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જ્ઞાનાંજલ
नाम आता है वह आजके ' आउरपच्चक्खाणसे अलग है. सामान्यतः वीरभद्राचार्यको भगवान् महावीरका शिष्य मानते हैं परन्तु उपरोक्त प्रमाणको पढ़नेके बाद यह मान्यता भ्रान्त सिद्ध होती है. इस प्रकार दूसरे आगम भी अलग-अलग समयमें रचे हुए हैं. हो सकता है कि रायपसेणीयसूत्र भगवान् महावीर के समय ही में रचा गया हो.
आज
नंदी - पाक्षिकसूत्रोंके अनुसार आगमोंके चौरासी नामों व आजके प्रचलित आगमों के नामों से विद्वान् परिचित हैं ही अतः उनका उल्लेख न करके मैं मुद्देकी बात कह देता हूँ कि अंगसूत्रोंमें जो प्रश्नव्याकरणसूत्र है वह मौलिक नहीं किन्तु तत्स्थानापन्न कोई नया ही सूत्र है. इस बात का पता नंदीसूत्र व समवायांगके आगम-परिचयसे लगता है. आचार्य श्री मुनिचंद्रसूरिने देवेन्द्र- नरकेन्द्र प्रकरण की अपनी वृत्तिमें राजप्रश्नीय सूत्रका नाम 'राजप्रसेनजित्' लिखा है जो नंदीपाक्षिकसूत्रमें दीये हुए ' रायप्पसेणइयं' इस प्राकृत नामसे संगति बैठाने के लिए है. वैसे राजनी में प्रदेशिराजाका चरित्र है. इस आगमको पढ़ते हुए पेतवत्थु नामक बौद्ध ग्रंथका स्मरण हो जाता है.
प्रकीर्णक
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- सामान्यतया प्रकीर्णक दस माने जाते हैं किन्तु इनकी कोई निश्चित नामावली न होनेके कारण ये नाम कई प्रकारसे गिनाये जाते हैं. इन सब प्रकारोंमें से संग्रह किया जाय तो कुल बाईस नाम प्राप्त होते हैं जो इस प्रकार हैं।
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१. चउसरण, २. आउरपचक्खाण, ३. भत्तपरिण्णा, ४. संथारय, ५. तंदुलवेयालिय, ६. चंदावे, ७. देविदत्थय, ८. गणिविज्जा, ९. महापचक्खाण, १०. वीरस्थय, ११ इसि भासियाई, १२. अजीवकप्प, १३. गच्छायार, १४. मरणसमाधि, १५. तित्थोगालि, १६. आराहणापडागा, १७. दीवसागरपण्णत्ति, १८. जोइसकरंडय, १९. अंगविज्जा, २०. सिद्धपाहुड, २१. सारावली, २२. जीवविभत्ति. इन प्रकीर्णकों के नामोंमें से नंदी- पाक्षिकसूत्रमें उत्कालिक सूत्रविभागमें देविदत्थय, तंदुवेयालिय, चंदावेज्शय, गणिविज्जा, मरणविभत्ति-मरणसमाहि, आउरपच्चक्खाण, महापच्चक्खाण,
HTC नाम और कालिक विभागमें इसिभासियाई, दीवसागरपण्णत्ति ये दो नाम इस प्रकार ९ नाम पाये जाते हैं. फिर भी चउसरण, आजका आउरपच्चक्खाण, भत्तपरिण्णा, संथारय और आराहणापडागा - इन प्रकीर्णकों को छोड़कर दूसरे प्रकीर्णक बहुत प्राचीन हैं, जिनका उल्लेख चूर्णि - कारोंने अपनी चूर्णियों में किया है. तंदुलवेयालियका उल्लेख अगस्त्यचूर्णि (पत्र ३) में है.
जैसे कर्म प्रकृति शास्त्रका कम्मप्पगडी संग्रहणी नाम कहा जाता है, इसी प्रकार दीवसागरपणत्तिका दीवसागर पण्णतिसंग्रहणी यह नाम संभावित है.
श्वेतांबर मूर्तिपूजक वर्ग तित्थोगालिपइण्णयको प्रकीर्णको की गिनती में शामिल करता है, किन्तु
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