________________
आयुर्वेद साहित्य के जैन मनीषी
२४१
आचार्य नाम
ग्रन्थ काल
विषय ३४-दरवेश हकीम
प्राणसुख
वि० सं० १८०६ ३५-मुनि यशकीर्ति जगसुन्दरी प्रयोगशाला ३६-देवचन्द्र मुष्टिज्ञान
ज्योतिष एवं वैद्यक ३७-नयनसुख
नैद्यक मनोत्सव, सन्तानविधि
सन्निपात कलिका, सालोन्तर रास ३८-कृष्णदास
__ गंधक कल्प ३९-जनार्दन गोस्वामी बालविवेक, वैद्यरत्न १८वीं० वि० सं० ४०-जोगीदास
सुजानसिंह रासो वि० सं० १७६१ ४१-लक्ष्मीचन्द्र ४२-समरथ सूरी
रसमंजरी
वि० सं० १७६४ ऊपर लिखित तालिका में मैंने आयुर्वेद के जैन मनीषियों का नामोल्लेख किया है जिन्होंने आयुर्वेद साहित्य का प्रणयन प्रधान रूप से किया है। साथ ही वे चिकित्सा कार्य में भी निपुण थे। किन्तु प्राचीन जैन साहित्य के इतिहास का परिशीलन करने पर ज्ञात होता है कि बहुत विद्वान् आचार्य एक से अधिक विषय के ज्ञाता होते थे। आयुर्वेद के मनीषी इस नियम से मुक्त नहीं थे। वे भी साहित्य, दर्शन, व्याकरण, ज्योतिष, न्याय, मंत्र, रसतन्त्र आदि के साथ आयुर्वेद का भी ज्ञान रखते थे। आयुर्वेद के महान शल्यविद् आचार्य सुश्रुत ने कहा है
एक शास्त्रमधीयानो न विद्याद् शास्त्र निश्चियम् ।
तस्माद् बहुश्रुतः स्यात् विष्नानीया चिकित्सकः ॥
कोई भी व्यक्ति एक शास्त्र का अध्ययन कर शास्त्र का पूर्ण विद्वान् नहीं हो सकता है। अतः चिकित्सक बनने के लिए बहुश्रुत होना आवश्यक है।
यहाँ मैं कुछ ऐसे आयुर्वेद के जैन मनीषियों की गणना कराऊँगा, जिनके साहित्य में आयुर्वेद विकीर्ण रूप से प्राप्त है-पूज्यपाद या देवनन्दी, महाकवि धनंजय, आचार्य गुणभद्र, सोमदेव, हरिश्चन्द्र, वाग्भट्ट, शुभचंद्र, हेमचन्द्राचार्य, पं० आशाधर, पं० जाजाक, नागार्जुन, शोठल वीरसिंह,-- इन्होंने स्वतंत्र भी लिखे थे तथा इनके साहित्य में आयुर्वेद के अंश भी विद्यमान हैं ।
यह एक सम्पूर्ण दृष्टि है, जो आयुर्वेद के जैनाचार्यों के लिए फैलाई जा सकती है। वैसे पूर्वमध्य युग अर्थात् ५००-१२०० ई० से पूर्व का कोई जैनाचार्य आयुर्वेद के क्षेत्र में दृष्टिगोचर नहीं होता है। आयुर्वेद के जैन मनीषी सर्वप्रथम आचार्य पूज्यपाद देवनन्दी को माना जा सकता है।
(१) पूज्यपाद - इनका दूसरा नाम देवनंदी है। ये ई० ५ शती में हुए हैं। इनका क्षेत्र कर्नाटक रहा है । ये दर्शन, योग, व्याकरण तथा आयुर्वेद के अद्वितीय विद्वान् थे । पूज्यपाद अनेक विशिष्ट शक्तियों के धनी एवं विद्वान् थे । वे दैवीशक्ति-युक्त थे। उन्होंने गगन-गामिनी विद्या में
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org