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जम्बूद्वीप और आधुनिक भौगोलिक मान्यताओं का तुलनात्मक विवेचन
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(क) जम्बू (इण्डिया), प्लक्ष ( अराकात तथा बर्मा ), कुश ( सुन्द - आर्ची पिलागो ), शाल्मली (मलाया प्रायद्वीप ), क्रौञ्च ( दक्षिण इण्डिया ), शक ( कम्बोज ) तथा पुष्कर ( उत्तरी चीन तथा मंगोलिया ) " ।
(ख) जम्बू ( इण्डिया ), कुश ( ईरान ), प्लक्ष ( एशिया माइनर ), शाल्मली ( मध्य योरोप ), क्रौञ्च ( पश्चिम योरोप ), शक ( ब्रिटिश द्वीप समूह ) तथा पुष्कर (आईसलैण्ड) २ (ग) जम्बू (इण्डिया), क्रौञ्च (एशिया माइनर ), गोमेद ( कोम डी टारटरी - Kome die Tartary), पुष्कर ( तुर्किस्तान), शक ( सीथिया), कुश ( ईरान, अरेबिया तथा इथियोपिया), प्लक्ष ( ग्रीस) तथा शाल्मली (सरमेटिया - Sarmatia ? ) 2
किन्तु प्रसिद्र भारतीय भूगोल शास्त्री डॉ० एस० एम० अली उपर्युक्त चारों मतों से सहमत नहीं हैं। पुराणों में प्राप्त तत्तत्प्रदेश की आबहवा ( Climate ) तथा वनस्पतियों (Vegetation) के विशेष अध्ययन से सप्तद्वीपों की आधुनिक पहिचान के विषय में वे जिस निष्कर्ष पर पहुँचे वह इस प्रकार हैं
जम्बूद्वीप ( भारत ), शकद्वीप (मलाया, श्याम, इण्डो-चीन, तथा चीन का दक्षिण प्रदेश), कुशद्वीप ( ईरान, ईराक) ' प्लक्ष द्वीप ( भूमध्यसागर का कछार ), पुष्करद्वीप (स्केण्डिनेवियन प्रदेश), फिनलैण्ड, योरोपियन रूस का उत्तरी प्रदेश तथा साइबेरिया), शाल्मली द्वीप (अफ्रीका ईस्ट इंडीज, मेडागास्कर ) तथा क्रौञ्चद्वीप (कृष्ण सागर का कछार ) ४
मेरु पर्वत
जैन परम्परा में मेरु को जम्बूद्वीप की नाभि कहा है- 'तन्मध्ये मेरुनाभिर्वृत्तो योजनशत सहस्रविष्कम्भो जम्बूद्वीप:' ( तत्त्वार्थसूत्र ३ ९ ), अर्थात् मेरु जम्बूद्वीप के बिल्कुल मध्य में है । इसकी ऊँचाई १ लाख ४० योजन है । इसमें से एक हजार योजन जमीन में है, चालीस योजन की अंत में चोटी है और शेष निन्यानबे हजार योजन समतल से चूलिका तक है । प्रारम्भ में जमीन पर मेरु पर्वत का व्यास दस हजार योजन है जो ऊपर क्रम से घटता गया है । मेरु पर्वत के तीन खण्ड हैं । प्रत्येक खण्ड के अन्त में एक एक कटनी है । यह चार वनों से सुशोभित है - एक जमीन पर और तीन इन कटनियों पर । इनके क्रम से नाम हैं- भद्रशाल, नन्दन, सौमनस और पाण्डुक । इन चारों वनों में, चारों दिशाओं में एक-एक वन में चारचार इस हिसाब से सोलह चैत्यालय हैं । पाण्डुकवन में चारों दिशाओं में चार पाण्डुक शिलायें १. Cot Gerini ‘Researches On Pitolemy's Geography of Eastern Asia' (1909) Page-725
२. F. Wilford - ' Asiatic Researches' Vol. VIII, Page 267-346
३. V. V. Iyer- The Seven Dwipas of the Puranas ' - The Quarterly Journan of the Mythical Society ( London ), 15, No. 1. p. 62, Vol. No. 2, pp 119-127, No. 3. pp. 238-45, Vol. 16, No. 4. pp. 273-82
४. डॉ० एच० एच० अली 'Geo of Puranas' p. 39-46. ( Ch. II. Puranic continents and Oceans).
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