________________
श्रेष्ठिवर्ग से यही निवेदन करूँगा कि यह एक महत्वपूर्ण योजना है और हमें उसके क्रियान्वयन का प्रयत्न करना चाहिए।
। अन्त में शासन से भी यह निवेदन करना चाहूँगा कि जिस प्रकार वह संस्कृत, अरबी, फारसी और पाली तथा बौद्ध विद्याओं के विकास के लिए करोड़ों रुपया व्यय करके कार्य कर रहा है, उसी प्रकार उसे प्राकृत और जैनविद्या के विकास के लिए निष्पक्ष भाव से काम करना चाहिए । मुझे यह जानकर आश्चर्य होता है कि जब कभी किसी विश्वविद्यालय में प्राकृत और जैनविद्या विभाग की बात कही जाती है तो यह अपेक्षा की जाती है कि उसके लिए धनराशि की व्यवस्था जैन समाज करे, ऐसा सुझाव क्यों है ? क्या जैन इस देश की प्रजा नहीं है, आज देश में जैनविद्या से सम्बन्धित जो दो-चार संस्थान हैं उनमें भी एल० डी० इन्स्टीट्यूट ऑफ इण्डोलोजी, अहमदाबाद को छोड़कर शासन से किसी को कोई मदद नहीं मिलती है । आखिर ऐसा क्यों होता है ? आज इन संस्थाओं को परस्पर जोड़ने वाला कोई सूत्र भी नहीं है। यदि एक जैन विश्वविद्यालय की योजना बनाकर इन सभी संस्थाओं को जोड़ा जा सके तो प्राकृत और जैनविद्या के विकास के अवसर अधिक सुगम हो सकेंगे। अन्त में मैं पुनः आप सभी लोगों के प्रति आभार प्रकट करते हुए यही कामना करता हूँ कि आपने जिस प्राकृत एवं जैनविद्या परिषद् का गठन किया है और जिसका प्रथम अधिवेशन पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान के प्रांगण में आयोजित हो रहा है, वह दीर्घजीवी हो ।
( 11 )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org