________________
डा० हरीन्द्र भूषण जैन
जैन परम्परा के अनुसार भी मेरु के उत्तर में तीन वर्षधर पर्वत हैं- नील, रुक्मी और शिखरी । दोनों (जैन - वैदिक) परम्पराओं में केवल नील पर्वतमाला का ही नाम सादृश्य नहीं है अपितु रुक्मी [ श्वेत] और शिखरी [शृङ्गवान् ] पर्वतमाला का भी नाम सादृश्य है । इन पर्वतों की आधुनिक भौगोलिक तुलना भी हम विभिन्न पर्वतमालाओं से कर चुके हैं ।
२३४
इन पर्वतमालाओं तथा उत्तरी समुद्र [ आर्कटिक ओशन] अर्थात् लवण समुद्र के बीच क्रमशः, नील और श्वेत [ रुक्मी ] के बीच रम्यक या रमणक [जैन परम्परा में रम्यक] वर्ष, श्वेत और शृङ्गवान् [ जै० प० में शिखरी ] के बीच हिरण्यक [ जै० प० में हैरण्यवत् ] तथा शृङ्गवान् और उत्तरी समुद्र लवण समुद्र के बीच उत्तरकुरु या शृङ्गासक [ जैन परम्परा में ऐरावत ] नाम के वर्ष क्षेत्र हैं । "
जम्बू द्वीप का उत्तरी क्षेत्र
सबसे पहले हम रम्यक क्षेत्र को लेते हैं । जैन परम्परा में भी इसका नाम रम्यक वर्षक्षेत्र है । इसके दक्षिण में नील तथा उत्तर में श्वेत पर्वत है । हमारी पहचान के अनुसार नील, नूराउ - तुर्किस्तान पर्वतमालाएँ हैं और श्वेत, जरफशान - हिसार पर्वत मालाएँ हैं ।
यह प्रसिद्ध है कि एशिया के भूभाग में अति प्राचीन काल में दो राज्यों की स्थापना हुई* थी - आक्सस (Oxus River) नदी के कछार में बेक्ट्रिया राज्य (Bactria) तथा जरफशान नदी और कशका दरिया (River Jarafshan and Kashka Darya ) के कछार में सोगदियाना राज्य ( Sogdiana ) आज से २५०० या २००० वर्ष पूर्व ये दोनों राज्य अत्यन्त घने रूप से बसे थे । यहाँ के निवासी उत्कृष्ट खेती करते थे । यहाँ नहरें थीं । व्यापार और हस्तकला कौशल में भी ये राज्य प्रवीण थे ।
ऐसा कहा जाता है कि 'समरकंद' की स्थापना ३००० ई० पू० हुई थी । अतः 'सोगदि याना' को हम मानव संस्थिति का सबसे प्राचीन संस्थान कह सकते हैं । 'सोगदियाना' का नील और श्वेत पर्वतमालाओं से तथा पड़ोसी राज्य, बेक्ट्रिया ( केतुमाल ), जिसका हम आगे वर्णन करेंगे, से विशेष संबंधों पर विचार करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि पौराणिक ‘रम्यक' वर्ष प्राचीनकाल का 'सोगदियाना' राज्य है । बुखारा का एक जिला प्रदेश जिसका नाम 'रोमेतन' ( Rometan ) है, संभवतः 'रम्यक' का ही अपभ्रंश
1
दूसरा क्षेत्र, जो कि श्वेत और शृङ्गवान् पर्वतमालाओं के मध्य स्थित है, हिरण्यवत् है । हिरण्यवत् का अर्थ है सुवर्णवाला प्रदेश । जैन परम्परा में इसे 'हैरण्यवत्' कहा गया है। इस क्षेत्र में बहने वाली नदी का पौराणिक नाम है 'हिरण्यवती' । आधुनिक जरफशान नदी इसी प्रदेश में बहती है । जैन परम्परा के अनुसार इस नदी का नाम सुवर्णकला है । यह एक महत्त्वपूर्ण बात है कि हिरण्यवती. सुवर्णकला और जरफशान तीनों के लगभग एक ही अर्थ हैं - हिरण्यवती का अर्थ है - जहाँ सुवर्ण प्राप्त हो, सुवर्णकूला का अर्थ है - जिसके तट पर सुवर्ण हो और जरफ शान का अर्थ है - सुवर्ण को फैलाने वाली ( Sea Heres of gold ).
१. डा० एस ० एम० अली Geo. of Puranas अध्याय ५ Regions of Jambu Dwip - Northern Regions पृ० ७३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org