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लेश्या द्वारा व्यक्तित्व रूपान्तरण
१०१ शुक्ल लेश्या का ध्यान शुभ मनोवृत्ति की सर्वोच्च भूमिका है। प्राणी उपशान्त, प्रसन्नचित्त और जितेन्द्रिय बन जाता है। मन, वचन और कर्म की एकरूपता सध जाती है। सदैव स्वधर्म और स्व-स्वरूप में लीन रहता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि लेश्या ध्यान से रासायनिक परिवर्तन होते हैं। पूरा भाव संस्थान बदलता है । उसके वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श सभी कुछ बदलता है । व्यक्ति जब तक मूर्छा में जीता है, तब तक उसे बुरे भाव, अप्रिय रंग, असह्य गन्ध, कड़वा रस, तीखा स्पर्श बाधा नहीं डालते, पर जब मूर्छा टूटती है, विवेक जागता है तब वह अशुभ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से विरक्त होता है, उन्हें शुभ में बदलता है।
यद्यपि लेश्या ध्यान हमारी अन्तिम मंजिल नहीं। हमारा अन्तिम उद्देश्य तो लेश्यातीत बनना है, पर इस तक पहुँचने के लिये हमें अशुभ से शुभ लेश्याओं में प्रवेश करना होगा, जिसके लिये लेश्याध्यान आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण पड़ाव है।
ध्यान की एकाग्रता, तन्मयता और ध्येय-ध्याता में अभिन्नता प्राप्त हो जाने पर ही आत्मविकास की दिशाएं खुल सकती हैं।
जैन विश्व भारती लाडनूं (राज.) ३४१३०६
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