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णायकुमारचरिउ के दार्शनिक मतों की समीक्षा
जिनेन्द्र कुमार जैन भारतीय साहित्य में अनेक ऐसे काव्य ग्रन्थ लिखे गये हैं, जिनमें जीवन के विभिन्न पक्ष प्रतिपादित हुए हैं। विभिन्न युगों के धार्मिक एवं दार्शनिक जीवन को प्रतिबिम्बित करने की प्रवृत्ति मध्ययुग के भारतीय साहित्य में अधिक देखने को मिलती है। गुप्तयुग के बाद प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत भाषाओं में जो जैन साहित्य लिखा गया है उसमें काव्य तत्त्व के साथ-साथ धार्मिक एवं दार्शनिक जीवन को भी अंकित किया गया है। १०वीं शताब्दी की अवधि में लिखे गये जैन साहित्य में धर्म तथा दर्शन की बहुमूल्य सामग्री छिपी पड़ी है। पुष्पदन्त के ग्रंथ इसका प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रस्तुत निबन्ध में पुष्पदन्तकृत णायकुमारचरिउ के कतिपय दार्शनिक मतों की समीक्षा प्रस्तुत की गई है।
नागकुमार का जीवनचरित जैन लेखकों में प्रिय रहा है । यद्यपि कथा का प्रारम्भ स्वाभाविक ढंग से होता है। फिर भी नागकुमार के उस लोकोत्तर रूप को वर्णित करना, जो उसे श्रुतपंचमी व्रत के पुण्य स्वरूप प्राप्त हुआ है, पाठकों के मन को आकर्षित किए बिना नहीं रहता। पौराणिक काव्यरूढ़ियों के साथ-साथ इस ग्रन्थ में अन्य तत्कालीन दार्शनिक एवं धार्मिक मतों के खण्डन-मण्डन की पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है । यद्यपि जैनधर्म विरक्तिमूलक सिद्धान्तों पर आधारित है, तथापि इसमें (प्रेमाख्यानक कथा काव्यों में ) धर्म के अनुष्ठानों को फलभोगों की प्रचुर उपलब्धि बताया गया है। किन्तु कथा के अंत में नायक भोगों को भोगकर दीक्षा ग्रहण करके परम मोक्ष को प्राप्त होता है।
जैन दर्शन का स्वरूप-पुष्पदन्त की काव्य रचना का मुख्य उद्देश्य जिनभक्ति व जैनधर्म का प्रचार-प्रसार रहा है । इसीलिये उन्होंने कथा के बीच-बीच में मुख्य कथानक को रोककर जैनधर्म एवं दर्शन के सिद्धान्तों की विस्तृत व्याख्या की है । तत्त्वमीमांसा, आचारमीमांसा के साथ-साथ पदार्थ-विवेचन, कर्मसिद्धान्त, अहिंसा, त्रिरत्न, स्याद्वाद आदि पक्षों पर उन्होंने विशेष प्रकाश डाला है।
पदार्थ की अनेकान्तिकता सिद्ध करने के लिए अथवा वस्तु अनेक धर्म वाली है यह सिद्ध करने के लिए सप्तभंगी या स्याद्वाद सिद्धान्त का निरूपण जैन दर्शन के अन्तर्गत किया गया है।। वस्तु किसी दृष्टि से एक प्रकार की होती है, और किसी दृष्टि से दूसरे प्रकार की । अतः उसके, शेष अनेक धर्मों (गुणों) को गौण बताते हुए, गुण विशेष को प्रमुख बनाकर प्रतिपादित करना स्याद्वाद है । पुष्पदन्त ने महापुराण' तथा णायकुमारचरिउरे में इसका उल्लेख किया है । गुण
१. महापुराण-३।२।७ २. णायकुमारचरिउ–११९
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