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________________ नन्दीसूत्रके वृत्तिकार तथा टिप्पनकार नन्दीसूत्रकार नन्दीसूत्रके प्रणेता स्थविर देव वाचक हैं। इनके सम्बन्धमें जो कुछ कहनेका था वह चूर्णि सहित नन्दीसूत्रकी प्रस्तावनामें कह दिया है। लघुवृत्तिकार श्रीहरिभद्रसरि इस ग्रन्थाङ्कमें प्रकाश्यमान वृत्तिके प्रणेता याकिनीमहत्तराधर्मसूनु आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि महाराज हैं। इनके विषय में विद्वानोंने अनेक दृष्टि से विचार किया है और लिखा भी बहुत है । अतः यहाँ पर मुझे अधिक कुछ भी कहनेका नहीं है। जो कुछ कहनेका था, वह मैंने, श्री लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृतिविद्यामन्दिरग्रन्थावलीके चतुर्थ ग्रन्थाङ्करूपमें प्रसिद्ध किये गये ‘सटीक योगशतक और ब्रह्मसिद्धान्तसमुच्चय' की प्रस्तावनामें कह दिया है। अतः विद्वानोंसे प्रार्थना है कि उस प्रस्तावनाको देखें दुर्गपदव्याख्याकार श्री श्रीचन्द्रसरि इन ग्रन्थाङ्को सम्पादित नन्दीवृत्तिटिप्पनक, जिसका नाम ग्रन्थकारने दुर्गपदव्याख्या दिया है, इसके प्रणेता आचार्य श्रीश्रीचन्द्रसरि हैं । ये अपनेको चन्द्रकुलीन आचार्य श्रीशीलभद्रसूरिके शिष्य श्रीधनेश्वराचार्यके शिष्य बतलाते हैं। ____ इनका, आचार्यपदप्राप्तिकी पूर्वावस्थामें नाम पार्श्वदेवगाण था, ऐसा उल्लेख इन्हींकी रचित * श्रीदेववाचकविरचितं नन्दीसूत्रम् - श्रीश्रीचन्द्राचार्यकृतदुर्गपदव्याख्या-अज्ञातकर्तृकविषमपदपर्यायाभ्यां समलकृतया आचार्यश्रीहरिभद्रसूरिकृतया वृत्त्या सहितम् (प्रकाशक-प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी, ई. स. १९६६) -यह सम्पादनकी प्रस्तावनासे उद्धत. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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