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________________ १२४] જ્ઞાનાંજલિ पाणिनि, चंड, वररुचि, हेमचन्द्र आदि अनेक महावैयाकरण आचार्योंने प्राकृत व्याकरणोंकी रचना की है । आचार्य श्री हेमचन्द्रका प्राकृत व्याकरण प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाची, चूलिका पैशाची एवं अपभ्रंश भाषा, इन छः भाषाओंका व्याकरण होनेसे प्राकृत व्याकरणकी सर्वोत्कृष्ट सीमा बन गया है । क्यों कि भाषाशास्त्रविषयक अनेक दृष्टिबिंदुओको नजरमें रखते हुए आचार्यने इस व्याकरणका निर्माण किया है । प्राकृतभाषा विश्वतोमुखी एवं बहुरूपी भाषा होनेके कारण यथपि इसका परिपूर्णतया विधानात्मक व्याकरण बनानेका कार्य अति दुष्कर ही था, फिर भी आचार्य श्री हेमचन्द्रने अपनी समृद्ध विद्वत्ता के द्वारा इसका बीजरूप संग्रह एवं निर्माण सर्वश्रेष्ठ रीत्या कर दिया है, जिससे हेमचन्द्र के व्याकरणमें आर्ष, देश्य आदि विविध प्रयोगोंके विधानका संग्रह एवं समावेश हो गया है । स्थानकवासी विभूषण कविवर श्री रत्नचन्द्रजी स्वामीने अपने आर्षप्राकृत व्याकरण में इन्हीं आप प्रयोगादिको सुचारु रीत्या पल्लवित किया है। पंडित बेचरदासजी दोसी, आचार्य श्री कस्तूरसूरि, पंडित प्रभुदास पारेख आदिने गुजराती भाषामें प्राकृत व्याकरणोंका निर्माण किया है । पाचात्य विद्वान् डॉ. पिशल, डॉ. कोवेल आदिने भी अंग्रेजीमें प्राकृत व्याकरणोंकी रचना की है, किन्तु इन सबका मुख्य आधार आचार्य श्री हेमचन्द्रका प्राकृतव्याकरण ही है । इस प्रकार प्राकृतभाषा के व्याकरणके क्षेत्रमें काफी प्रयत्न हुआ है और हो रहा है ! किन्तु प्राकृतभाषा शब्दकोशके विषय में पर्याप्त एवं व्यापक कहा जाय ऐसा कोई प्रयत्न आज पर्यंत नहीं हुआ था । ऐसे समय में वीसवीं सदीके एक महापुरुषके अन्तर में एक चमत्कारी स्फुरणा हुई, जिसके फलस्वरूप अभिधानराजेन्द्रकोशका अवतार हुआ । यद्यपि प्राचीन युगमें प्राकृतभाषा के साथ सम्बन्ध रखनेवाले शब्दकोशों का निर्माण आचार्य पादलिप्स, शातवाहन, अवन्तीसुन्दरी, अभिमानचिह्न, शीलाङ्क, धनपाल, गोपाल, द्रोणाचार्य, राहुलक, प्रज्ञाप्रसाद, पाठोदूखल, हेमचन्द्र आदि अनेक आचार्योंने किया था, किन्तु इन शब्दकोशोंमें सिर्फ देशी शब्दों का ही संग्रह था, प्राकृतभाषाके समृद्ध कोश वे नहीं थे । ऐसा समृद्ध एवं व्यापक कोश बनानेका यश तो श्री राजेन्द्रसूरिजी महाराजको ही है । यहाँ एक बात विद्वान् वाचकोंके ध्यानमें रहनी चाहिए कि- आज कितने भी विश्वकोश तैयार हो, फिर भीदेश्य शब्दोंका सर्वान्तिम विशद, विशाल एवं अतिप्रामाणिक शब्दकोश आचार्य श्री हेमचन्द्रके बाद में किसने भी तैयार नहीं किया है। देशी शब्दोंके लिये सर्वप्रमाणभूत प्रासादशिखर कलश समान देशी शब्दकोश श्री हेमचन्द्राचार्यविरचित देशीनाममाला ही है । प्राकृत ग्रन्थों का अध्ययन करनेवालोंके लिये, और खास कर जब प्राकृत भाषाका सम्बन्ध, सहवास, परिचय और गहरा अध्ययन धीरे-धीरे घटता- घटता खंडित होता चला हो, तब प्राकृत भाषा विस्तृत एवं व्यवस्थित शब्दकोशको नितान्त आवश्यकता थी । ऐसे ही युगमें श्रीराजेन्द्रसूरि महाराजके हृदय में ऐसे विश्वकोशकी रचनाका जीवंत संकल्प हुआ । यह उनकी सर्वतोमुखी प्रतिभा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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