतकारी, जयति विजयसिंहसूरि भूरिप्रतिष्ठः । सबलकलिविघातं संयमासिप्रहारैरकृतस्कृतपात्रं भव्य कोकैकभानु ॥७॥ तत्पट्टपंकेरुहराजहंसः श्रीदेवभद्रो गुणभृद्रराज । उवास यः सज्जनमानसेषु निर्दूषणखेलितशुद्धपक्षः ॥ ८॥ तदन्तरं निर्जितमोहमल्लः श्रीधर्मघोषः सुगुरुगरीयान् । संसारपूरेण तु नीयमानं रक्ष यो धार्मिकलोकमेक ॥ ६ ॥ सच्चन्द्रसूर्याविव तस्य पट्टे बभूवतुर्दोर्जायतौ गणेशौ । श्रीशीलभद्रः प्रथमः प्रवीणः सूरिस्ततः श्रीपर पूर्णदेवः ॥ १० ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012060
Book TitleVijay Vvallabhsuri Smarak Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Jain Vidyalaya Mumbai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year1956
Total Pages756
LanguageHindi, Gujarati, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size24 MB
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