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________________ नन्दिसूत्रके प्रणेता तथा चूर्णिकार* नन्दीसूत्रके प्रणेता नन्दीसूत्रकारने नन्दीसूत्रमें कहीं भी अपने नामका निर्देश नहीं किया है, किंतु चूर्णिकार श्री जिनदासगणि महत्तरने अपनी चूर्णिमें सूत्रकारका नाम निर्दिष्ट किया है, जो इस प्रकार है --- “एवं कतमंगलोवयारो थेरावलिकमे य दंसिए अरिहेसु य दंसितेसु दूसगणिसीसो देववायगो साहुजणहितढाए इणमाह " [पत्र १३ ] इस उल्लेख द्वारा चूर्णिकारने नन्दीसूत्रप्रणेता स्थविर श्री देववाचक हैं -- ऐसा बतलाया है। आचार्य श्री हरिभद्रसूरि एवं आचार्य श्री मलयगिरिसूरिने भी इसी आशयका उल्लेख अपनी अपनी टीकामें किया है, किन्तु इनका मूल आधार चूर्णिकारका उल्लेख ही है। चूर्णिकारके उल्लेखसे ही ज्ञात होता है कि - नन्दीसूत्रके प्रणेता नन्दीसूत्रस्थविरावलिगत अंतिम स्थविर श्री दुष्यगणिके शिष्य श्री देववाचक हैं। ___ पंन्यासजी श्री कल्याणविजयजी महाराजने अपने 'वीरनिर्वाण संवत् और जैन कालगणना' निबन्धमें (नागरीप्रचारिणी भाग १० अंक ४) अनेकानेक प्रमाण और युक्ति द्वारा नन्दीसूत्रप्रणेता स्थविर देववाचक और जैन आगमोंकी माथुरी एवं वालभी बाचनाओंको संवादित करनेवाले श्रीदेवर्द्धिगणि क्षमाश्रमणको एक बतलाया है। ___नव्यकर्मग्रंथकारआचार्य श्री देवेन्द्रसूरि महाराजने अपनी स्वोपज्ञ वृत्तिमें देवर्द्धिवाचक, देवर्द्धिक्षमाश्रमण नामके उल्लेखपूर्वक अनेकवार नन्दीसूत्रपाठके उद्धरण दिये हैं, ये भी उन्होंने * श्रीदेववाचकरचितं नन्दीसूत्रम्-श्रीजिनदासगणिमहत्तरविरचितया चूा संयुतम् (प्रकाशक-प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी, वाराणसी, ई. स. १९६६ ) के सम्पादनकी प्रस्तावमासे उद्धृत । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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